Wednesday, 22 August 2018

तुम्हे अपना बनाने की आस


तुम्हे अपना बनाने की आस 
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सुनो अगर लिख सको 
कुछ तो कोई पैगाम लिख दो 
तुम्हारी जिन्दगी के पल मेरी 
बची ज़िन्दगी के नाम लिख दो 
ताकि जब लूँ सांस आख़री तब 
भी बस एक तुम मेरे सामने रहो
इक तेरा ही नाम उस वक़्त भी 
मेरी जुबान पर हो और गर 
आसमा उस वक़्त रोये छुपकर 
कंही कोई कोने में और रात 
अगर बेहद सर्द हो तो याद रखना 
ओस की मोटी मोटी बूंदें मेरे प्रेम 
की गवाही में तुझे भीगोएंगी
उस वक़्त तुम अपनी ये धानी 
चुनर उतार कर भीगना ताकि 
मुझे तब भी तुम्हारे निकलते 
आंसू की जगह वो वजह ही दिखे 
जो दिखी थी उस पहले दिन जिस 
दिन देखते ही तुम्हे अपना दिल दे 
बैठा था ताकि एक बार फिर लौट 
कर आउ मैं यंहा तुमसे पहले 
तुम्हे फिर से अपना बनाने 
की ऐसी ही चाह लिए !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !