Thursday, 9 May 2019

मिटटी धुप और पानी !

मिटटी धुप और पानी !

कई बार और कई ऐसी जगह भी, 
अंकुरण मैंने देखा है;

जैसे दो ईंटो के बीच से अंकुर को, 
फूटते हुए मैंने देखा है;

ऊँची-ऊँची दीवारों पर पीपल को भी, 
उगते हुए भी मैंने देखा है;

मेरी नज़र में ये मिलन बस यही कहता ,है
जंहा जरा सी मिटटी को मैंने देखा है; 

जंहा जरा सी धुप को मैंने देखा है,
जहा जरा सी नमी को मैंने देखा है; 

वहा वहा एक अंकुर के अस्तित्व को, 
भी मैंने देखा है; 

जहा भी मिटटी धुप और पानी को, 
एक साथ देखा है मैंने, 

स्त्री को मिटटी पुरुष को धुप प्रेम को पानी,
होते हुए देखा है मैंने !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !