Friday, 12 May 2017

रूह से रूह के लिए









चाह कर भी हम 
बुन नहीं सकते 
एहसासों को 
भावनाओं को 
और ख्वाइशों को 
किसी कल पुर्जे से ,
क्यों कि
दिल के यह गीत 
जो बुने जातें हैं रेशम से 
किसी "जुलाहे सी रूह" से
वह अब भी 
इस मशीनी युग में 
किसी मशीन से बुनना 
मुमकिन नहीं !!!
ये तो बना ही जाता है 
रूह से रूह के लिए 


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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !