तुम आती हो
मेरे जीवन में
एक दिवास्वप्न
की ही तरह और
और छोड़ जाती हो
कई प्रश्नचिन्ह मेरी
आँखों के कोरों पर
स्वप्न टूट जाता है ;
प्रश्न चुभने लगते हैं
मैं अपने आंसू की
हर बूँद पर डाल
देता हूँ एक मुठ्ठी रेत
सिर्फ तुम्हे सही
ठहराने की खातिर
थोड़ा और भारी
हो उठता है मन
पहले से और तैरने
लगते हैं कई सवाल
मेरे जेहन में की
आखिर किन्यु मैं
तुम्हारी हर गलती
और मज़बूरिओ पर
आज तक रेत डालते
आया हु
No comments:
Post a Comment