Monday 31 December 2018

तुम्हारा इंतज़ार है !

तुम्हारा इंतज़ार है !
•••••••••••••••••••••
इंतज़ार है मुझे 
कि कभी तो मेरे 
इंतजारो की सीमाए..

बढ़कर तुम्हे छू ही
लेंगी और तुम्हे मेरे 
इंतज़ार का एहसास 
होगा...

तब तो तुम चुपके 
से आगे बढ़कर मेरा 
हाथ थाम ही लोगी...

और मेरे बिखरे सपनो 
को समेट कर उनमे 
रंग भर ही दोगी...
  
इंतज़ार है मुझे 
जब तेरे दिल की 
धड़कन भी मेरे 
दिल की तरह ही 
धड़केंगी... 

और फिर हम होंगे 
सदा-सदा के लिए 
एक दूजे के साथ-साथ !

Sunday 30 December 2018

अभिव्यक्त अभिव्यक्ति !

अभिव्यक्त अभिव्यक्ति !
••••••••••••••••••••••••••••
मेरी अभिव्यक्ति 
को पढ़कर भी यु 
जितना आसान 
होता है तुम्हारे 
लिये खामोश 
रहना ,

उतना ही मुश्किल 
होता है यु रोज रोज 
मेरे लिये तुम्हारा 
वो प्यार लिखना ,

जितना आसान 
होता है तुम्हारा 
मुझे देखकर भी
यु सुबह सुबह 
नजरअंदाज करना,

उतना ही मुश्किल 
होता है मेरे लिए 
तुम्हारी वो नज़र-
अंदाज़ी के अंदाज़ 
लिखना,

फिर भी तुम्हारी 
ख़ामोशी मुझे 
करती है विवश 
अब भी करने को 
अभिव्यक्त मेरी 
अभिव्यक्ति !

Saturday 29 December 2018

मुट्ठी में रख लूंगा !

मुट्ठी में रख लूंगा !
••••••••••••••••••••
सोचा था मैंने 
इस मेरी मुट्ठी में  
संभाल कर और  
सबसे छुपा कर 
रख लूंगा तुम्हे,

बड़े जतन से 
बंद की थी ये 
मुट्ठी मैंने रख 
कर तुम्हे यु अंदर,

पर न जाने कैसे 
और कब तू फिसल 
कर मेरी मुट्ठी से यु 
समय की तरह आगे 
बढ़ गयी कि,
  
सूखी रेत की किरकिरी 
की तरह मेरी इस हस्ती 
में रड़कती रह गयी है;

और अब देखता हु 
जब खुद की मुट्ठी तो 
आँखें मेरी यु ही बरबस 
समंदर हुए जाती है ! 
में रख लूंगा !

Thursday 27 December 2018

बे-मौसमी बारिश !

बे-मौसमी बारिश !
••••••••••••••••••••
क्या कभी महसूस 
किया है तुमने कि 
ऊपर से यु कठोर 
दिखने वाला पुरुष 
भी भीगा करता है 
उस धुप भरी दोपहरी 
में भी जब कभी तुम  
उसे अकेला छोड़ कर 
चली जाती हो और 
तब होती है बेमौसमी 
बारिश वंहा जहा कुछ 
पल पहले ही को तुम 
ठहरी थी साथ उसके 
लेकिन सुनो जिस दिन 
तुमने देख लिया उसे   
उस धुप भरी दोपहरी 
में यूँ अकेले भीगते हुए 
उसके बाद फिर कभी 
तुम जा नहीं पाओगी 
छोड़ कर उसे अकेला यु !

Wednesday 26 December 2018

मेरे दर्द को हर लेती है !

मेरे दर्द को हर लेती है !
•••••••••••••••••••••••••
अक्सर वो मेरे बालो में 
अपनी पतली-पतली और 
लम्बी-लम्बी अंगुलिया 
फिराते फिराते हर लेती है;

मेरे हर दर्द को और एक 
शिशु की तरह सिमट जाता 
हु मैं उसकी गोलाकार बाँहों 
में और छोड़ देता हु;

खुद को बिलकुल निढाल 
सा उसके हवाले उसकी 
जकड़न में और कुछ देर 
बाद ख़त्म हो जाता है;

द्वेत का भाव यानी  
दो होने का भाव फिर 
गहरी सांसो के बीच
उठती गिरती धड़कने 
खामोश हो जाती है;

और मिलने लगती है 
आत्माए जैसे जन्मो की 
प्यासी हो और ऐसे ही 
पलो में साकार होता है
सपना ज़िन्दगी का !

Tuesday 25 December 2018

सच का स्वरुप !

सच का स्वरुप !
•••••••••••••••••
कई बार जब 
अपने ज्ञान के 
चक्षुओं से देखता हु;

तो याद आता है 
कि सच का स्वरुप 
तो एक होता है;

चाहे वो सच तुम्हारा 
हो या वो सच मेरा हो 
या हो वो किसी ओर 
का तो भी;

पर हम दोनों के लिए
तो अब तक वो स्वरुप
दो अलग-अलग ही रहा;

और जंहा सच के स्वरूप 
ही दो हो वंहा समय अपनी 
बात कुछ इस तरह से कह  
जाता है कि;

बदल जाते है रिश्तों के 
मायने फिर आखिर कैसे 
टिके वो रिश्ते जिनमे सच 
के स्वरुप दो होते है !

Monday 24 December 2018

सर्दी की बारिश !

सर्दी की बारिश !
••••••••••••••••••
आओ इस सर्दी   
की बारिश में 
हम और तुम 
मिलकर खूब 
भीगते है;

थरथराते होंठों 
और सर्दी से 
उठती कँपकपी 
को मिटा देते है;

हम और तुम 
अपनी अपनी 
अग्नि से फिर 
करते है;

संवाद अपनी 
अपनी नज़रों से
कुछ इस तरह की 
जिव्हा को उसकी  
औकात दिखा देते है;
  
फिर मैं तुम्हे 
जी लेता हु पूरी 
की पूरी;
  
और तुम भी 
जी लेना मुझे 
पूरा का पूरा ! 

Sunday 23 December 2018

मेरी सांसों की डोर !

मेरी सांसों की डोर !
•••••••••••••••••••••
लपेट दी है मैंने
अपनी सांसों की 
डोर तुम्हारे वृत्त 
के चारों ओर तुम्हारा 
ही नाम जपते हुए 
मैंने तुमसे ही छुपाकर 
बांध दी है अपनी सांसों 
की डोर इतनी मज़बूती
से उन सभी गांठों 
में की अब तुम मेरी
ज़िन्दगी की सांसें 
पूरी होने के पहले 
चाहकर भी नहीं 
खोल पाओगी इन 
गांठों को बिना मेरी
सांसों की डोर को 
अपने वृत्त से काटे हुए ! 

Saturday 22 December 2018

सर्वोपरि सर्वश्रेष्ठ प्रेम!

सर्वोपरि सर्वश्रेष्ठ प्रेम!
••••••••••••••••••••••••
एक मात्र भाव 
जो मुक्त है हर 
एक द्व्न्द से;

सर्वोपरि व  
सर्वश्रेष्ठ पाक 
प्रेम हमारा,

सीमाहीन है ये 
इसको दायरों में 
बांधा नहीं जा सकता,

दिखता भी है और  
महसूस भी किया 
जा सकता है;

प्रेम हमारा 
अमर है कभी 
दम नहीं तोड़ेगा
अजेय है कभी 
घुटने नहीं टेकेगा,

किसी भी और कैसी 
भी परिस्थिति में
रहेगा सदा ये अडिग
निर्भय प्रेम हमारा!

Friday 21 December 2018

मेरे अस्तित्व की कुंजी!

मेरे अस्तित्व की कुंजी!
•••••••••••••••••••••••••
तुम कुछ इस 
तरह हर पल 
मेरी नज़रों में 
समायी रहती हो;

कि मुझे इस भीड़ 
भरी दुनिया में भी 
एक तुम्हारे सिवा 
कोई और दिखाई 
ही नहीं देता है;

तभी तो मैं तुम्हारे 
उस असीमित अनन्त 
और विस्तृत वज़ूद को 
अपने  ह्रदयाकाश में 
समेट लेना चाहता हूँ;

और उस से जुडी हर एक 
सम्भावना को स्वयं में 
कुछ इस तरह समाहित 
कर लेना चाहता हूँ;

कि उसके बाद तुम 
तुम्हारा वजूद हर पल 
मेरे अस्तित्व में एक 
अदृश्य शक्ति की कुंजी 
बनकर सदा मौजूद रहो !

Wednesday 19 December 2018

प्यास बुझा देना तुम!

प्यास बुझा देना तुम!
••••••••••••••••••••••
निकला था खुद को 
तलाशने लेकिन दब  
कर रह गया हु अपनी 
ज़िम्मेदारियों के बोझ 
तले मैं ;

निकला था हंसी को 
तलाशने लेकिन डूब 
के रह गया हु आंसुओं 
के समंदर में मैं ;

निकला था खोजने को 
मरहम लेकिन वक़्त के 
खंजर के घाव से लथपथ 
पड़ा हु मैं ; 

कुछ यु की ये मैं हु या 
कोई और खुद को पहचान 
ही नहीं पा रहा हु मैं ;

निकला था खुद को 
ढूंढने खुद ही आज 
कंही खो गया हु मैं;

अब तुम मुझको ढूंढ 
लेना और शायद मिलूं 
प्यासा तुम्हे तो मेरी 
प्यास बुझा देना तुम !

Tuesday 18 December 2018

दिन जल्दी में होते है!

दिन जल्दी में होते है! 
•••••••••••••••••••••••
उन पलों में ना 
जाने क्यों ये दिन 
किस जल्दी में होते है 
मेरी लाख मिन्नतों के 
बाद भी कोई पल भी 
एक पल से लम्बा होता 
ही नहीं बस भागा चला 
जाता है मेरे सपनो को 
रौंद कर और बिखेरते 
चला जाता है सूरज की 
लालिमा मेरे उस कमरे 
में मानो सिन्दूर फैला 
हो वंहा और फिर मेरे 
सपनो का प्रवाह तुम्हारे   
जाते ही पहले तो थमता है 
फिर धीरे-धीरे टूटता चला 
जाता है पर उन पलों में ना 
जाने क्यों ये दिन किस  
जल्दी में होते है... 

Monday 17 December 2018

स्याह परछाईं का घेरा!

स्याह परछाईं का घेरा! 
••••••••••••••••••••••••
हा ये सच है 
की एक दिन भी
शताब्दी सा महसूस  
होता है मुझे जब तुम 
होती हो मुझसे दूर हा 
थोड़ी सी भी दूर तब 
जाने किन्यु ये रात 
ओढ़ लेती है सुस्ती 
और स्याही से भी
स्याह परछाई घेर
लेती है मुझे अपने 
आगोश में और फिर 
मैं तुम्हारे प्रेम को बुरी 
नज़र से बचाने के लिए
काला धागा जो बांधा था 
मैंने अपनी कलाई में 
उसकी गांठे दुरुस्त 
करने लग जाता हु
इस डर से की कंही 
गुस्से में मैं ही उसे 
तोड़ ना फेंकू कंही !

Sunday 16 December 2018

मेरी हीर कह कर !

मेरी हीर कह कर ! 
•••••••••••••••••••
प्रेम तुमसे है 
मुझे कुछ कुछ
हीर-राँझा सा ही
अदृश्य अपरिभाषित
अकल्पित है जिसकी 
सीमायें और इसका  
आकर्षण भी ऐसा है  
जो विकर्षण की हर 
सीमा तक जाकर भी 
तोड़ आता है दूरियों 
की सभी बेड़ियाँ और 
समाहित कर देता है 
मुझे तुझमे कुछ ऐसे 
की सोचने लग जाता हु 
की अब तुम्हे मैं भी पुकारू 
मेरी हीर कह कर ! 

Saturday 15 December 2018

रिश्तों का पहाड़ !

रिश्तों का पहाड़ !
•••••••••••••••••••
अब तो हर बीतते 
दिन के साथ ये डर 
मेरे मन में बैठता 
जा रहा है,

की जब तुम अपने  
प्रेम के रास्ते में आ 
रहे इन छोटे मोटे   
कंकड़ों को ही पार 
नहीं कर पा रही 
हो तो,

तुम कैसे उन रिश्तों 
के पहाड़ को लाँघ कर 
आ पाओगी सदा के 
लिए पास मेरे, 

अब तो मेरे आंसुओं 
के जलाशय में भी 
तुम अपना चेहरा 
देख खुद को सहज 
रख ही लेती हो, 

वो तुम्हारा सहजपन 
मुझे हर बार कहता है
की तुमने शायद कभी 
मुझे वो प्रेम किया ही 
नहीं क्योंकि,

जिस प्रेम में प्रेमिका 
दर ओ दीवार लाँघ 
अपने प्रेम का वरण 
नहीं करती है;

वो प्रेम कभी पुर्णता 
के द्वार में प्रवेश नहीं 
कर पाता है !

Friday 14 December 2018

चीर प्रतीक्षित प्रेम !

चीर प्रतीक्षित प्रेम !
•••••••••••••••••••••
मेरे जीवन की तमाम 
अमावस की रात को 
अपनी शीतल चांदनी 
से जगमगाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो तुम;

मेरे असीम विश्वास को 
अपने सच्चे समर्पण से 
उसे शिव बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो तुम;

जन्मो की अपनी प्यास 
को मेरे असीम प्रेम का 
सिन्दूर लगा कर मुझे 
अपना "राम" बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो तुम;

मेरे चीर प्रतीक्षित प्रेम 
को अपनी मोहब्बत के 
अमरत्व से अमर बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो तुम;

ओ मेरी प्राणप्रिये 
मेरे इश्क़ के बीज को 
खुद की धरा में बो कर 
उसका विस्तार करने ही तो  
इस धरती पर आयी 
हो तुम;

Wednesday 12 December 2018

चाहतों की ग्रीवा !


चाहतों की ग्रीवा !
••••••••••••••••••
कब तक तुम 
यु ही दुनियावी 
दिखावे के लिए 
मेरी चाहतों की 
ग्रीवा को दबाये 
रखोगी सुनो ये 
ख्याल रखना की 
कंही ऐसा ना हो 
की भूलवश तुम्हारे 
ही हाथों के दवाब से 
मेरी वो तमाम हसरतें 
दम तोड़ दे जिन्होंने 
जन्म लिया था तुम्हारी 
ही बाँहों के घेरे में फिर 
मुझे ना कहना जब 
तुम्हारा ये निसकलंक 
यौवन मेरी हसरतों की 
मौत का वज़न उठाकर 
चलते हुए ज़िन्दगी की 
राह पर भटक कंही और 
पराश्रय ना ले ले !

Tuesday 11 December 2018

मेरी कलम की स्याही!

मेरी कलम की स्याही!
••••••••••••••••••••••••
तुम जब नहीं होती 
मेरे ख्यालों में तब
मेरे चारो तरफ एक 
खालीपन सा होता है  
मौत की आँखों में
ऑंखें डाल कर बात 
करने का हौसला रखने 
वाला "प्रखर" उस वक़्त
कोरे कागज़ से भी नज़र 
मिलाने में सकुचाता है 
जब कुछ लिखने बैठता है 
तो शब्द भी ठहरते नहीं 
कागज पर और वो कोरा 
कागज़ जो हवा के एक 
झोंके के आगे अक्सर 
घुटने टेक देता है वो 
कागज़ का छोटा सा टुकड़ा 
टुकुर-टुकुर ताकने लगता है 
लगता है जैसे पूछ रहा हो 
क्या हुआ कलम के धनी
कहलाने वाले "प्रखर" लिखो 
कुछ लिख कर दिखलाओ 
मुझ पर तब मानूंगा तुम्हे 
कलमकार आज जब वो 
नहीं है तुम्हारी सोच में 
तो तुम यही मान लेना 
तुम्हारी कलम की स्याही  
वो है जो तुमसे अपना 
प्रेम लिखवाती है !

Monday 10 December 2018

कोई नयी मज़बूरी!

कोई नयी मज़बूरी!
••••••••••••••••••••
तुम्हे सोचती हूँ तो 
पाती हूँ तुम्हे अपने 
ही आस पास यही कंही 
लेकिन जैसे ही तुम्हे छूने 
की कोशिश करती हूँ तो 
टूट जाता है मेरा एक और 
मधुर स्वप्न लेकिन ये जो 
मेरी पलकों पर अनगिनत 
मोती छुपे है तुम्हारे इंतज़ार 
के वो बस तेरी एक झलक के
तलबगार हैं और जो मेरे लबों 
पर आने को बेताब है बर्षों से 
उस मुस्कराहट को बस एक 
तेरे आने का इंतज़ार है इतना 
कुछ जानकर भी जो तुम हो 
दूर मुझसे अब तक क्या उसे 
भी तुम्हारा प्यार समझू या 
तुम्हारी कोई नयी मज़बूरी 
ये तो अब बतला दो मुझे तुम !

Sunday 9 December 2018

बुँदे झरती रहती है!

बुँदे झरती रहती है!  
••••••••••••••••••••
दर्द छुपाना यूँ  
तो आसान होता है  
बारिशों के मौसमों 
में तभी तो बारिश 
जब-जब होती है 
तब-तब देर तलक 
बुँदे पत्तों से निचे 
चुप-चाप झरती ही 
रहती है मगर कई 
बार दरख्तों ने भी 
रिस-रिस कर उस 
ऊँचे से आसमान 
को छुआ है और 
फिर उसी बारिश 
ने उन्ही दरख्तों 
की जड़ों को दी है 
हर बार जीने की 
एक नयी वजह 
तभी तो बूंदों को 
अच्छी तरह पता है
दर्दो से एक अलग 
पहचान मिलती है !

Saturday 8 December 2018

मेरी हार की वजह!

मेरी हार की वजह!
••••••••••••••••••••
तुम जब भी मुझसे 
मिलती हो तो कहीं 
खोई-खोई सी ही तो 
रहती हो जैसे बूँदें
गिरती हैं पत्तों पर
पर फिसल कर मिल  
जाती है मिटटी में  
ठीक वैसे ही मेरी
कही हर बात तुम 
तक पहुंच कर लौट 
आती है वापस फिर 
मुझ तक और मैं 
जीत के भी हार ही 
जाता हूँ फिर एक बार
दर्द हारने का नहीं है 
मुझे दर्द है "वजह" का
तुम कैसे वजह बन 
सकती हो मेरी हार की!

Friday 7 December 2018

तुम्हारा नाम "हम्म"!

तुम्हारा नाम "हम्म"!
••••••••••••••••••••••
मेरे प्रेम ने तो उस 
पहले ही दिन मुझे 
विवश कर दिया था;

तुम्हे वो सब कह देने 
जिसे कहने में अक्सर 
एक प्रेमी को लग जाते है;

कई घंटे दिन महीनो और 
कई बार तो सालों भी पर   
मैं उस प्रेम की उफनती नदी   
में कुछ इस कदर बहा की;

उस पहले ही दिन मैं 
नहीं रह पाया तुम्हे ये 
कहे बगैर की मैं तुम्हे 
बेइंतेहा मोहब्बत करता हु;

तब सर से पांव तक विस्मृत 
तुम मुझे देखती ही रह गयी थी 
पर तुम्हारे दिल ने भी मेरे दिल 
की इस इल्तिज़ा को स्वीकार लिया था;

तभी तो तुम कुछ देर 
निरुत्तर सी नज़रें नीची 
कर सिर्फ इतना कह पायी थी "हम्म';

ठीक उसी पल मैंने 
तुम्हारा नाम "हम्म"
रख दिया था ! 

Thursday 6 December 2018

रहेगा वही जो अदृश्य है!

रहेगा वही जो अदृश्य है!   
••••••••••••••••••••••••••
कुछ लफ्ज़ है जो 
सने नहीं है मेरे 
मेरे ज़ज़्बात की 
स्याही में अभी;

कुछ भाव भी है जो   
अब तक गर्भ में भी 
आये नहीं है अभी;
   
कुछ सपने है जो 
पहुंचे नहीं है मेरी 
आँखों में अभी;
  
कुछ प्रेम कथाएँ 
भी है जिनकी नीव 
रखी नहीं गयी है अभी;

कुछ रंग भी है जो 
फूलों में भी डले 
नहीं है अभी; 

कुछ किरणें है जो  
सूरज की वो नहीं 
पहुँचीं धरती पर अभी;

कुछ नाम है जो 
दर्ज़ नहीं हुए है 
इतिहास में अभी;

पर सुनो ये भी 
संभव है की रह 
जाए यंहा सिर्फ 
वही जो अदृश्य है अभी !

Wednesday 5 December 2018

कौन थी वो और कौन होगी वो !

 कौन थी वो और कौन होगी वो ! 
•••••••••••••••••••••••••••••••••
इतिहास में वो पहली नारी 
कौन थी जिसने सबसे पहले 
प्रेम किया था ?
मैं नहीं जानता उसका नाम 
लेकिन जो भी थी वो थी तो 
मेरी माँ सी ही वो;
मेरी आस यह है की भविष्य 
में वो आखरी नारी कौन होगी,
जो सबसे अंत में किसी एक को
प्रेम करेगी;
मैं नहीं जानता उसका नाम 
लेकिन वो जो भी होगी वो 
होगी तो मेरी बेटी सी ही और 
मैं यही प्रेम मेरे वंशजों को 
                                                              देकर जाना चाहूंगा !                                                                  

Tuesday 4 December 2018

देह की दहलीज़ !



देह की दहलीज़ !
••••••••••••••••••
ऐसा तो नहीं कह सकता 
मैं... 
की किसी ने भी ना चाहा था 
मुझे...
तुमसे मिलने के पहले तलक 
हां...
इतना जरूर पुरे यकीन से 
कह... 
सकती हु की किसी को भी  
मैंने...
इस देह की दहलीज़ को लांघने 
नहीं...
दिया था और तुमसे अपने 
प्यार...  
का इकरार करने के बाद ना 
जाने...
क्यों खुद को रोक ही नहीं पायी
और...
तुम कब उस दहलीज़ को लाँघ 
अंदर... 
आ गए पता ही नहीं चला मुझे !

Monday 3 December 2018

आप मरना शुरू कर देते है!

आप मरना शुरू कर देते है!
•••••••••••••••••••••••••••••
आप तब जीना छोड़ रहे होते है;
जब आप नहीं करते कोई नयी यात्रा, 
या गढ़ते नहीं कोई नहीं कहानी, 
और सुनते नहीं अपनी आत्मा की आवाज़, 
या फिर करते नहीं बिना वजह किसी की तारीफ !

आप तब जीना छोड़ रहे होते है;
जब आप अक्सर ही ताक पर रखना, 
शुरू कर देते है अपना ही स्वाभिमान, 
नहीं लेते किसी और की मदद व फिर, 
करनी छोड़ देते है मदद दूसरों की भी !

आप तब जीना छोड़ रहे होते है;
जब आप बदलना छोड़ देते है,
अपनी हर एक गलत आदतों को ,
गुजरते है रोज उन्ही एक से रास्तों से, 
नहीं देखते उगते सूरज और शीतलता, 
बरसाते चाँद को और विश्वास करना 
छोड़ देते है, उन टूटते सितारों की कहानियों में ! 

आप तब जीना छोड़ रहे होते है;
जब पहनना छोड़ देते है अलग-अलग 
रंग के कपडे और बात नहीं करते 
अनजान और अज़नबियों से और  
जब आप नहीं बदलते अपनी उस 
ज़िन्दगी को जिस से आप अब तक 
नहीं हो पूरी तरह से संतुष्ट !

आप तब जीना छोड़ रहे होते है;
जब आप होते है परेशान अपने 
काम और उसके अब तक आये 
परिणामो से फिर भी ऊपरी मन 
से करते रहते है आप वही काम !

आप तब जीना छोड़ रहे होते है; 
जब आप नहीं छोड़ते किसी अनिश्चित
को एक निश्चित के लिए और जब आप 
करना छोड़ देते है पीछा अपने किसी अधूरे 
रहे स्वप्न का और जब आप नहीं देते इज़ाज़त 
किसी एक खास व समझदार इंसान की सलाह 
से खुद को दूर कर लेने की उस पल आप जीना छोड़ 
मरना शुरू कर देते है !
   

Sunday 2 December 2018

इश्क़ है

कितना कुछ लिखा गया है इश्क़ के लिए, इश्क़ ये है इश्क़ वो इश्क़ -इश्क़ और इश्क़ और किसी भी लिखे को प्रमाणिकता के साथ हम नकार नहीं सकते, क्योंकि मुझे लगता है इश्क़ के लिए जितना कुछ आज तक लिखा गया है वो सब लिखने वालों ने अपने अनुभवों के आधार पर लिखा है और आधार कभी भी गलत नहीं हो सकता पर मेरा मानना है की इश्क़ पर जितना कुछ लिखा गया है वो सब सच है पर कम है और हमें इसके लगातार जारी रखना चाहिए !
उसी क्रम में आज मैं अपने अनुभव को हु-ब-हु लिखने का प्रयास कर रहा हु !
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 
जाबित-कठोर 
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 
इश्क़ है;
जागते-जागते खोये रहना और;
सोते-सोते जागते रहना !

और मोहब्बत है;
सोते हुए की नींदों में भी;
अपनी मौजूदगी दर्ज़ करवाकर उसे होश में ला देना !
  
इश्क़ है;
सब-कुछ अपना होकर भी;
उन सभी पर अपना अधिकार खो देना!

और मोहब्बत है;
सब -कुछ पराया होने के बाद भी;
उसे अपना बनाकर उसी पराये का विस्तार करते रहना !

इश्क़ है;
जिसने हर बार तुम्हारे भरोशे को तोडा हो;
उसी की आँखों में एक अश्क़ की बून्द देखकर,
उसी पर एक बार फिर से वही भरोषा करना !

और मोहब्बत है;
उसी टूटे हुए भरोषे को फिर से;
एक अच्छे जुलाहे की तरह बुनना जिसे देख कर 
गांठ लगी होने का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सके !

इश्क़ है;
बंद आँखों से अपनी प्रियतमा से ठीक वैसे ही बात करना;
जैसे वो अभी-अभी उसके सामने आकर बैठी हो !

और मोहब्बत है;
दूर बैठे अपने आशिक़ को ये एहसास भी ना होने देना;
की विरह की उसी वेदना में वो भी जल रही है !

इश्क़ है;
सिलवटों से भरे बिस्तरों में,
अपनी प्रेयषी की खुशबू  को ढूँढना !

मोहब्बत है;
उन्ही सिलवटों में अपने जिस्म 
की बेकरारियाँ छोड़ जाना !

इश्क़ है;
पल-पल टूटकर;
टूटे हुए खुद को खुद-ब-खुद जोड़ना !

मोहब्बत है;
टूट-टूट कर जुड़े उस स्थूल को अपने स्पर्श से;
जाबित कर उसी से शीला भेदन करवा लेना !      

इश्क़ है;
खुद को पल-पल नरक में झोंक कर 
आने वाले पल में स्वर्ग की कामना रखना !

मोहब्बत है;
स्वर्ग और नरक की परिभाषा को ताक  पर रख कर 
मरते दम तक चाहते रहने की प्यास जगा देना !

इश्क़ है;
दो और दो चार आँखों से 
देखा गया सिर्फ एक सपना !

मोहब्बत है;
उस एक अजनबी के सपने को साकार 
करने के लिए दुनिया की सारी दहलीज़ों को लाँघ आना !

Thursday 29 November 2018

तुम्हे रब में विश्वास नहीं !

तुम्हे रब में विश्वास नहीं !
•••••••••••••••••••••••••••
जब-जब तुमने पूछा मुझसे 
"राम" मैं तुम्हे कैसी लगती हु
तब-तब मैंने यही तुमसे बोला  
तुम मेरे रब सी ही दिखती हो 
क्योंकि मैंने जब भी तुमको
अपनी प्रेममय आँखों से देखा 
तुझमे मैंने उस रब को देखा  
जो प्रेम में होते है उन्हें इस 
धरा के कण कण में भगवान 
बसे दिखाई देते है और जो 
प्रेम में नहीं होते उनको इंसानो 
में भी कोई सुन्दर और कोई 
बदसूरत दिखाई देता है पर 
मैंने कभी पूछ कर नहीं देखा  
बोलो मैं तुम्हे कैसा लगता हू 
चलो आज तुम बतलाओ मुझे
मैं तुम्हे कैसा लगता हु 
गर तुम्हारा जवाब है हां मुझे  
भी तुझमे एक रब दिखता है
तो ये बतलाओ तुम मुझे की 
कोई कैसे खुद को उस रब से 
दूर रख सकता है भला क्या तुम्हे 
उस रब में विश्वास नहीं बोलो ? 

Wednesday 28 November 2018

मेरे विस्तार की साख !

मेरे विस्तार की साख !
•••••••••••••••••••••••
मैं तो जब भी 
करती हूँ तुमसे 
बातें तब ही अपने 
आप को पूर्णतः पा 
लेती हूँ उसमे ना कोई
दिखावा,ना कोई छलावा
ना ही बनावट ना किसी   
तरह की कोई सजावट 
उस पल तो मैं बस अपने 
मन की परतों को खोलती 
जाती हूँ और तब तुम भी 
मेरे साथ-साथ मंद-मंद 
मुस्कुराते हो सिर्फ अपने 
होंठो के कोरों से और मेरी 
मस्ती मेरी चंचलता मेरा 
अल्हड़पन मेरा अपनापन 
मेरा यौवन तुम थाम लेते हो 
अपने हांथो में तब मैं सिहर 
उठती हूँ दूजे ही पल नाज़ुक 
लता सी लिपट जाती हूँ तुमसे 
मानकर तुम्हे अपने स्वयं के 
विस्तार की साख ! 

Tuesday 27 November 2018

तुम्हारे अधरों की सुवास !

तुम्हारे अधरों की सुवास !
•••••••••••••••••••••••••••
सुनो ये जो चाँद है 
ना ये जब आसमान 
में नहीं दिखता तब 
भी चमकता है कंही 
ओर जैसे मेरी नींद 
मेरी आँखों में नहीं 
होती तो भी वो होती है 
वंहा तुम्हारी आँखों में 
क्योकि वो जिस डगर 
से चलकर आती है ठीक 
उसके मुहाने पर ही बैठी 
रहती है तुम्हारी वो दो 
शैतान बड़ी-बड़ी और 
कारी-कारी आँखें और 
वही तुम्हारी ऑंखें मेरी 
आँखों की नींद को धमका 
कर रोक लेती है अपनी ही 
आँखों में और फिर पूरी रात 
मैं जगता हुआ तुम्हारे अधरों 
की सुवास की कोरी छुवन को 
अपनी आँखों की किनारी से 
उतर कर मेरे आंगन में एक 
लौ की तरह टिमटिमाते हुए 
देखने के लिए मेरी ज़िन्दगी 
के स्वरुप में जंहा तुम अंकित 
होती हो मेरे जीवन पृष्ठ पर 
मेरी ही ज़िन्दगी के रूप में !

Monday 26 November 2018

रिश्तों का कारवां !

रिश्तों का कारवां !
••••••••••••••••••

एहसासों की पगडंडियों 
पर रिश्तों का कारवां 
उम्मीदों के सहारे आगे 
बढ़ता जाता है लेकिन 
जिस दिन से एहसास 
कम होने लगते है, 
उस दिन से उम्मीदें
स्वतः ही दम तोड़ने 
लगती है और ज़िन्दगी 
की वो ही पगडंडियां जो 
कारवों से भरी रहती थी, 
वो उमीदों के रहते हुए भी 
अचानक सुनसान नज़र 
आने लगती है और ये 
उम्मीदें जो दबे पांव 
आकर हावी हुई रहती है, 
रिश्तो की डोर पर वो 
डगमगाने लगती है, 
लेकिन जो रिश्तों की 
डोर बुनी होती है, 
मतलब के धागों से 
वो टूट जाती है क्योंकि 
डोर होती है बुनी उसी 
विश्वास के धागो से 
जो बोझ उठा लेता है, 
उन सभी रिश्तों की 
उमीदों का !

Sunday 25 November 2018

एक नयी कहानी बुन लू !

एक नयी कहानी बुन लू !
•••••••••••••••••••••••••• 
आ आज पास तू मेरे
तुझे कुछ अपनी सुनाऊ
और कुछ तेरी सुन लू; 

सपने जो अधूरे है तेरे 
आ आज उनको फिर से 
अपनी पलकों से चुन लू;

मैं जो लिखता रहता हु 
इतना कुछ सिर्फ तुम पर 
आ आज फिर कोई नयी 
नवेली सी एक धुन चुन लू;

रिमझिम-रिमझिम सी 
इस इस ओस की रुत में
बावरा मेरा मन जो खोजे
आ आज तेरी खुली आँखों 
से एक नया स्वप्न देख लू;

आ आज फिर पास तू मेरे 
की अपने प्रेम की एक नयी 
कहानी मैं बुन लू !   

Saturday 24 November 2018

कुछ तो शेष रह जाये !

कुछ तो शेष रह जाये !
••••••••••••••••••••••• 

स्वाभिमान का दम्भ 
भरने वाला वो लड़का 
कैसे और क्यों तुम्हारी 
इतनी लापरवाहियां के 
बावजूद भी बंधा है अब
-तक तुम्हारे मोह-पाश में;

कैसे और क्यों तुम्हारी 
इतनी बेपरवाहियों के 
बावजूद भी उसके इश्क़ 
का रंग अब-तक फीका 
फीका नहीं पड़ा; 
  
कैसे और क्यों तुम्हारी 
इतनी नजरअंदाज़ीयों के 
के कारण वो तुमसे खफा  
होकर चला तो जाता है तुमसे  
कोसों दूर फिर भी क्यों लौट 
आता है वो हर शाम फिर से  
एक बार तुम्हारे पास;

देखो शायद उसने अब गिरा दी है 
अपने उसी स्वाभिमान की ऊँची-
ऊँची दीवारें जिसका वो पहले हर
पल यु दम्भ भरता फिरता था;

इसलिए ही तुम्हारी सारी 
लापरवाहियां,बेपरवाहियाँ,
और नज़रअंदाज़ीयाँ दीवारों 
के उस पार निकल जाती है;

पर सुनो इतना ख्याल रखना 
कुछ तो शेष रह जाये उसमे 
पहले जैसा वर्ण कंही ऐसा ना
हो की एक दिन तुम ही उसे 
पहचान ना पाओ इतने सारे 
बदलाव के बाद !  

Friday 23 November 2018

प्रेम होता है अलौकिक !



प्रेम होता है अलौकिक ! ••••••••••••••••••••••••• कैसे लौकिक इंसान का लौकिक प्रेम भी अलौकिक हो जाता है; वो सारे सितारे जो इतनी दूर आसमां की गोद में टिमटिमाते हुए भी; गवाह बन जाते है, उन प्रेमी जोड़ियों के जो सितारों के इतने दूरस्थ होने के बावजूद भी; उनकी उपस्थिति को अपने इतनी निकट स्वीकारते है की; अपनी हर बात को एक दूजे के कान में फुसफुसाते हुए कहते है; वो सितारे जो आसमां की गोद में अक्सर ही टिमटिमाते रहते है; वो ही इन प्रेमी जोड़ों के प्रेम के अलौकिक गवाह बन जाते है; इस लोक के प्रेम को अलौकिक प्रेम का  दर्जा दिलाने के लिए ! 

Thursday 22 November 2018

शाम खाली हाथ लौट गयी !

शाम खाली हाथ लौट गयी !
•••••••••••••••••••••••••••••
वो तुम्हारे वादे वाली 
शाम कब की आकर,
खाली हाँथ लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर उसके पीछे-पीछे 
सितारों वाली उजियारी,
रात भी बिन गुनगुनाये 
ही भरे दिल से लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर एक नयी आस वाली 
भोर आयी जो किसी को बिन, 
कुछ बताये उनमुनि सी लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर एक नयी दोपहर भी उन 
सब की ही तरह बैरंग लौट गयी 
और उसके ठीक पीछे-पीछे वही 
तुम्हारे वादे वाली शाम आयी;

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

काफी देर इधर-उधर अकेली 
टहलती रही और टहलती रही 
फिर थक कर के कुछ देर अपने
घुटनों में सर छुपाये भी बैठी रही;

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

काफी देर ढीठ की तरह बैठी रही
पर रात जब उसके सर पर आकर 
खड़ी हो गयी तब बे-मन से कुछ 
मन ही मन बड़बड़ाते हुए लौट गयी !  

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

गर ना हो पता तो कर लो पता
मुझे नहीं लगता अब वो शाम फिर
कभी लौट कर आएगी तुम्हारे द्वार !   

Wednesday 21 November 2018

क्या कभी तुमने सोचा है !

क्या कभी तुमने सोचा है !
•••••••••••••••••••••••••
क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

तेरा नाम, तेरा ख्याल 
मेरे दिल-ओ-दिमाग को
एक सकूँ दे जाता है; 

क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

कभी-कभी मैं ये भी 
सोचता हु की तेरे साथ
मेरे सपनो का भी एक 
रिश्ता है;

क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

तेरा एक ख्याल मेरे खाली  
पड़े मन को अचानक ढेरों 
सपनो से भर देता है;

क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

तेरा साथ मुझमे सदा 
कुछ-ना-कुछ भर देता है;

क्या कभी तूने भी 
ऐसे सोचा है बोलो 
बोलो ना क्या सच में 
तुमने कभी ऐसे सोचा है !  

Tuesday 20 November 2018

दर्द इश्क़ और मोहोब्बत !

दर्द इश्क़ और मोहोब्बत !
••••••••••••••••••••••••••

दर्द इश्क़ और मोहोब्बत 
शायद एक ही दिन पैदा 
हुए थे तभी तो तीनो के 
गुण और धर्म एकदम 
मिलते जुलते से है;

इश्क़ दर्द से पीछा छुड़ाने 
जब भी जाता है संकटमोचन
के द्धार तो वो उसे उसके हाथ
सौंप देते है आशीर्वाद के
स्वरुप  एक पता ;

इश्क़ ढूंढता उस पते को 
जब पहुँचता है एक द्धार
तो पाता है वंहा करता पहले
से किसी को उसका इंतज़ार;

इश्क़ जब प्रकट करता है 
उसके सामने वंहा आने का 
अभिप्राय तब वो बताती है 
उसे वंहा अपने आने का अभिप्राय;

दोनों आते है वंहा अपने अपने
दर्द से पाने को छुटकारा दर्द
इश्क़ और मोहोब्बत दोनों से 
दूर हो जाता है उनके अलग 
अलग विश्वास से आज्ञा पाकर !  

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !