मैं एक कुम्हार
की तरह ही
हर रोज गढ़ता हु
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु
और भले ही वक़्त
वक़्त के साथ कमज़ोर
पड़ने लगे मेरी नज़र
पर मैं तुम्हारी आँखों में
कुछ धुंधला सा भी
पढ़ ही लूंगा और मैं
हर पल तुम्हारे साथ
गुजरे लम्हो को संजोता रहूँगा
मुझे अब भी लगता है
मैंने पूरी सिद्दत से तुम्हे
नहीं चाहा है और इसी
चाहत में मैं मेरी सिद्दत
को और उंचाईओं पर
ले जाना चाहता हु
की तरह ही
हर रोज गढ़ता हु
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु
और भले ही वक़्त
वक़्त के साथ कमज़ोर
पड़ने लगे मेरी नज़र
पर मैं तुम्हारी आँखों में
कुछ धुंधला सा भी
पढ़ ही लूंगा और मैं
हर पल तुम्हारे साथ
गुजरे लम्हो को संजोता रहूँगा
मुझे अब भी लगता है
मैंने पूरी सिद्दत से तुम्हे
नहीं चाहा है और इसी
चाहत में मैं मेरी सिद्दत
को और उंचाईओं पर
ले जाना चाहता हु
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