Friday 31 May 2019

प्रीत सवाल करती है !


कई सवाल मचलते हैं हर जवाब के बा'द ,
तेरे ख्याल से पहले और तेरे ख्याल के बाद ; 

ना जाने क्यूँ ये मेरा दिल धड़कने लगता है ,
तेरे आने से पहले और तेरे जाने के बाद ;

तेरी हर एक चाल से वाक़िफ़ थी ऐ मेरे हमदम , 
तेरे हर एक दाव से पहले हर एक दाव के बाद ; 

ना जाने क्यूँ तेरी यादें जीना मुहाल करती हैं ,
मेरे साँस लेने से पहले साँस लेने के बा'द ;

तेरी क़सम तेरा चेहरा ही रू-ब-रू था मेरे , 
तेरे मिलने से पहले तेरे मिलने के बा'द ;

कहाँ थे एक से हालात मेरे दिल-ओ-जाँ के , 
तेरा मेरे होने से पहले तेरा मेरा होने के बाद ;  

दिल-ए-नादाँ उसे याद कर जो साथ रहे ,
तेरे ज़वाल से पहले तेरे ज़वाल के बा'द ;

एक प्रीत ही मुसलसल सवाल करती है ;
प्रेम पाने से पहले और प्रेम पाने के बा'द !

Thursday 30 May 2019

मैं तो उसके पास थी !


बहकी हुई नज़र थी लेकिन फिर भी उदास थी ,
मय तो दूर थी उस से मगर मैं तो उसके पास थी ;

बे-शक उसने बुलाया जिसे वो रूठी हुई एक रूह थी ,     
मगर शिकस्त-ए-दिल में मेरे ज़िंदा मगर एक आस थी ;

गर तू मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छाया हुआ न था ,
तो वो हस्ती कौन थी जो मेरे दिल में समायी थी ;

अक्सर बारिशों में पेड़ों के पत्ते तो धुल ही जाते है ,  
मगर धरती कोख़ में अभी भी हरियाणे की प्यास थी ; 

कोंपलें जब भी आँख खोलती है तो क्या देखती है ,
उनकी हद्द-ए-नज़र तलक उनकी ये ज़मीं बे-लिबास थी ; 

दिल में एक ताज़ा खिला हुआ गुलाब था ,
मगर आँखों में सारी तमन्नाएँ उदास थी ;

इन दिनों मैं अक्सर यही सोचती रहती हूँ ,
वो कौन था जिस के लिए मेरे दिल में प्यास थी ! 

Wednesday 29 May 2019

इश्क़ और मोहब्बत !


तेरे साथ चलती हूँ तो जहान साथ आता है ,
जब तुझ से दूर रहती हूँ तो जहान खाने को दौड़ता है ;  

मेरे दर्द के हवाले से कितना बा-ख़बर है वो ,
मेरे बिन बहाए ही वो मेरी आँखों के आँसू चुन लेता है ; 

तीख़ी धूप ही तो मिलती है ज़र्द ज़र्द मौसम में ;
कल किसने कहा की तीख़ी धूप में मोहब्बत निखर जाती है ; 

तू ही बता ख़ाक-ए-दिल तुझे ले कर अब कहाँ कहाँ जाऊँ ,
हूँ तो मैं ज़मीं की मगर दिल आसमान पर आता क्यों है ;

मैं हिज्र के सातों समुंदर को पार कर के आई हूँ ,
गर अब भी तू ना मिला तो मरने का ख्याल आता है ; 

जब अदा-ए-वहशत के मिज़ाज़ पर मैं चलती हूँ ; 
तो गुलों से भरा सारा गुलिस्ताँ मुझ से रूठ जाता है ,  

नज़्म में मेरी जब भी ये जहान उसको देखता है ,
इश्क़ और मोहब्बत से चिढ़ने वाला ये जहान जल-भून जाता है !

Tuesday 28 May 2019

मैं हिद्दत में जलने लगी हूँ !


प्रेम के बीज फिर बोने चली हूँ 
तुम्हे तुम्हारा तुम लौटाने चली हूँ 

जुनूँ की ओर अपने क़दम बढ़ाने चली हूँ 
कली से अब मैं फूल होने चली हूँ  

ये मुमकिन तो नज़र आता नहीं है 
मैं ना-मुमकिन को मुमकिन करने चली हूँ 

समंदर आ गया मेरे मुक़ाबिल है 
जब उस ने देखा मैं सूखने चली हूँ 

यही नेकी मुझे ज़िंदा रखती है 
कि बोझ मैं अपनों का ढोने चली हूँ 

मुज़्तरिब ख़ुद को पा कर भी रहती हूँ  
यही सोच कर अब मैं खुद को खोने चली हूँ 

तेरी याद आँखों में मेरी उतर आई है 
तुझे पाने के लिए मैं अब सोने चली हूँ 

खुद की हिद्दत में अब मैं जलने लगी हूँ 
तेरे प्रेम की झमाझम बारिश में नहाने चली हूँ !

Monday 27 May 2019

मेरा चाँद सोता नहीं है !


हिज़्र की शब है फिर भी पूरा चाँद है  
दुःख है भरा पूरा और चाँद अधूरा है 

जैसे ही रात हुई और निकल आया चाँद है 
जैसे ही दिन हुआ और छुप गया चाँद है 

सोचो कैसी वहशत से गुजरा चाँद है 
तभी तो इतना सहमा सहमा हुआ चाँद है 
  
किसकी यादों की गलियों में आज चाँद है 
फिर भी तंहा अकेले घूम रहा उदास चाँद है 

सोचो नींद का कितना कच्चा ये चाँद है  
तारों की करवटों पर जाग उठता चाँद है 
  
सब ने कहा इसे ये भोला भाला चाँद है 
हर किसी की महबूबा को ताक रहा चाँद है 

किस किस के आँसुओं में नहाया चाँद है 
दिल दरिया सा तन सहरा सा  चाँद का है 

अपने इश्क़ में कितना सच्चा चाँद है 
आज भी चकोर के पीछे भाग रहा चाँद है 

आधी रात को भी जागता मेरा भी चाँद है 
तभी तो आज कल सोता नहीं मेरा चाँद है !

Sunday 26 May 2019

तेरा दिल बड़ा है !


एक मंज़िल और अलग अलग रास्ते है ,
ये ज़िन्दगी भी कितनी आसान और कठिन है ;

वो अगर मुझे अपना कुछ समय देता है ,
ये करम उसका क्या कुछ ज्यादा है ;

जो रुके हुए है वो सारे वो घुड़सवार है , 
जो चल रहे है वो सारे के सारे प्यादे है ;

शिद्दत-ए-दिल से पुकारना तुम मुझको ; 
लौ आऊंगा मैं ये मेरा तुमसे वादा है ,

फिर जो करने लगा तू नए नए वादे है ,  
ये तो बता तू क्या फिर से मुकरने का इरादा है ;

दुनिता का हौसला आजकल बड़ा तंग है ,
मैंने सुना है तेरा दिल कहीं ज्यादा बड़ा है !

Saturday 25 May 2019

तुम्हारे इश्क़ की बूंदें !


तुम्हारे इश्क़ की बूंदें !

मैंने तो गुजारिश की है , 
बस एक बून्द इश्क़ की ,
एक सिर्फ मुझे ही पता है ;
कीमत इस एक बून्द की !
कितना कुछ मुझे देती है  
तुम्हारे इश्क़ की ये बूंदें 
मुझको हमेशा रखती है 
पूरी तरह तर-बतर 
तुम्हारे इश्क़ की ये बूंदें 
तुम्हारे प्रेम का अंश है
तुम्हारे इश्क़ की ये बूंदें 
तुम्हारा प्यार बनती है 
तभी तो मुझे छूती है 
तुम्हारे इश्क़ की ये बूंदें
तुम्हारे जज्बात बनती है 
फिर कितना कुछ कहती है     
तुम्हारे इश्क़ की ये बूंदें 
मेघ मल्हार बनकर बरसती है
तभी तो मैं हरी-भरी तुम्हारे 
प्रेम की चादर ओढ़ती हूँ   
तुम्हारे इश्क़ की ये बूंदें 
कितना कुछ मुझे देती है !

Friday 24 May 2019

तेरी खुशबू !


विरह ये मिलन हो जाए ,
गर तेरा कोई कमाल हो जाये ; 

ज़िन्दगी मेरी गुलशन हो जाए ,
तू अगर मेरा दूल्हा हो जाए ;

ख्याल तेरा मेरी आयत हो जाए ,
तू अगर मुझ पर फ़िदा हो जाए ;

रत जगो की मिसाल हो जाए ,
आँखें तेरी बेदारियाँ में खो जाए ; 

तेरु खुशबू गर मेरा वज़ूद हो जाए ;
तो लम्हा ये तकमील-ए-हाल हो जाए !  

तू आ जा !


तू आ जा !

किस बहाने कहूँ तुझे 
की मेरे पास अब तो तू आ जा
थम ना जाये कहीं 
ये जुनूं की अब तो तू आ जा 
बन कर तू इस दिल का 
सकूँ ही अब तो तू आ जा
हो चली हूँ मैं अब तो नीली 
नीली की अब तो तू आ जा
किस से करूँ मैं बात तेरी 
की अब तो तू आ जा
कब से विरान है दिल मेरा 
की अब तो तू आ जा
अजिय्यत में अपनी ही 
ऑंखें मैं ही ना नोच लूँ 
की अब तो तू आ जा 
कब से तुझे बुला रही हूँ 
की अब तो तू आ जा
कल को ये भी ना कर पाऊं 
उस के पहले की अब तो तू आ जा

Thursday 23 May 2019

मेरी आदत !



तू नहीं पास मेरे मगर 
ऐसा भी नहीं की अकेलेपन 
की आदत है हमें 

एक तू ही तो है जिसकी 
सोहबत पसंद है हमें 
एक तेरी कुर्बत से ही तो 
हिज़रत है हमें 

सर सज़दे में झुका है 
ना समझना की अड़ने 
की आदत है हमें 
यूँ ही इबादत करने की 
तो आदत है हमें 

यूँ तो कई आफताब है 
इस जहाँ में मगर एक 
उसी सितारे से मोहब्बत 
की इज़ाज़त है हमें 

ठूँठ की तरह अकड़
कर नहीं रहते हरे-भरे 
दरख़्त जैसे मेहरबां लहज़े 
की तो आदत है हमें 

हर एक दर पर सर 
नहीं झुकाते पर जिस 
दर सर झुकाते है फिर 
उसी दर पर सकुनत है हमें 

कई जन्मों तक माँगा है 
तुझे उस खुदा से तभी तो 
मयस्सर तेरी कुर्बत है हमें !

Monday 20 May 2019

मेरी चाहत !


मेरे ख़ुदा चाहे किसी भी सूरत 
चाहे पर उसे मिला मुझ से 
या फिर तू ऐसा कर मुझे भी  
जुदा कर दे अब तू मुझ से  
मेरे वजूद का हिस्सा न रख 
अब और जुदा मुझ से 
वरना तू ही सोच तुझे 
खुदा कहूंगा अपने किस मुँह से 
वो चाहता तो कई 
सितारे तराशता मुझ से
शायद उसे सितारे पसंद नहीं 
वरना वो यूँ दूर न रहता मुझ से 
वो एक ख़त जो लिखा 
ही नहीं गया मुझ से 
वो अध लिखा खत आज 
भी मांगता है बाकी अनकहे 
सारे लफ्ज़ मुझ से 
किस की क्या मजाल जो  
उस को छीनता मुझ से
गर वो ही नहीं चाहता
दूर जाना मुझ से  
अभी ख़फ़ा है मोहब्बत 
का वो खुदा मुझ से 
तभी तो अता नहीं करता  
वो मेरी चाहत का फल मुझ से !

Sunday 19 May 2019

वो मुझे यूँ अपनी तरफ खींचती है !


वो मुझे यूँ अपनी 
तरफ खींचती है  
ख़ुशबू जैसे हवा को  
अपनी ओर खींचती है
आँखें नींदों को यूँ 
अपनी ओर खींचती है 
जैसे मुझ को इक ख़्वाब-सरा 
अपनी तरफ़ खींचती है
मौत सांसों को जैसे 
अपनी ओर खींचती है 
ठीक वैसे ही ये मौज-ए-बला 
मुझे अपनी तरफ़ खींचती है 
मोहब्बत इश्क़ को अपनी 
ओर ऐसे खींचती है  
नवजात देह जैसे रूह को      
अपनी तरफ़ खींचती है 
तेरी कोमलता मेरी कठोरता 
को यूँ अपनी ओर खींचती है 
जैसे एक बे-लिबास लिबास को   
अपनी ओर खींचता है ! 

Saturday 18 May 2019

तुम अगर सुनो !


तुम अगर सुनो, 
तो मैं खुद को तुम्हारी आन 
लिख सकता हूँ !
तुम अगर सुनो, 
तो मैं तुम्हारे जायके की जुबां 
लिख सकता हूँ !
तुम अगर सुनो, 
तो मैं फूलों को अपने लफ़्ज़ों में 
लिख सकता हूँ !
तुम अगर सुनो, 
तो मैं उस सहरा को भी मकां 
लिख सकता हूँ !
तुम अगर सुनो, 
तो मैं उस अनजान को भी अपनी 
जान लिख सकता हूँ !
  

Friday 17 May 2019

सुन !


सुन, 
तू आ और आकर
मेरे दिल की वीरान 
बस्ती में अपने प्यार की हलचल कर दे; 
सुन, 
मेरे ख्वाबों के हरे भरे
गुलिस्तां में तू आ और 
आकर उसे चाहे जंगल कर दे; 
सुन, 
तू आ और आकर 
मेरे होश उड़ा या चाहे 
तो मुझे पागल ही कर दे; 
सुन, 
मैं अधूरी हूँ अभी 
तू आ और आकर 
मुझे मुकम्मल कर दे; 
सुन, 
तू आ और आकर
वादी-ए-मोहब्बत की हर एक 
राह को अब तू जल -थल कर दे; 
सुन, 
तू आ और आकर
सर पर मेरे अपने प्यार 
का वो आसमान कर दे !

Thursday 16 May 2019

जन्मदिन !


जन्मदिन !

आज ही के दिन रात के लगभग, 
इसी वक़्त जब घडी में आठ बजकर 
दस मिनट हो रहे थे; 

मैं भी अपनी माँ के गर्भ से निकल 
कर उनके पैरों में आ गिरा था, 
जैसे गर्म तवे पर सिंकने के लिए 
एक आटे की लोई आ गिरती है; 

जो होती है बिलकुल नर्म-नर्म, 
जिसे समय खुद-ब-खुद आकार 
देता है; 

जैसा विधाता ने लिखकर भेजा होता है, 
उसका भाग्य जिसे करना ही होता है, 
उसे सहर्ष स्वीकार और कितने गर्व 
की बात है; 

कि हर एक बच्चा गवाह होता है, 
अपने माँ-और पिता के अनुराग का,  
ठीक वैसे ही जैसे; 

आज कोई मुझे चाहे या ना चाहे 
लेकिन हूँ तो मैं भी निशानी अपने 
माँ-पिता के प्रेम और अनुराग का ही !

Wednesday 15 May 2019

बाजार-ए-दिल !


बाजार-ए-दिल !

मुझे कतई ये अंदाज़ा ना था, 
की जब तुम जीना जीना मेरे; 

इस दिल में उतरोगे तब उस के सारे, 
बसंत को पतझड़ में बदल दोगे;

मुझे कतई ये भी अंदाज़ा ना था, 
की जब तुम आओगे तो साथ अपने;

जन्नत और जहन्नुम दोनों लाओगे,
ख़ुशी के आँसूं और गम के झरने दोनों; 

दोनों एक साथ ही फूटेंगे और मेरे,  
फैलाये दामन में तसव्वुर से कहीं आगे,
का सुख और दुःख दोनों अता होगा; 

जरा सोचो तुम बाजार-ए-दिल में इस, 
से बुरा होता भी तो क्या होता !

Tuesday 14 May 2019

घूर्णन गति परिक्रमण गति !


घूर्णन गति परिक्रमण गति !

तुम जब जब होती हो साथ मेरे, 
चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है;

तुम जब जब होती हो दूर तब त्वरित गति से, 
फैले प्रकाश को अँधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है; 

और मेरे चारो ओर छा जाता है घुप्प अँधेरा,  
इस मनःस्थिति में दुख ही दुःख पीडा ही पीड़ा छा जाती है;

मेरी काया के चारो ओर ऐसे में बसंत मेरे द्वार, 
पर खड़ा दस्तक दे रहा हो तो भी मुझे कहाँ सुनाई देता है; 

जिस के फलस्वरूप बसंत बैरंग लौट जाता है, 
मेरे द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा; 

घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक जाती है,
जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगने लगते है; 

उसे अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम ही सोचो, 
कितना फर्क पड़ता है एक तुम्हारा साथ न होने पर !

Monday 13 May 2019

प्यार रूठा है !


यहाँ हर तरह  
बनावटी चेहरे हैं 

हाल-ए-दिल अपना  
मैं किसे बताऊ 

जो ख्वाब-ए-मुसलसल 
अरमान मेरा है 

वही ख्वाब टुटा है 
वही प्यार रूठा है 

जब से खफा है
नज़र ने रंग अपने 
सारे खो दिए है 

किसे और क्या बताऊ 
जुबां चुप है मगर सर से 
पाँव तक जाहिर हु मैं

ये दिल की लगी है 
किसे और क्या बताऊ मैं 
किसे और क्या दिखाऊ मैं !

Sunday 12 May 2019

माँ !


माँ !

जिंदगी नाम की जो ये किताब है, 
उस किताब की जिल्द "माँ" है; 

जब किताब की जिल्द फट जाती है, 
उस किताब के पन्ने भी जल्द बिखर जाते है;

इसलिए किताब की जिल्द को संभाल, 
कर रखने की जिम्मेदारी भी हम-सब की है;

ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार जिल्द अपने, 
पन्नो को रखती है बाहरी परिवेश से संभाल कर; 

जिल्द बिना इस ज़िन्दगी नामक किताब, 
की कल्पना भी जैसे बेमानी सी लगती है; 

मोह ममता के सारे ताने-बानो से बनी ये जिल्द, 
अपने पन्नों को सदा खुद में थामे रखती साथ है;

क्योंकि माँ नुमा ये जिल्द अपने पन्नों, 
को कभी बिखरते हुए नहीं देख सकती है !   

Saturday 11 May 2019

रिश्ते नाते


खिले हैं गांवों में भी, 
नफरत के फूल धीरे-धीरे;

जैसे पांव की धुल पहुँचती है, 
सरों तक बड़े धीरे-धीरे;

अभी कुछ महीने लगेंगे, 
उन पेड़ों पर फल आने में;

फिर बदल जायेंगे लोगों,  
के पाले भी धीरे-धीरे;

घाटे के कोई रिश्ते नाते,
उम्र भर कायम नहीं रहते;

टूट ही जाता है एक ना एक दिन,
झूठ का रिश्ता भले ही धीरे-धीरे; 

उसे जुर्म इकरार करने दो पहले, 
फिर हर इलज़ाम वो कर ही लेगा, 
कुबूल अपने भले ही धीरे-धीरे;

गर ऐसा ना हुआ तो ये धरती भी, 
एक ना एक दिन बंज़र हो जाएगी, 
गुलों की जगह बबूल ले लेंगे धीरे-धीरे ! 

Friday 10 May 2019

मैं तुम्हे सदैव पुकारना चाहता हूँ !


मैं तुम्हे सदैव पुकारना चाहता हूँ,  
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में;

मैं तुम्हारे नाम का अनुवाद करना चाहता हूँ,  
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में;

मैं प्रतीक्षा का प्रयाय खोजना चाहता हूँ, 
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में;

मैं प्रेम में प्रतीक्षा की सीमा खोजना चाहता हूँ,   
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में;

मैं बस एक तुम्हारी कामना करना चाहता हूँ 
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में;

मैं बस एक तुम्हे पुकारना चाहता हूँ  
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में;

मैं तुम्हारे नाम का अनुवाद करना चाहता हूँ,  
संसार में बोली जाने वाली समस्त 
बोली जाने वाली भाषाओँ में !

Thursday 9 May 2019

मिटटी धुप और पानी !

मिटटी धुप और पानी !

कई बार और कई ऐसी जगह भी, 
अंकुरण मैंने देखा है;

जैसे दो ईंटो के बीच से अंकुर को, 
फूटते हुए मैंने देखा है;

ऊँची-ऊँची दीवारों पर पीपल को भी, 
उगते हुए भी मैंने देखा है;

मेरी नज़र में ये मिलन बस यही कहता ,है
जंहा जरा सी मिटटी को मैंने देखा है; 

जंहा जरा सी धुप को मैंने देखा है,
जहा जरा सी नमी को मैंने देखा है; 

वहा वहा एक अंकुर के अस्तित्व को, 
भी मैंने देखा है; 

जहा भी मिटटी धुप और पानी को, 
एक साथ देखा है मैंने, 

स्त्री को मिटटी पुरुष को धुप प्रेम को पानी,
होते हुए देखा है मैंने !

Wednesday 8 May 2019

खामोश मोहोब्बत !

खामोश मोहोब्बत !

एहसास, 
जज़्बात, 
अपनापन, 
और एक दूजे, 
को तबज्जों देने, 
की बेहतरीन कोशिश, 
और अपने राजदार पर, 
ठीक खुदा के जैसा भरोषा,
तब जा कर एक खामोश, 
मोहब्बत सीने में पल कर, 
नव यौवना हो पाती है, 
और ज़िन्दगी के तौर, 
तरीके सिखाती है, 
जीने का हौंसला, 
देती है तब जा कर, 
वो खामोश मोहोब्बत, 
लफ़्ज़ों में बयां हो पाती है !

Tuesday 7 May 2019

अंधेरों को कोसते लम्हे !

अंधेरों को कोसते लम्हे !
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
जिस तरह किसी, 
मुफ़लिस की तकदीर का, 
सितारा बहुत दूर कहीं अँधेरी, 
राहों में भटक कर दम तोड़ रहा है; 
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
शाम होते ही बस्ती, 
का चप्पा-चप्पा घुप्प, 
अंधेरों में डूब जाता है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
ऐसे में सुनने की, 
ताकत से सरगोशियां, 
करते हुए सन्नाटें है, और 
अंधेरों को कोसते हुए लम्हे है; 
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
और दूर से आती हुई, 
किसी बेबस की पुकार, 
जब एहसासों से टकराती है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
तब थरथराते हुए, 
वज़ूद दुआओं में लीन, 
हो कर ख़ुदा को आवाज़ देते है !

Monday 6 May 2019

ये भी जरुरी नहीं !

ये भी जरुरी नहीं !

बस पल दो पल की बात है, 
फिर क्यों उदास होते हो तुम;
बे-सबब क्यों परेशां होते हो तुम; 

बोलो तुम्हे किस बात का गम है,
क्यों ऐसे उदास रहते हो तुम; 

देखो इन नज़ारों को मस्त झरनों को, 
नदियों और पहाड़ों को सूरज चाँद और सितारों को; 

गलियों को रौनक भरे बाज़ारों को, 
शायद तुम अब बहल जा ओ; 

सोचो जब आये थे तुम, 
इस तरह रो रहे थे तुम; 

जैसे किसी ने तुम्हारे हाथों से, 
सुन्दर खिलौना छीन लिया हो; 

फिर जो कुछ पाया यहीं से पाया, 
जो कुछ दिया यहीं पर तो दिया; 

बस पल दो पल की बात है, 
फिर क्यों उदास होते हो तुम; 
बे-सबब क्यों परेशां होते हो तुम !

Sunday 5 May 2019

ये भी जरुरी नहीं !


ये भी जरुरी नहीं !

ये जरुरी नहीं की हर दिन अच्छा दिन 
सा ही बीते, फिर भी जीओ ऐसे जैसे, 
आने वाला दिन अच्छा दिन ही होगा;  

ये भी जरुरी नहीं की आप जिन्हे प्यार करे,  
वो सब आपको भी प्यार करे ही, फिर आप 
प्यार करते रहे, ऐसे जैसे एक ना एक दिन 
कोई ना कोई तो आपको वैसा ही प्यार करेगा; 

ये भी जरुरी नहीं की वो सब भी आपसे, 
सच बोले जिन से आप कभी भी झूठ
बोलते ही नहीं है, फिर भी आप सच बोलते 
रहे, इस उम्मीद में की सच रिश्तों की नीव  होती है; 

ये जानते हुए भी की जीवन में सारे, 
लेन देन बराबर नहीं होते, फिर भी 
आप अपनी ईमानदारी बरतते रहे; 

क्योंकि ये जरुरी नहीं की, वो भी आपके 
साथ ईमानदार बने रहे, जिन सब के साथ 
आज तक आपने ईमानदारी बरती है; 
  
ये जरुरी नहीं की हर दिन अच्छा दिन 
सा ही बीते, फिर भी जीओ ऐसे जैसे 
आने वाला दिन अच्छा दिन ही होगा !  

Saturday 4 May 2019

ऐ इश्क़ !

ऐ इश्क़ 

ये दिल मेरा एक कोरी किताब है मगर 
इस में चाहतों की कोई कहानी ना लिखना तुम 
क्योंकि चाहतों की हर एक कहानी उदास 
आँखों से बहार झांकती है याद रखना तुम 
ऐ इश्क़ 
इसे तुम उदास चेहरों पर ही लिखना 
मेरी मानो तो तुम दिल की कोरी किताब 
पर ही गुजरे पलों की दास्ताँ लिखना तुम
ऐ इश्क़ 
ये दिल की जो उपजाऊ जमीं है तुम उस पर 
खुशियों के अलग अलग रंग भरना चाहे उसे 
लाल-लाल गुलाब से सजाना तुम 
ऐ इश्क़ 
मोहब्बत का ये हिमालय सा सीना भटकते 
रहने का एक रास्ता है ये याद रखना तुम 
ऐ इश्क़ 
बहुत बुलंदी पर पहुंचने वालों को मंज़िल की 
खोज खबर नहीं रहती याद रखना तुम 
ऐ इश्क़ 
मेरी बात मानो ये दिल मेरा एक कोरी किताब सही 
मगर इस में चाहतों की कोई कहानी ना लिखना तुम !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !