Friday, 26 May 2017

हर पल तुम्हारे साथ

मैं एक कुम्हार 
की तरह ही 
हर रोज गढ़ता हु 
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु   
और भले ही वक़्त 
वक़्त के साथ कमज़ोर 
पड़ने लगे मेरी नज़र 
पर मैं तुम्हारी आँखों में
कुछ धुंधला सा भी 
पढ़ ही लूंगा और मैं
हर पल तुम्हारे साथ 
गुजरे लम्हो को संजोता रहूँगा   
मुझे अब भी लगता है 
मैंने पूरी सिद्दत से तुम्हे
नहीं चाहा है और इसी 
चाहत में मैं मेरी सिद्दत
को और उंचाईओं पर 
ले जाना चाहता हु 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !