Thursday, 16 May 2019

जन्मदिन !


जन्मदिन !

आज ही के दिन रात के लगभग, 
इसी वक़्त जब घडी में आठ बजकर 
दस मिनट हो रहे थे; 

मैं भी अपनी माँ के गर्भ से निकल 
कर उनके पैरों में आ गिरा था, 
जैसे गर्म तवे पर सिंकने के लिए 
एक आटे की लोई आ गिरती है; 

जो होती है बिलकुल नर्म-नर्म, 
जिसे समय खुद-ब-खुद आकार 
देता है; 

जैसा विधाता ने लिखकर भेजा होता है, 
उसका भाग्य जिसे करना ही होता है, 
उसे सहर्ष स्वीकार और कितने गर्व 
की बात है; 

कि हर एक बच्चा गवाह होता है, 
अपने माँ-और पिता के अनुराग का,  
ठीक वैसे ही जैसे; 

आज कोई मुझे चाहे या ना चाहे 
लेकिन हूँ तो मैं भी निशानी अपने 
माँ-पिता के प्रेम और अनुराग का ही !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !