Thursday 18 May 2017

प्रश्नचिन्ह











तुम आती हो 
मेरे जीवन में 
एक दिवास्वप्न 
की ही तरह और  
और छोड़ जाती हो 
कई प्रश्नचिन्ह मेरी 
आँखों के कोरों पर 
स्वप्न टूट जाता है ; 
प्रश्न चुभने लगते हैं 
मैं अपने आंसू की 
हर बूँद पर डाल 
देता हूँ एक मुठ्ठी रेत
सिर्फ तुम्हे सही 
ठहराने की खातिर  
थोड़ा और भारी 
हो उठता है मन 
पहले से और तैरने 
लगते हैं कई सवाल 
मेरे जेहन में की 
आखिर किन्यु मैं
तुम्हारी हर गलती 
और मज़बूरिओ पर
आज तक रेत डालते 
आया हु 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !