हिज़्र की शब है फिर भी पूरा चाँद है
दुःख है भरा पूरा और चाँद अधूरा है
जैसे ही रात हुई और निकल आया चाँद है
जैसे ही दिन हुआ और छुप गया चाँद है
सोचो कैसी वहशत से गुजरा चाँद है
तभी तो इतना सहमा सहमा हुआ चाँद है
किसकी यादों की गलियों में आज चाँद है
फिर भी तंहा अकेले घूम रहा उदास चाँद है
सोचो नींद का कितना कच्चा ये चाँद है
तारों की करवटों पर जाग उठता चाँद है
सब ने कहा इसे ये भोला भाला चाँद है
हर किसी की महबूबा को ताक रहा चाँद है
किस किस के आँसुओं में नहाया चाँद है
दिल दरिया सा तन सहरा सा चाँद का है
अपने इश्क़ में कितना सच्चा चाँद है
आज भी चकोर के पीछे भाग रहा चाँद है
आधी रात को भी जागता मेरा भी चाँद है
तभी तो आज कल सोता नहीं मेरा चाँद है !
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