वो मुझे यूँ अपनी
तरफ खींचती है
ख़ुशबू जैसे हवा को
अपनी ओर खींचती है
आँखें नींदों को यूँ
अपनी ओर खींचती है
जैसे मुझ को इक ख़्वाब-सरा
अपनी तरफ़ खींचती है
मौत सांसों को जैसे
अपनी ओर खींचती है
ठीक वैसे ही ये मौज-ए-बला
मुझे अपनी तरफ़ खींचती है
मोहब्बत इश्क़ को अपनी
ओर ऐसे खींचती है
नवजात देह जैसे रूह को
अपनी तरफ़ खींचती है
तेरी कोमलता मेरी कठोरता
को यूँ अपनी ओर खींचती है
जैसे एक बे-लिबास लिबास को
अपनी ओर खींचता है !
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