Saturday 29 February 2020

उफनता सागर !


उफनता सागर !

सागर भरा है 
मेरी आँखों में तेरे प्यार का 
जो उफ़न आता है 
रह रह कर और बह जाता है 
भिगोंकर पलकों की कोरों को 
फिर रह जाती है
एक सुखी सी लकीर 
आँखों और लबों के बीच 
जो अक्सर बयां कर जाती है 
मेरे तमाम दर्दों को 
सुनो तुम रोक लिया करो 
उस उफनते नमकीन
से सागर को और फिर 
ना बहने दिया करो 
उन्हें मेरे कपोलों पर
क्योंकि देख कर वो 
सीले कपोल और डबडबाई
ऑंखें मेरी भर ही आता है 
तुम्हारे हिय का सागर भी !

Friday 28 February 2020

दर्द की सौगात !


दर्द की सौगात !

सुनो मैं आज बिलकुल 
भी नहीं रोई जानते हो क्यों !
क्योंकि मैं रो कर तुम्हारे 
दिए दर्दों को और हल्का 
नहीं करना चाहती !   
तुम्हारे दिए दर्द सौगात हैं 
मेरे लिए जिसको मैं किसी 
और से बाँट भी नहीं सकती !
दर्द की ये घुटन मेरे इन दर्दों 
को अपने आंसुओं से कहीं 
हल्का कर दे !
इसलिए ही तो आँखों में इन्हे 
कैद कर के मैंने अपनी पलकों 
पर पहरा बैठा रखा है ! 
ताकि तुम्हारे दिए दर्द यूँ ही 
सदा सहेजे रखूं मैं अपने ह्रदय 
के रसातल में ! 
सुनो मैं आज बिलकुल 
भी नहीं रोई जानते हो क्यों !

Thursday 27 February 2020

मेरी कमी !


मेरी कमी !

सुनो ये बे-मौसम 
बारिश बे-सबब नहीं है  
ये कुदरत भी अच्छी 
तरह से समझती है 
मेरे ज़ज़्बातों को भी 
अच्छी से जानती है 
और भीगा-भीगा सा 
ये मेरा मन अब 
छलकने को आतुर है 
पर मैं अपनी इन आँखों 
से हर बार तुम्हे वो   
जतलाना नहीं चाहती हूँ 
अपना भींगापन अपनी 
भींगी भींगी आँखों से 
आखिर मैं ही क्यों 
हर बात जतलाऊँ 
क्या तुम्हे मेरी कमी 
बिलकुल नहीं खलती है !    


Wednesday 26 February 2020

परवाह !


परवाह !

तुम लापरवाह हो 
यही सोच सोच कर 
मैं हर पल करता रहा
परवाह तुम्हारी 
पर अब लगता है 
मैं हर पल करता रहा 
जो परवाह तुम्हारी 
इसलिए तुम हो गयी 
लापरवाह इतनी 
पर अब ऐसा सोचता हूँ 
कि जब मैं नहीं रहूँगा
साथ तुम्हारे तब 
तुम्हे कचोटेगी ये 
तुम्हारी लापरवाही 
तब तुम्हे पता चलेगी 
कीमत उस परवाह की !

Tuesday 25 February 2020

प्रेम की ऊष्मा !


प्रेम की ऊष्मा !

जमा हुआ था 
हिमालय सा मैं  
सीने में थी बस 
बर्फ ही बर्फ 
ना ही कोई सरगोशी
ना ही कोई हलचल
सब कुछ शांत सा 
स्थिर अविचल सा 
फिर तुम आई 
स्पर्श कर मन को 
अपने प्रेम की ऊष्मा 
उसमें व्याप्त कर दी 
बून्द बून्द बन 
पिघल पड़ा मैं 
बादल बन कर 
बरस पड़ा मैं 
बादल से सागर 
बनने की ओर 
अग्रसर हूँ मैं !  

Monday 24 February 2020

पाक रूहें !


पाक रूहें !

ऑंखें सुराही बन 
घूंट-घूंट चांदनी को 
पीती रहीं !
इश्क़ की पाक रूहें
सारे अनकहे राज  
जीती रहीं !
रात रूठी रूठी सी  
अकेले में अकेली  
बैठी रही !
और मिलन के 
ख्वाब पलने में 
पलते रहें !
नींदें उघडे तन 
अपनी पैहरण खुद
ही सीती रही !
हसरतों के थान को 
दीमक लगी वक़्त की 
मज़बूरियों की !
बेचैनियों के वर्क 
में उम्र कुछ ऐसे ही 
बीतती रही !
ऑंखें सुराही बन 
घूंट-घूंट चांदनी को 
पीती रहीं !

Sunday 23 February 2020

सांसों के जखीरे !



सांसों के जखीरे !

आसमां के सितारे मचलकर  
जिस पहर रात के हुस्न पर 
दस्तक दें !
निगोड़ी चांदनी जब लजाकर 
समंदर की बाँहों में समा कर 
सिमट जाए !
हवाओं की सर्द ओढ़नी जब 
आकर बिखरे दरख्तों के 
शानों पर !
उस पहर तुम चांदनी बन 
फलक की सीढ़ियों से निचे 
उतर आना ! 
फिर चुपके से मेरी इन हथेलियों 
पर तुम वो नसीब लिख कर 
जाना !
जिस के सामीप्य की चाहत में 
मैंने चंद सांसों के जखीरे अपने  
जिस्म की तलहटी में छुपा 
रखे है !     

Saturday 22 February 2020

काँप गई मैं !


काँप गई मैं !

जब देखा आईना
तो देर तक हंसी मैं   
दुनिया को जब 
करीब से देखा 
तो काँप गई मैं
मेरे सर से जब 
जब गुज़रा पानी 
तो काँप गई मैं 
वो जब तक रहा 
रूबरू मेरे तब तक 
उसकी कद्र बिलकुल 
ही ना कर पाई मैं  
जब उस ने दूर 
जाने की ठानी 
तो काँप गई मैं ! 

Friday 21 February 2020

तेरी पाक निगाहें !


तेरी पाक निगाहें !

एहसास तेरी पाक 
निगाहों का मेरी सर्द 
सी निगाहों से इस कदर 
मिला कि फिर मैं इस सारी 
कायनात को पीछे छोड़कर 
सिर्फ तेरी उन पाक निग़ाहों 
में ही मशगूल हो गया !
तेरे दिल के पाक 
साफ़ आईने में जब 
देखा मैंने तसव्वुर अपना 
तब सारे ज़माने की मोहब्बत 
का हसीं एहसास भी जैसे फिर 
अधूरा अधूरा सा हो गया ! 
मैंने जब सुनी धीमी धीमी 
रुनझुन तेरे पांव में खनकती 
उस पायल की तब मंदिर में 
बजती हुई घंटी का पावन  
एहसास भी जैसे निरर्थक 
सा हो गया ! 

Thursday 20 February 2020

प्यार की गर्माहट !


प्यार की गर्माहट !

छोटी छोटी रुई के 
से टुकड़े आकाश से 
गिर कर बिछ जाते है 
पूरी की पूरी धरा पर
सफ़ेद कोमल मखमली 
चादर की तरह तेरा 
प्यार भी तो कुछ 
कुछ ऐसा ही है
बरसता है इन्ही रुई 
के फाहों की तरह 
और फिर बस जाता है 
मेरे इस दिल की सतह 
पर बिलकुल शांत श्वेत 
चादर की तरह उस में 
बसी तेरे प्यार की गर्माहट 
मुझे देती है हौसला 
जिस के सहारे मैं 
उबर सकू ज़िन्दगी 
की कड़ी धुप से !     

Wednesday 19 February 2020

उमंगो का दरिया !


उमंगो का दरिया !

चाँद से झरती झिलमिल 
रश्मियों के बीचों बीच उस 
मखमली सी ख़्वाहिश का 
सुनहरा सा बदन हौले से 
छू कर तुम सुलगा दो ना !
इन पलकों पर जो सुबह 
ठिठकी है उस सुबह को 
तुम अपनी आहट से एक 
बार जरा अलसा दो ना !
बैचैन उमंगो का जो दरिया 
पल पल अंगड़ाई लेता है 
पास आकर मेरे तुम उन 
सब को सहला दो ना !
फिर छू कर सांसों को मेरी 
तुम मेरे हिस्से की चांदनी 
मुझे फिर से लौटा दो ना !       

ख़्वाबों की राह !


ख़्वाबों की राह !

रात के चेहरों की 
सौग़ातें चुनती हूँ 
उलझे हुए ख़्वाबों 
की बरसातें बुनती हूँ
घुप्प होता अँधियारा 
उचटती हुई नींदें  
करवट दर करवट 
तड़पती हुई रूह
को देखती हूँ  
दीवारों की गुप-चुप
आवाज़ें सुनती हूँ 
छत पर सरकते हुए 
धुँधले साये अनबुझ 
आकृति का आभाष 
दिलाते रहते है 
उन साये के दिए 
हुए आशीष वचन
मैं सुनती हूँ और 
अधूरे ख़्वाबों के 
पुरे होने की राह 
देखती रहती हूँ !  

Tuesday 18 February 2020

उम्मीदों की कोंपलें !


उम्मीदों की कोंपलें !

उजालों के बदन पर 
अक्सर....
उम्मीदों की कोंपलें 
खिलती है....
जाने कितनी ख़्वाहिशों 
के छाले....
पल में भरते है पल में
फूटते है..... 
उड़ जाते है पल में 
छिटककर.....
हथेलियों से सब्र के 
जुगनू.....
और दिल का बैचैन 
समंदर.....
बिन आहट करवट
बदलता है.....
ठिठकी हुई रात की 
सरगोशी में.....
फुट-फुट कर बहता है 
ज़ज़्बों का दरिया.....
शिकवे आंसुओं की 
कलाई थाम.....
मेरे सिरहाने आकर 
बैठ जाते है !               

Monday 17 February 2020

ए ज़िन्दगी !


ए ज़िन्दगी !

ए ज़िन्दगी मैं तंग आ गया हूँ  
तेरे इन नाज़ और नखरों से 
तेरी इस बेरुखी और मज़बूरियों से 
तेरे किये हर एक झूठे वादों से 
जी चाहता है अब इन झंझावातों से 
निकल आऊं और बहु बहते पानी सा 
बहु मद्धम मद्धम बहते पवन सा 
झर झर झरते उस ऊँचें झरने सा
निश्चिन्त हो हल्का हल्का सा 
और एक दिन चुपचाप शांत हो जाऊँ  
इसी प्रक्रिया में तुमसे बहुत दूर चला जाऊँ 
तेरे इन नखरों से तेरी इस बेरुखी से 
तेरी इन मज़बूरियों और झूठे वादों से 
ए ज़िन्दगी मैं तंग आ गया हूँ !  

Saturday 15 February 2020

आरती के स्वर ?


आरती के स्वर ?

क्या रोज ही सुबह आरती के स्वर 
तुमसे खुद दुरी बना लेते है या 
तुम बनाती हो दूरियां उनसे ?
सुबह की आरती में भाव भरो 
कहते है भगवान चीज़ों के नहीं 
बस भावों के भूखे होते है ?
तो फिर क्यों नहीं होती तुम्हारी 
की हुई हर प्रार्थना पूरी बोलो?
आज सच सच बताओ ना मुझे 
क्या सच में तुम करती हो प्रार्थना 
उन्ही भावों के साथ जो भाव देखता हूँ ?  
मैं अक्सर तुम्हारी उन दोनों आँखों 
में हम दोनो के साथ पाने का ?
क्या रोज ही सुबह आरती के स्वर 
तुमसे खुद दुरी बना लेते है या 
तुम बनाती हो दूरियां उनसे ?

Friday 14 February 2020

हैप्पी वैलेंटाइन डे !


हैप्पी वैलेंटाइन डे !

आज मैं तुम से ये कहता हूँ  
तुम अपने राम की श्री बनो
तुम मेरे प्रेम की पर्याय बनो 
तुम मेरी आयु की रेखा बनो 
आज मैं तुम से ये कहता हूँ
तुम मेरे सांसो की सुगंध बनो  
तुम मेरी छवि की कान्ति बनो 
तुम मेरे जीवन का अर्थ बनो 
तुम मेरे भावो की अभिव्यक्ति बनो 
तुम मेरे अस्तित्व की रक्षिणी बनो 
आज मैं तुम से ये कहता हूँ
तुम मेरे काव्य की मधुर ध्वनि बनो 
तुम मेरे स्वप्नों की मल्लिका बनो
तुम मेरे अक्षरों की सियाही बनो 
तुम मेरे हृदय की अभिलाषा बनो
आज मैं तुम से ये कहता हूँ
तुम मेरे जीवन की विभूति बनो 
तुम मेरे पौरुष का ओज बनो 
तुम मेरे ओष्ठ की अबूझ प्यास बनो  
तुम मेरे अजिरा की तुलसी बनो
आज मैं तुम से ये कहता हूँ
तुम मेरे नैनों की ज्योत्स्ना बनो 
तुम मेरी अर्जित अकूत सम्पदा बनो 
तुम अपने राम की श्री बनो !

Thursday 13 February 2020

स्निग्ध स्पर्श !

Happy Kiss Day 

स्निग्ध स्पर्श !

ज़िन्दगी को इतने करीब से पहले 
कभी महसूस नहीं किया था मैंने
जब तुम्हारे होठों के स्निग्ध स्पर्श 
को पाया तो जाना मेरे भाग्य में 
लिखी सबसे बड़ी उपलब्धि हो तुम 
जब तुम्हारे होठों के स्निग्ध स्पर्श 
को पाया तो जाना कैसे कोमलता 
कठोरता को एक पल में तरल कर देती है 
जब तुम्हारे होठों के स्निग्ध स्पर्श 
को पाया तो जाना कैसे कोई शब्द 
इन होंठो से लगकर सुरीली धुन बन जाते है 
जब तुम्हारे होठों के स्निग्ध स्पर्श 
को पाया तो जाना इन्ही होठों से 
निकली पुकार प्रार्थना बन रिझा 
सकती है किसी भी रुष्ट देव को  
जब तुम्हारे होठों के स्निग्ध स्पर्श 
को पाया तो जाना मरने वाला कोई   
ज़िन्दगी को चाहता है कैसे ! 

Wednesday 12 February 2020

बाँहों के घेरे में !


बाँहों के घेरे में !

मेरी चाहत है...
तुम्हारी बाँहों की गोलाइयों में  
समाये हुए ज़िन्दगी के दिए तमाम 
दर्दो से निज़ाद पाने की !
मेरी चाहत है...
मौत की घनी ख़ामोशी को भी 
तुम पर लिखी दो चार प्रेम 
कविता सुनाने की ! 
मेरी चाहत है...
तुम्हारी इन्ही बाहों में रहकर  
एक बार फिर से उस छोटे से 
प्रखर को जीने की !
मेरी चाहत है...
तुम्हे उस माँ के सामने गले 
लगाने की जिनके लिए तुम 
आज तक नहीं निभा पायी हो 
अपने वो वादे जो तुमने किये थे 
मुझसे प्रेम कर के ! 
मेरी चाहत है...
बस चाहत है और चाहत पूरी हो 
ये भी तो जरुरी नहीं ना क्योंकि 
ये बस मेरी चाहत है ! 

Tuesday 11 February 2020

एक वादा करो !

एक वादा करो !

तुम..आज एक वादा करो मुझसे..
कि तुम यु ही अपनी आँखों कि गहराई में 
मेरी पूरी कायनात समाये रखोगी सदा !
तुम..आज एक वादा करो मुझसे..
कि जब कभी मैं अकेला बैठा मिलूं तुम्हे 
तो तुम चुपचाप पीठ पीछे आकर मेरी 
आँखें बंद कर पूछोगी की बोलो कौन हूँ मैं सदा ! 
तुम..आज एक वादा करो मुझसे..
कि तुम यु ही अपनी गोलाकार बाँहों के घेरे में 
मेरी तनहाईयों को गुम करती रहोगी सदा !
तुम..आज एक वादा करो मुझसे..
कि उम्र के उस पड़ाव में भी तुम यु ही मेरी 
ऊर्जा बनकर बहोगी मेरी रक्त कोशिकाओं में
जिस उम्र में अक्सर जीवन नीरस सा लगता है ! 
तुम..आज एक वादा करो मुझसे..
कि यु ही मेरा सारा दुःख दर्द और गुस्सा 
कंही खोता रहेगा पाकर के साथ तुम्हारा सदा !
तुम..आज एक वादा करो मुझसे..
कि तुम थाम कर मेरा हाथ अपने हाथों में 
सदा रहोगी आकर थोड़ा और करीब मेरे सदा !

Monday 10 February 2020

तुम्हारा टेडी बियर !


तुम्हारा टेडी बियर ! 

हां मैं रहूँगा तुम्हारे पास 
सदा बनकर तुम्हारे 
टेडी बियर सा !
बन तेरे हर एक सुख-दुःख 
का साथी सा जो दूर करे तेरी 
हर एक उदासी को !  
तेरे इस तंहा से जीवन में 
वो रंग भरे हर एक 
ऋतुओं का !
संग तेरे मैं ही चलूँ साथ 
तेरे ही हर पल रहु तेरे मन 
की सारी बातें चुपचाप 
मैं ही सुनूं ! 
सुबह जब तुम ऑंखें खोलो
तुम्हे बस एक मैं ही तुम्हारे 
सामने मिलूं !
रात को जब तुम सोने जाओ 
बाहों में अपनी मुझे ही भर कर 
तुम सो जाओ !
तेरी सारी खुशियाँ मैं ही बन 
कर एक तेरे ही संग मैं 
सदा-सदा रहूं !
हां एक मैं ही रहूं तुम्हारे पास 
सदा बनकर तुम्हारे 
टेडी बियर सा !

Sunday 9 February 2020

इज़हार !


इज़हार !

मैंने सुना है बोलते अक्सर  
तुम्हारी इन दोनों आँखों को ;
तब भी जब तुम नहीं थी , 
मेरे सामने बस मैं था और थी 
ये दो बोलती तुम्हारी आँखें ;
उन दोनों ने ही तो किया था 
सबसे पहले इकरार मेरे प्रेम का 
वो भी तुमसे बिना ही पूछे ;
और मैंने मान लिया था , 
उसके इकरार को ही प्यार ;
पर मुझे कहाँ पता था कि 
तुम करोगी मुझे प्यार यूँ 
बर्षों इतना परखने के बाद ;
जबकि तुम्हारी इन दोनों 
आखों में मेरी रूह आज भी 
ठीक वैसे ही मचलती है ;
जैसे वो मचली थी उस पहले 
दिन जब तुम नहीं थी सामने 
मेरे बस मैं था और थी वो दोनों  
बोलती तुम्हारी आँखें ;  
और हाँ मुझे पता है हर एक 
रूह की किस्मत में कहा लिखा 
होता है यूँ ही किसी ना किसी 
कि आँखों में मचलना !

"चॉकलेट डे"


"चॉकलेट डे"

चली आओ तुम की तुम्हे 
तुम्हारे लिए ला कर रखी  
वो डेरी मिल्क बुला रही है !
सुनो तुम उसी डेरी मिल्क 
कि तरह मुँह में रखते ही  
घुलने वाली हो नाम लेते ही 
दिल को पिघलाने वाली हो 
गले से उतरते ही शरीर के 
पुरे रक्त को मीठा कर 
देने वाली हो !
और सुनो तुम मुझे ठीक 
उतनी ही प्रिय हो जितनी 
तुम्हे प्रिय है वो डेरी मिल्क ! 
सुनो आज चॉकलेट डे है 
चली आओ तुम की तुम्हे 
तुम्हारे लिए ला कर रखी  
वो डेरी मिल्क बुला रही है !

Saturday 8 February 2020

हैप्पी रोज़ डे !




हैप्पी रोज़ डे ! 

आज "रोज डे " है , 
तो मेरे दिल ने मुझ 
से बड़े ही अदब से 
फरमाइश की है ; 
क्यों ना आज फिर
से तुम्हें गुलाब की
तरह गुलाबी होते
देखा जाए ;
ठीक वैसे ही जैसे
पहली बार मेरी ही
अंगुलियों का स्पर्श
पाकर तुम्हारी देह
के सारे रोम रोम खड़े
हो गए थे ; 
और चेहरे से गुलाबी
आभा झरने लगी थी ,
तो चाहा आज फिर से
एक बार मेरे गुलाब की
गुलाबी को पा लू ; 
मैं अगर तुम्हारा गुलाब
हूँ तो तुम उस गुलाब की
गुलाबी आभा हो ; 
तो चलो इसी बहाने
इस "रोज डे " पर ,
अपनी गुलाबी आभा
अपने गुलाब पर झार
दो ना तुम !
   

Thursday 6 February 2020

नामांकरण !


नामांकरण !

निष्प्राण ह्रदय की दहलीज़ 
पर अनुभूतियों के मानचित्र 
विद्रोह कर अपना अस्तित्व 
संजोने लगते है !
विवश होकर अभिव्यक्तियों 
के काफिले भी उसके साथ साथ  
चलने लगते है !
ये देख ये अश्कों के नगीने भी 
जैसे एक एक कर बिखरने उनकी 
राह को भिगोने लगते है !
फिर दिल के मलाल भी अनुबंधित 
होकर आक्रोश की तलहटी में 
एकत्रित होने लगते है !
तब भावाग्नि के उच्च ताप से 
पिघलकर शब्द भी जैसे स्वतः  
ही टपकने लगने है ! 
फिर तुम उनका नामांकरण करती 
हो और उसे "गुस्सा" कह कर पुकारती 
हो तब तो जैसे दिल रोने ही लगता है !       

Wednesday 5 February 2020

एहसास !


एहसास !

एक एहसास 
तुम्हारी अँगुलियों के पोरों में 
एक एहसास 
मेरी साँसों की गति में 
कोई कैसे जुदा करेगा 
एहसास से जुड़े हमदोनों 
के अनुबंधों को 
फिर भी सदा याद रखना 
अनुशाषित करते मेरे 
प्रतिबंधों को
मेरी और तेरी 
प्रीत का मदालस
एहसास काफी है 
ईश द्वारा नवाज़ी हुई 
ये ज़िन्दगी पुरे सकूँ से 
जीने के लिए !   

तेरा मेरा रिश्ता !


तेरा मेरा रिश्ता !

तेरे मेरे रिश्ते को 
सदा ही मैंने रखा है ;
और सभी रिश्तों और 
नातों से ऊपर बहुत ऊपर !
अपनों से परायों से 
रिश्तों से नातों से 
रितो से रिवाज़ों से 
रस्मों से समाजों से !
सच से झूठ से 
वर्तमान से भूत से 
आशा से निराशा से 
सुख से दुःख से !
जीवन से मृत्यु से 
भक्त से भगवान से 
हर एक चीज़ से 
हर एक इंसान से ! 
इतना ऊपर रखा कि
वो रिश्ता आज मेरे ही 
हाथ नहीं आ रहा है !  

Sunday 2 February 2020

मुखर प्रेम !


मुखर प्रेम !

एक नाम होंठों से 
फिसला और तैरने 
लगा हवा में !
एक स्वप्न आँखों में
छलका और ठहर 
गया भावों में !
ठीक उसी पल में 
मैंने जाना कितना 
मुश्किल है !
प्रेम को अभिव्यक्त 
कर पाना हु-ब-हु यूँ 
शब्दों में !
कितना मुश्किल है 
प्रेम के आगे यूँ मुखर 
हो पाना !
पर अगर दूसरा कोई
विकल्प हो ही नहीं 
जीवन में !
तो कितना आसान 
हो जाता है अभिव्यक्त
करना होकर मुखर 
प्रेम में !    

Saturday 1 February 2020

तन्हाई का एहसास !


तन्हाई का एहसास !

तेरे आने से पहले 
और 
तेरे जाने के बाद 
और 
तेरे रोने से पहले
और 
तेरे हंसने के बाद 
और 
तेरे दर्दों के पहले 
और 
तेरी खुशियों के 
बाद 
तेरी यादें तेरी ख़ामोशी
और  
तेरे दर्द तेरे आंसूं आकर 
पास 
मेरे मुझे घेर लेते है 
फिर 
मुझे तन्हाई का एहसास 
बिलकुल 
होने ही नहीं देते है !   

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !