ये भी जरुरी नहीं !
बस पल दो पल की बात है,
फिर क्यों उदास होते हो तुम;
बे-सबब क्यों परेशां होते हो तुम;
बोलो तुम्हे किस बात का गम है,
क्यों ऐसे उदास रहते हो तुम;
देखो इन नज़ारों को मस्त झरनों को,
नदियों और पहाड़ों को सूरज चाँद और सितारों को;
गलियों को रौनक भरे बाज़ारों को,
शायद तुम अब बहल जा ओ;
सोचो जब आये थे तुम,
इस तरह रो रहे थे तुम;
जैसे किसी ने तुम्हारे हाथों से,
सुन्दर खिलौना छीन लिया हो;
फिर जो कुछ पाया यहीं से पाया,
जो कुछ दिया यहीं पर तो दिया;
बस पल दो पल की बात है,
फिर क्यों उदास होते हो तुम;
बे-सबब क्यों परेशां होते हो तुम !
बस पल दो पल की बात है,
फिर क्यों उदास होते हो तुम;
बे-सबब क्यों परेशां होते हो तुम;
बोलो तुम्हे किस बात का गम है,
क्यों ऐसे उदास रहते हो तुम;
देखो इन नज़ारों को मस्त झरनों को,
नदियों और पहाड़ों को सूरज चाँद और सितारों को;
गलियों को रौनक भरे बाज़ारों को,
शायद तुम अब बहल जा ओ;
सोचो जब आये थे तुम,
इस तरह रो रहे थे तुम;
जैसे किसी ने तुम्हारे हाथों से,
सुन्दर खिलौना छीन लिया हो;
फिर जो कुछ पाया यहीं से पाया,
जो कुछ दिया यहीं पर तो दिया;
बस पल दो पल की बात है,
फिर क्यों उदास होते हो तुम;
बे-सबब क्यों परेशां होते हो तुम !
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