Thursday, 25 May 2017

महका महका सा आलम


सच कहु तो 
अच्छा लगता है
मुझे तुम्हारे सामने
बिखरना उफ़ कितना
पागल हु ना मैं
समझ ना पाया
तेरी बातों को
तभी कहु आज
महका महका
सा आलम किन्यु है
चारो और मेरे इतनी
खुसबू किन्यु है
हां तेरे प्यार ने
ली है अंगड़ाई
तभी चारो और देखो
बहार है खिल आयी  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !