Friday 31 August 2018

ज़िन्दगी का प्रेम

ज़िन्दगी का प्रेम 
------------------
मन तो नहीं पर 
कुछ तो लिखना है
क्योकि मैंने कहा था
उसे जब तक हु तब 
तक लिखता रहूँगा  
बाहर रात लगभग 
अब ठहर चुकी है
हाँ अंदर भले ही 
एक झंझावात से 
घिरा हुआ हु मैं आज  
लेकिन लिख रहा हूँ 
कई दिनों से ज़िंदगी 
को यु दौड़ते दौड़ते 
देखकर अब मेरा मन 
यु कर रहा है जैसे  
कुछ पलो के लिए 
रोक दू इसे और अपने 
आस-पास हो रहे इस 
दुनियावी शोर से  
खुद को कुछ दिनों 
के लिए अलग कर लू  
इन सब झंझावातों से 
चाहता हूँ कि थोड़ी देर के 
लिए ही सही लेकिन मैं 
अतीतजीवी हो जाऊँ 
और चुपचाप उस शांति
को महसूस कर तुलना 
करू वो ज्यादा सकूँ 
देता है या ये दौड़ धुप
करती ज़िन्दगी का प्रेम !  

Thursday 30 August 2018

सूरज चाँद बन जाता है



सूरज चाँद बन जाता है 
-------------------------
तेरी इन गोलाकार 
बाँहों में सिमटता 
फैलता सा मैं 
हर साँस तेरी को  
अपनी सांसो में 
समेट लेता हु और 
मैं बून्द-बून्द अपने  
अस्तित्व की तेरी 
रूह में उढेल देता हु  
तो ऐसा लगता है जैसे 
मैं मरते मरते भी थोड़ा 
और जी लेता हु और यु 
भी लगता है जैसे सूरज 
चाँद बन जाता है अपनी 
चकोर से मिलकर लेकिन    
यु कुछ पल का मिलना 
फिर कई रातों और दिनों
के लिए बिछुड़ना जैसे 
सूरज से चाँद बनने का 
अधिकार ही छीन लेना 
फिर निरंतर अपनी ही 
ऊष्मा में कितने दिनों 
तक जलना और मन 
में फिर से मिलने की 
चाह को मरने ना देना 
कैसे करता हु मैं ये सब  
क्या कभी महसूस पायी हो ?

Tuesday 28 August 2018

दिल का बिछौना

दिल का बिछौना 
-------------------
मैंने कहा और कई 
बार कहा तुम्हे मेरी  
आँखों में बसी हो तुम 
तुमने पूछा कहाँ दिखती  
तो नहीं मैंने कहा दिल में 
उतर जाती हो जैसे ही 
तुम्हारी नजर मेरी नज़रों  
को देखती है जैसे कई बार 
चाँद आसमां के पहलु से 
उतरकर झील के ठन्डे 
नर्म बिछौने में चला जाता 
है सोने थककर चकोर की 
लुका छुपी के खेल से उसी 
तरह तुम भी सोने चली 
जाती हो नरम नरम मेरे 
दिल के बिछौने पर जब भी 
मैं आना चाहता हु एक और 
बार तुम्हारे करीब बोलो ऐसा  
ही करती हो ना तुम अक्सर
मेरे साथ मुझे अपने बेहद 
करीब बुलाने के लिए !  

Monday 27 August 2018

ज़िन्दगी के सिक्त किनारें


ज़िन्दगी के सिक्त किनारें 
-----------------------------
दौड़ती भागती सी मेरी 
ज़िन्दगी में तेरे प्रेम की  
लहरों के बीचों बीच सिक्त 
किनारों पर कुछ पल जैसे 
ठहराव सा पाता हु और तब  
लिखता हु तुम्हारे प्रेम को तो  
बर्षो से दबी प्रेम की पिपासा 
को और पिपासित पाता हु 
तब अंदर ही अंदर कोलाहल 
मचाते मैं अपने ही भावों को 
कुछ लफ्ज सौंप देता हु और 
मुझे पता भी नहीं चलता इस 
दौरान मैं जिन भावों को अपने 
लफ्जों में नहीं बांध पाता वो कब 
अश्रु बन तेरी प्यासी धरा को भिगो 
जाते है फिर मेरी तन्हाईओं को तेरे 
मखमली तन की स्मृतियों में लपेटकर 
सुला देता हु और एक पल को मानो जैसे 
जन्मो का सकूँ मिल जाता है और जैसे 
दौड़ती भागती सी मेरी ज़िन्दगी में तेरे प्रेम की  ... 

Sunday 26 August 2018

पता है ना तुम्हे


पता है ना तुम्हे 
------------------
देखो अगले कुछ ही 
दिनों में फिर से दिन 
छोटे और रातें लम्बी 
होने लगेंगी और फिर 
यादें तुम्हारी मुझे इन 
लम्बी रातों में अकेले 
जागने को मज़बूर करेंगी 
और फिर पूरी की पूरी रात
गुनगुनाऊँगा मैं तुम पर लिखी
अपनी नयी-नयी प्रेम कवितायेँ
और वो बन जाएँगी मेरे प्रेम गीत 
जिन्हे में रातों के सबसे सुनसान 
लम्हो में माचिस की तीली की तरह
इस्तेमाल करूँगा अँधेरी रातों में अकेले
जागने के लिए तुम्हे तो पता ही होगा ना 
यु लम्बी रातें अकेले जागी नहीं जाती बोलो ?    

Saturday 25 August 2018

मतवाला और ज़िद्दी यौवन

मतवाला और ज़िद्दी यौवन 
---------------------------------------
सुनो काफी नहीं होती सिर्फ  
रूह की खूबसूरती इस ज़िद्दी 
और मतवाले यौवन को बांधे 
रखने एक ही खूंटे से सदा  
उसके साथ चाहिए होती है    
दैहिक सुंदरता भी जो आएगी 
जिस्म में जब तुम आदत 
डाल लोगी मेरी बाँहों से 
होकर गुजरने की और तब  
वो आदत एक रोज तुम्हे   
खूबसूरत से भी ज्यादा 
सुन्दर बना देगी जिससे  
तुम कर लोगी अपने वश 
में उस ज़िद्दी और मतवाले
यौवन को तब एक सिर्फ 
तुम ही छायी रहोगी सदा 
सबसे हसीं और खूबसूरत 
बनकर मेरे दिल ओ दिमाग 
पर यंहा तक की जब लोगो 
की नज़र में हो जाओगी तुम  
उम्रदराज समय के साथ तब 
भी मेरी नजर में और मेरी  
रचनाओं में रहोगी तुम यूं ही 
मनभरी सुन्दर यौवना सदा 
रूह की तरह मेरे होने तक !

Wednesday 22 August 2018

तुम्हे अपना बनाने की आस


तुम्हे अपना बनाने की आस 
-------------------------------
सुनो अगर लिख सको 
कुछ तो कोई पैगाम लिख दो 
तुम्हारी जिन्दगी के पल मेरी 
बची ज़िन्दगी के नाम लिख दो 
ताकि जब लूँ सांस आख़री तब 
भी बस एक तुम मेरे सामने रहो
इक तेरा ही नाम उस वक़्त भी 
मेरी जुबान पर हो और गर 
आसमा उस वक़्त रोये छुपकर 
कंही कोई कोने में और रात 
अगर बेहद सर्द हो तो याद रखना 
ओस की मोटी मोटी बूंदें मेरे प्रेम 
की गवाही में तुझे भीगोएंगी
उस वक़्त तुम अपनी ये धानी 
चुनर उतार कर भीगना ताकि 
मुझे तब भी तुम्हारे निकलते 
आंसू की जगह वो वजह ही दिखे 
जो दिखी थी उस पहले दिन जिस 
दिन देखते ही तुम्हे अपना दिल दे 
बैठा था ताकि एक बार फिर लौट 
कर आउ मैं यंहा तुमसे पहले 
तुम्हे फिर से अपना बनाने 
की ऐसी ही चाह लिए !

Tuesday 21 August 2018

मैं सूरज सा चाँद बन जाता हु !




मैं सूरज सा चाँद बन जाता हु !
---------------------------------- 
भर जाती है अक्सर 
आवाज़ उसकी जब 
वो मेरे दर्द की दास्ताँ 
दूर बैठी-बैठी भी सुनती है 
और मैं उसमे से भी निकाल
लेता हु कुछ नज्में और रच
देता हु एक नयी प्रेम कविता
जिसे सुनते ही वो खुद को 
रोक नहीं पाती और वो बस   
भागी-भागी चली आती है 
पास मेरे और मैं अपनी बाहें
फैला देता हु उसे अपनी
आगोश में भर लेने के लिए  
वो धूप सी आती है छाँव 
बनने की आरजू में मेरे लिए 
मेरे पास और मैं सूरज सा 
तपता दिन भर उसके लिए 
उस पल चाँद बन जाता हु !

Saturday 18 August 2018

प्रेम हो लेता है साथ



प्रेम हो लेता है साथ
-------------------------
प्रेम खड़ा होता है 
कभी जीवन की 
अकेली व सुनसान 
राहो पर तो कभी 
खड़ा होता है वह  
वक़्त के व्यस्ततम 
पलों के मुहानो पर   
जो साथ हो लेता है 
हर एक साहसी और  
और दुहसासी के जो 
उससे नजर मिलाकर 
सामना करने को 
रहता है तैयार 
 नहीं तो यही 
प्रेम कई बार कसता है 
ताने करता है किलोल  
उन पर जो हवाला देते है 
अपनी मजबूरियों का और  
जो करते है उसको दरकिनार 
किसी अनजान और दकियानूसी 
सोच की कर परवाह !!   

Friday 17 August 2018

तुम आओगी मेरे पास

तुम आओगी मेरे पास 
-------------------------
हाँ तुम्हे नसीब होंगे
सूरज की ऊष्मा के 
वो सभी टुकड़े जो 
मैंने समेटे है अपने 
आँचल में और वो 
भी जो होते है इकट्ठा 
मेरी ख्वाहिशों की 
गठरी में तुम्हारे 
जाने के बाद हां मैं 
नहीं करता तुम्हारी 
मज़बूरियों पर यकीं 
मुझे नहीं है भरोषा 
तुम्हारे चेहरे पर उभरते 
उस मज़बूरी के भाव पर 
क्योंकि मैंने पढ़ा है सुना
है की आँखों देखा और 
कानो सुना भी गलत हो 
सकता है इसलिए मुझे 
यकीं है सिर्फ मेरे मन पर  
जो हर पल मुझे एहसास 
दिलाता है की तुम्हे मुझसे 
वो बेइंतेहा प्यार है जो हीर 
को था अपने राँझा से और 
जिसके बल पर तुम भी एक
ना एक दिन अपनी सभी 
मज़बूरियों को अंगूठा दिखाकर  
कर आओगी मेरे पास वो भी 
सदा सदा के लिए बसाने अपना घर !  

Thursday 16 August 2018

विधाता की लेखनी



विधाता की लेखनी 
----------------------
हर बार तुमसे
हर बात कहने 
को दिल चाहता है, 
कभी खामोश हो 
जाने को जी चाहता है,
तो कभी तुम्हारे कहकसो 
में मेरी पनाह को तलाशने 
को जी चाहता है और कभी 
चाहता है रहना केवल बुने 
स्वप्नों में और कभी ये दिल 
चुनता है चंद पल नितांत ही 
अकेले के मानो वो है तेरे सबनम 
की तासीर के और कभी सोचता हु 
की मैंने जो कोरे कागज पर लिखे 
इतने अविनाशी अक्षर तेरी ही स्याही 
से वो अविनाशी अक्षर तेरी हथेलिओं  
पर लिख दिए होते तो विधाता भी 
मज़बूर हो जाती बदलने को मेरी 
तकदीर जो उसने लिख दी थी 
बिना जांचे मेरे इन प्रेम कर्मो को !

Wednesday 15 August 2018

ज़िन्दगी को मायने मिल गए !



ज़िन्दगी को मायने मिल गए !
----------------------------------
सुनो तुम्हारा यु सिर्फ 
मेरा होकर रहने के वादे 
से मेरे जीवन में खुशियो 
की झड़ी लग जाती है और  
मेरी अतृप्त आत्मा जैसे  
संतुष्टि की उस पराकाष्ठा 
पर पहुंच जाती है जंहा वो 
स्वच्छ और निर्मल होने के 
साथ-साथ पावन और पूजित 
सा अनुभव करने लगती है 
और मेरा ये मुख यु मुस्कुरा 
उठता है मानो किसी गरीब 
की कुटिया से भगवान भोजन 
कर जाते वक़्त उसे मन चाहा 
वरदान दे गए हो और उस से मिली 
असीम ख़ुशी से मेरा ये तन और मन 
इस कदर भीग जाता है जैसे कोई 
रेगिस्तान के पथिक को पानी की
निर्मल झील मिल गयी हो और मेरी   
खाली खाली सी बेवजह कट रही 
इस नीरस सी जिंदगी को जीने के 
खूबसूरत नए मायने मिल गए हो  !

Saturday 11 August 2018

तुम्हारा इकरार

तुम्हारा इकरार
---------------------
मैं तो सिर्फ अपनी कलम 
में भरी तुम्हारी ही स्याही 
से कोरे पन्नो पर अपने प्रेम 
की बेताब सी लकीरें खींचता हु 
उन लकीरों में कुछ मुमकिन सी 
आरज़ू भरता हु और जीता हु कुछ 
नेक पल उन बेहद खामोश लम्हों 
में जिससे मेरी तमाम उपेक्षाये 
तुम्हारी ओर मूड जाती है और
फिर वो तुमसे ना जाने कैसे और
कब तुम्हारा इकरार लिखवा लाती  
है उसके बाद जब तुम मेरे सामने 
आ जाती हो तब मेरे मन में जो 
भावों की माला उमड़ती है उन्हें 
मैं अपने शब्दों में पीरो कर उसे  
मैं तुम्हे पहनाकर तुम्हारा स्वागत 
अपने ह्रदयद्वार पर करता हु !

Wednesday 8 August 2018

दुःख या दर्द ना हो

दुःख या दर्द ना हो 
--------------------
जब तुम परेशान 
होती हो मेरे अलावा 
किसी और कारन से 
तो ना जाने क्यों मुझे 
बिल्कुल अच्छा नहीं 
लगता की तुम जरा 
भी परेशान रहो या 
रहो तकलीफ में या   
हो तुम्हे कोई भी दुःख 
या दर्द पता है मुझे ये 
मुझसे बिलकुल सहा 
नहीं जाता ना जाने क्यों 
ऐसा लगने लगता है जैसे  
तुम्हारी हर तकलीफ हर 
दर्द हर परेशानी मैं ले लू 
और अब तक लेता भी 
आया हु पर सुनो जब तुम 
मेरे लिए परेशान होती हो  
तो ना जाने क्यों मुझे 
बहुत अच्छा लगता है 
बस अच्छा नहीं लगता 
तो ये की तुम किसी और 
के लिए परेशां रहो ! 

Tuesday 7 August 2018

प्यास का कटोरा



प्यास का कटोरा
---------------------
अपने यौवन की 
कुछ बूंदें चुरा  
तुमने उढेल दी
मेरे प्यासे अधरों 
पर और मैंने भी 
उन्हें कुछ पल 
समेटा फिर उतार 
लिया अपने अंतर 
घट में पर ये क्या 
मेरी प्यास का कटोरा 
तो फिर से खाली
हो गया और मैं
एक बार फिर 
अपने हाथ में 
लिए यौवन का
कटोरा तेरे सामने
खड़ा हु एक बार  
फिर से मांगने 
तृप्ति की कुछ बुँदे !

Monday 6 August 2018

किरदार नहीं निभाया

किरदार नहीं निभाया
------------------------
तुम्हारी गुलामी मैंने स्वीकारी
क्यूंकि मेरी ज़िन्दगी और तुम्हारी 
ख़ुशी इसी में थी और इसमें तुम्हारा  
कुछ जाता नहीं दिख रहा था तुम्हे 
बेशक तुम्हारी बेड़ियों ने तुझे पहले 
से ही जकड रखा था मगर   
रूह तो आज़ाद थी तुम्हारी   
और तुम्हारा अपना कुछ 
वक्त भी था आज़ाद लेकिन 
कुछ पीछे छूट रहा था मेरा 
वो वक्त और आगे बढ़ता 
जा रहा था मैं उसके बीच में   
तुम खड़ी थी लेकिन थी स्थिर
गतिहीन और संतुष्ट पुरानी 
उन्ही बेड़ियों में जकड़े अपने 
शरीर को देखते हुए उसी पुराने
अंदाज़ में ज़ाहिर था अपनी 
इस कहानी में तुम्हारे प्रेम ने 
कोई किरदार अभी तक नहीं निभाया 
क्या ये सच में तुम्हारा प्यार है ?
कभी सोचना अकेले में बैठकर !

Sunday 5 August 2018

मनुहार व इकरार

मनुहार व इकरार
-------------------
कविताये समेटती है 
हमारे प्यार व तकरार के पल 
कविताये समेटती है 
पहली मुलाक़ात की ख़ुशी 
व जुदाई का दर्द भी 
कविताये समेटती है 
मोहब्ब्त के रंग और 
अभिव्यक्ति के ढंग भी 
साथ साथ समेटती है 
एक दूजे के द्वारा की 
गयी मनुहार व इकरार भी 
कविताये समेटती है 
कभी करार तो कभी 
इन्कार भी कभी स्वीकार 
तो कभी अंगीकार के पल भी 
कविताये समेटती है 
दिल ए बयान जिसमे 
रंग बदलती स्वांग रचती 
ख्वाब बुनती तो कभी 
चुनती है किरचें भी 
कविता का हर 
सफहा होता है 
दिल का आईना
हर लफ्ज़ होता है 
रूह की फरियाद ! 

Saturday 4 August 2018

मज़बूर इश्क की निशानियाँ


मज़बूर इश्क की निशानियाँ
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
एक तूफ़ान की ही तरह 
आया था तेरा इश्क अपनी 
सारी हदें लांघता हुआ
डुबो डाला था उसने मेरा 
सारा वजूद और मंजूर था 
मुझे खुद को खो देना 
मंजूर था मुझे तेरा नमक
सो लगा लिया मैंने गले उसे 
बनकर समंदर समां लिया 
तुझे बिलकुल अंदर अपने 
मगर अब भी है कुछ मोती 
अटके है मेरी नम पलकों पर 
जो लुढ़क आते है अक्सर 
मेरे गालों तक कि मज़बूर 
इश्क की निशानियाँ इतिहास 
मे कंही सहेजी नहीं जाती हैं 
मगर मैंने तो कसम खायी थी 
इस नाकामी को मिटा कर तुझे 
एक साहसी प्रेमिका बना तेरा
नाम भी इश्क़ के इतिहास में 
दर्ज़ करने की उसी कसम की 
कसम निभा रहा हु अब तक !

Friday 3 August 2018

तुम्हारा एक बोसा

तुम्हारा एक बोसा
-------------------- 
चेहरे पर पड़ती  
बारिश की बूँदें
मानों एक बोसा
तुम्हारा संग हवा 
के सरसराता छूकर 
निकला हो अभी अभी 
मेरे गालों को और 
उस रेशमी स्पर्श से 
बेवक्त ही खुल जाता है 
पिटारा उन सुकोमल  
तेरी यादों का जिन्हे 
समेटते सहेजते अक्सर  
ही छिले जाते हैं पोर 
मेरी उँगलियों के
बूँदे चाहे बादलों से 
टपकी हों या मन के 
घावों से रिसी हों
वो अपने पास रखती हैं 
चाभी चोरो की तरह 
यादों की तिजोरी की
चेहरे पर पड़ती बारिश 
की बूँदें मानो एक  ...!

Thursday 2 August 2018

एक भीगा सा मन भी होगा वंहा !

एक भीगा सा मन भी होगा वंहा !
---------------------------------- 
अच्छा ये बताओ तुमने 
नाचते हुए मोर देखे है ?
नहीं ना तो चलो आओ
मैं तुम्हे अपनी आँखों में
दिखाता हु तुम्हारी यादों 
में नाचते हुए मोर चलो  
आओ आकर पास मेरे 
मेरी इन भूरी-भूरी आँखों 
के कोलाहल भरे इस जंगल 
में झांको और देखो इनमे 
उमड़ते हुए दर्द के बादलों को 
वो कैसे लालायित रहते है हमेशा
झमाझम बरसने के लिए जैसे ही
ये बरसने शुरू होंगे तुम्हारी यादों के 
मोर अपने पंख पसारे नाचने लग जायेंगे
फिर बस वंहा मेरे ख्यालों में होगी तुम और 
तुम्हारा ख्याल होगा और होगी चाँद की रात 
और एक भीगे मन के साथ अपनी आँखों से 
करता हुआ झमाझम बरसात मैं भी होऊंगा वंहा !

Wednesday 1 August 2018

तुम्हारे होंठों के निशाँ

तुम्हारे होंठों के निशाँ
➖➖➖➖➖➖➖➖
अक्सर मुझे तुम 
अपने घर के अकेलेपन 
में महसूस होती हो 
मैंने देखे हैं तुम्हारे
होंठों के निशाँ अपने 
कॉफी प्याली पर और 
कई बार तुम्हारा वो 
पिंक गीला तौलिया
बाथरूम में पडा मुझे 
मुँह चिढाता है तुम्हारी
तरह जीभ निकाल कर 
सुनाई देती हैं मुझे तुम्हारी 
आवाज़ जब दिखती हैं 
तुम्हारी चप्पलें सारे घर में
मटरगश्ती करती हुई 
तुम्हारी महक से पता नहीं 
कैसे महकता रहता हूँ 
मैं दिन और रात आजकल 
यूँ ही मुस्कुराता हूँ मैं बेमतलब,
बेबात बेवज़ह 
बताओगी क्यों होता है ऐसा ? 
क्या तुम्हारे भी साथ ऐसा होता 
है मेरे इंतज़ार में या ये सब 
अद्भुद अकल्पनीय अविश्वनीय 
सिर्फ मेरे साथ घटित होता है !
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !