Thursday 31 August 2017

गवाह है सितारे

गवाह है 
वो सारे सितारे
जो आसमा की गोद
में अक्सर टिमटिमाते 
हुए देखते है उन प्रेमी 
जोड़ो को जो सितारों 
के इतने दूरस्थ होने के
बावजूद भी ये जोड़े 
उनकी उपस्थिति को 
स्वीकारते हुए
हर बात फुसफुसाते 
हुए ही कहते है 
एक दूजे के कानो में
वो जो सितारे यही 
वो गवाह है और गवाह 
रहेंगे इन प्रेमियों के 
प्रेम के सदा 

Wednesday 30 August 2017

अद्वैत की परिभाषा

वह चुप है और 
अब तो मैं भी
हो गया हु चुप्प 
वह पीती है चाय-कॉफी  
जब कि मैं कुछ पीता ही 
नहीं हु बहुत कुछ 
अलग है हम दोनों में.
पर मैंने सुना था जब
आप किसी को बेइंतेहा 
चाहते हो तो दो इंसान
दो रहते ही नहीं वो
दोनों एक हो जाते है 
पर शायद उसकी 
सोच अलग है इसलिए
वो आज तक नहीं समझ पायी 
अद्वैत की परिभाषा 

Tuesday 29 August 2017

डूब रहा हूँ... मैं


वो भूरी-भूरी लहरें...
तुम्हारी आँखों की...
खींच ले जाती थी मुझे...
गहराइयों में 
भूरी ...भूरी ...
कोई रंग नहीं भूरे के सिवा 
और मेरे पास नहीं था  
प्रेम का अनुभव...
और न ही थी नाव कोई ...
अगर मैं तुम्हें प्रिय हूँ 
तो लो थाम मेरा हाथ 
क्योंकि मैं सर से पैर तक... 
चाह ही चाह था  
और उसी चाहत में 
डूब रहा हूँ मैं... अब 
पानी के नीचे सांस ले रहा हूँ मैं! 
डूब रहा हूँ... मैं 

Monday 28 August 2017

तुम्हारा हाँथ थामूंगा

सोचा था मैंने
तुम जो हमेशा
आगे-आगे चलती
हो हमेशा ही मेरे 
एक दिन अचानक 
तुम्हारा हाँथ थामूंगा 
और कितना सहज हो 
जायेगा सब कुछ
चीज़ें लोग और मेरे
शब्द भी जो कठोर 
लगते है तुम्हे मेरी    
जिह्वा पर, लेकिन 
मुझे क्या पता था 
तुम्हे मेरा हाथ 
पकड़ कर चलना 
इतना अखरेगा की
तुम हाथ छुड़ा 
दूर चली जाओगी 

Saturday 26 August 2017

जड़ों को काटना

गर हो मेरी प्रिय तो 
तो सिखाओ मुझे अब
ना चाहना भी 
इतना चाहा है मैंने तुम्हे
पर चाह मिली ही नहीं 
और सिखाओ मुझे 
गहरी फैली प्रेम की 
जड़ों को काटना अब 
ताकि मेरी बचे अश्रु 
मेरी आँखों में ही 
दम तोड़ सके 
भनक ना लगे तुम्हे उनकी 
और फिर मेरा प्रेम कर सके 
अपनी ही हत्या 

Friday 25 August 2017

तुम हो मेरी सखी ?

सच में अगर 
तुम हो मेरी सखी  ?
तो मेरी मदद करो 
ताकि मैं रह सकू 
तुम्हारे बगैर अब 
और अगर हो मेरी प्रेमिका ?
तो भी करो मदद तुम मेरी
ताकि जो तुम्हारी लत 
लगी है मुझे उससे निज़ाद मिले 
अगर मैं जानता की प्रेम का 
समुद्र इतना गहरा और खारा
ही होगा तो इसमें कूदने की
नहीं सोचता मैं और अगर मैं जानता 
की   इतना प्रेम करने के बाद भी 
अंजाम यही होगा तो सोचता मैं
हज़ार बार इसे आरम्भ करने से पहले   
सच में अगर 
तुम हो मेरी सखी  ?
तो मेरी मदद करो 
ताकि मैं रह सकू 
तुम्हारे बगैर अब 

Thursday 24 August 2017

छा रही है सांझ

मेरे प्रेम-भरे 
मन में अब 
छा रही है सांझ ,
एक आखिरी किरण 
चांदनी की मुझे  
प्यार से झिड़कती है
और कहती है 
किन्यु तुम 
उम्मीद को छोड़ 
रहे हो इतनी जल्दी 
अभी तो दिन 
होना बाकी है 
अभी तो साँझ 
के ऊपर छायेगा 
चाँद और पूरी रात
चांदनी हो जाएगी 
उसके बाद होगा 
उजाला सुबह का 
फिर से वो आएगी 
तुम्हारे पास 

Wednesday 23 August 2017

तुम्हारी आँखें

वो सिर्फ 
तुम्हारी आँखें 
ही थी जिसने भेद
दिया था मेरी आत्मा
पर लगे उस बड़े से 
दरवाज़े को जिस पर 
लिखा था अंदर आना 
सख्त मना है और 
जब भेद ही दिया था तो
ये तुम्हारी जिम्मेदारी
बनती थी की मैं फिर
ना रहु अकेला तुम्हारे
अंदर आने के बाद 
पर ऐसा किन्यु किया 
तुमने की दरवाज़ा 
खोला भी और अंदर भी आयी 
पर मेरा अकेलापन दूर
ना कर पायी तुम ?

Tuesday 22 August 2017

साँझ का सुहानापन

अब जब तुम नहीं हो
साथ मेरे तो साँझ का 
सुहानापन भी कंहा महसूस
कर पाता हु अब मैं वो तो 
तुम्हारी तरह उड़ जाती है 
फुर्र से आकाश के पार
फिर रह जाते है केवल बादल
वैसे पहले भी तुम 
कंहा होती थी साथ मेरे
बस यु ही कुछ पलो के लिए
आती थी फुर्सत में 
मिलने मुझसे
अब मैं और बादल 
दोनों बतियाते है 
अपने अपने प्रेम 
के बारे 

Monday 21 August 2017

हिम्मत दहलीज़ लांघने

मैंने
तुम्हे प्रेम किया 
तुम्हारे सत्य से 
उस असत्यता तक 
जो मुझे प्रेम के बाद 
पता चला और असत्यता 
के बाद के सत्य तक 
और मैंने तुम्हे प्रेम किया 
संभव की सीमाओं से परे जाकर 
और मैंने तुम्हे प्रेम दिया भी 
समय के बंधनो से पार जाकर 
पर तुमने नहीं की हिम्मत एक
दहलीज़ लांघने की भी 

Saturday 19 August 2017

तुम्हारी ऊष्मा को मैं महसूसता हु


जैसे खिड़की के तरफ वाली 
सीट को अक्सर छूती है सूरज की किरण
वैसे ही जब जब मैं होता हु अकेला
तब तुम्हारी तुम्हारी अनुपस्थिति में भी 
मैं महसूसता हु तुम्हारी ऊष्मा को 
उसी सिद्दत से जैसे तुम साथ होती थी
तब महसूसता था और अक्सर अँधेरी
रातों को तुम्हारे भीतर का कुछ 
अब भी छूता है मुझे हलके से और
बहुत मनुहार करता है तुम्हारी 
मज़बूरिओं को समझने के लिए
पर मैंने प्रेम की जितनी किताबें 
पढ़ी है उसमें कभी नहीं पढ़ा 
प्रेम को मज़बूर होते हुए इसलिए
मैं नहीं समझ पाया अब तक 
तुम्हारी मज़बूरिओं को शायद 
प्रेम जिन्दा रहे इसके लिए 
सिर्फ स्मृति ही काफी नहीं होती ...

नाम लिखा मैंने अपनी सांसो पर

जिसको मैंने प्रेम 
किया उसका नाम
लिखा मैंने अपनी सांसो पर
और लिखा अपने रक्त के
बूंदो पर भी किन्यु की 
मैंने प्रेम किया था 
पर साँस भी बनी है
हवाओं से और रक्त भी 
बना है पानी से शायद
इसलिए पढ़ नहीं पायी वो
और सुन नहीं पायी वो 
अपना नाम ठीक से 
ठीक उसी तरह 
जिस तरह हवाओं और 
पानी पर लिखा नाम 
दीखता नहीं किसी को 
ये तो महसूसना पड़ता है 
आत्मा से 

Friday 18 August 2017

प्रेम का अर्थ भटकता है

हां इन्हीं दहकते 
अंगारों के बीच 
मिलता है आश्रय
प्रेम को जैसे 
इसका अर्थ 
भटकता है 
निर्जन वनों में
ठीक वैसे ही 
प्रेम आता है, 
और ठहर जाता है 
अद्भुत-सा हमारी 
कल्पनाओं से लम्बा
और ऊंचा भी और 
ढूंढ ही लेता है
अपना आश्रय
दहकते अंगारो के
बीच कंही 

नींद में "प्रेम"

किन्यु मुझे ऐसा
लगता है जैसे
तुम्हे मुझसे हुआ है
"प्रेम" नींद में
उठो तो आँखों में आँसू
इतना नहीं सोचा था मैंने
की किसी को इतनी सिद्दत से
चाहूंगा और कोई मुझे यु
नींदो में चाहेगी
जिसके पास न होगा समय
एक चुंबन का भी
ना ही देखने का की कैसा हु मैं
उसके बगैर अकेला
अब मैं काटता हु रातें
जागकर और जागते हुए
देखता हु स्वप्न उसके

Thursday 17 August 2017

सब झूठा सा प्रतीत होने लगा है

प्रेम जो तुम देती हो
मुझे वो प्रेम तुम्हारा है 
या है वो जो मैं देता हु तुम्हे
आज तक मुझे समझ नहीं आया
किन्यु की अगर मेरा दिया 
तुम मुझे लौटती हो तो 
मेरे ही प्रेम में कोई कमी है 
और अगर तुम मुझे अपना
प्रेम देती हो तो फिर प्रेम के 
बारे जितना कुछ आज तक 
लिखा पढ़ा मैंने सब झूठा सा
प्रतीत होने लगा है की 
स्त्री प्रेम पुरुष प्रेम से 
श्रेस्ठ होता है जैसे 
स्त्री हर मायने में पुरुष 
से श्रेठ होती है 

रात कभी पूर्ण नहीं होती

रात हमेशा 
होती है अधूरी 
कभी होती है वो 
अँधेरी तो कभी 
होती है वो उजली 
पर वो होती है 
हमेशा अधूरी 
रात कभी पूर्ण
नहीं होती वो होती 
है सदैव किसी के 
इंतज़ार में उंघती 
और जब वो आता 
है कभी उसके पास
तो रात हो जाती है 
छोटी किन्यु की रात 
कभी पूर्ण नहीं होती 

Tuesday 15 August 2017

मेरे हिस्से का प्रेम


प्रेम तो किया 
मैंने तुमसे 
आँख और दिमाग 
दोनों बंद कर 
कई बार इन्द्रियां 
सक्रिय होकर 
जताती रही विरोध
परन्तु मैंने पढ़ा था
प्रेम में कभी तार्किक 
नहीं हुआ जाता और
मैं कभी हुआ भी नहीं 
परन्तु उसने कभी 
कोई बात मानी ही नहीं 
जब तक की उसे 
आज़माया नहीं उसने 
शायद तार्किक है वो
और प्रेम में तर्क की 
कोई जगह नहीं 
इसलिए मैंने मेरे 
हिस्से का प्रेम किया 
उसने बस तर्क किया 

जीवन की रेखा


तुम्हारे लिए जो 
लिख रहा था मैं 
अब तक प्रेम कवितायेँ 
लिखते लिखते उन्ही 
कागजो की किनारी से 
कट गयी वो  
लकीर जो हथेली के 
बीचों बीच थी मेरे 
जीवन की रेखा
अब शायद मैं 
वो उम्र ना जी सकू 
जो लिखा कर लाया था 
ऊपर से अपने 
भाग्य में 

Monday 14 August 2017

तुम्हारा अतीत

मैं चाहता था 
मेरे आने के बाद
तुम्हारा अतीत 
कंही खो जाए 
चाहता था तुम 
उसे छोड़ दो 
किसी बेगाने रिश्ते
की तरह और 
एक बार फिर से 
तुम जिओ इस 
नए रिश्ते को 
मैं चाहता था 
जानना तुम्हे 
और तुम्हारे प्रेम को 
जीवित था मैं 
बस इस आश में
और चाहता था 
तुम्हारा प्रेम पाना 
पर शायद तुम्हारे 
मन में कुछ और ही था 
और सभी जानते है 
एक तरफ़ा इश्क़ और
एक तरफ़ा ख्वाहिशें 
अक्सर दम तोड़ 
दिया करती है 

चाँद की चांदनी


अपने प्रेम की 
कवितायेँ लिखने 
के बाद हर शाम 
जाता हु पार्क में 
ऊँचे ऊँचे पेड़ो के बीच से
झांकते चाँद की चांदनी 
को देखते हुए महसूस 
होता है किस कदर वो
चाँद के साथ रहती है 
आठों पहर और एक 
वो है जो कुछ पलो के
लिए आती है बाकी 
मेरे पास और बाकी के 
मेरे पलो को उदास कर
चली जाती है        

Saturday 12 August 2017

असभ्य हो जाऊ

क्या मिला सभ्य होकर
प्रेमियों को 
कई बार ये सोचता हु
फिर से जंगली हो जांऊ
और महसूस करू एक बार
फिर से पीपल की छांव 
ये सभ्यता का चोला उतारकर
बरगद सी लम्बी जड़ फ़ैलाऊ
और लपेट लाऊ उसमे तुम्हे
और फुस की एक झोपडी 
बना उसके एक कोने में 
उगाऊं तुलसी का पौधा 
और रखु उसके किनारो पर 
एक दीपक जिसको आकर
तुम जलाओ सुबह शाम 
और तुम्हे साथ लेकर 
लौटू इन हरी हरी घांसो पर
और एक बार फिर से 
असभ्य हो जाऊ

प्रेम कविता

कुछ ही दिनों में फिर 
दिन छोटे और रातें 
लम्बी होने लगेंगी और 
फिर यादें तुम्हारी मुझे
इन लम्बी रातों में अकेले
जागने को मज़बूर करेंगी 
और फिर मैं गुनगुनाऊँगा 
तुम पर लिखी अपनी प्रेम कविता
और वो बनेंगे मेरे गीत 
जिन्हे मैं माचिश की तीली 
की तरह इस्तेमाल करूँगा 
अँधेरी रातों में जागने के लिए 
यु लम्बी रातें अकेले 
जागी नहीं जाती 
पता है ना तुम्हे

Friday 11 August 2017

दर्द दूर हो जाते है

जब तुम होती हो 
साथ मेरे जाने कहा से 
आता है संगीत का स्वर 
और तुम उन सब्दो को 
कैसे संभालती हो 
अपनी जिव्हा पर 
और गुनगुना उठती है 
मेरी देह पूरी लय में
फिर दो सांसो के बीच 
के अंतराल में मैं लगता हु 
तुम्हारे स्वरों को अपने दर्दो पर 
और  देखते ही देखते सारे 
दर्द दूर हो जाते है अक्सर ही 
जब तुम होती हो 

तुम्हारी प्रतीक्षा

अक्सर ही मैं 
तुमसे कविता 
के माध्यम से 
संवाद करता हूँ
तो तुम्हारी प्रतीक्षा में
आकाश की नीलिमा
और गहराती जा रही है
और गहराता जा रहा है
रात का श्यामल रंग और 
मैं रात की सियाही को
और गहराते देख रहा हूँ
ताकि तुम्हे आते हुए 
कोई और ना देख सके 

Thursday 10 August 2017

आख़री प्रतीक्षा 

मैं अपनी सभी 
लिखी प्रेम कविता को 
बचाना चाहता हूँ
वैसे ही जैसे बचाता आया हूँ 
अपने प्रेम को 
इस जीवन के हर 
कठिन परिस्थितिओं में भी
लेकिन अब मैं अपने आप को 
बचाते-बचाते
थक गया हूँ
मेरी ये आख़री प्रतीक्षा 
मेरे प्रेम को आखिरी भेंट है
इसे स्वीकार करो
और आखरी बार 
मुझसे आकर मिलो
उस घर में जंहा 
कोने कोने में बचा
कर रखा तुम्हारा 
एहसास 

अनमोल है तुम्हारे उपहार

कई वर्षो बाद 
महसूस हुआ मुझे 
की तुमने जो कुछ
भी अब तक मुझे दिया
वो सब मेरे लिए उपहार 
ही तो है तुम्हारे प्रेम का 
मेरे प्रेम के बदले 
वो जो अकेलेपन से 
भरा संदूक दिया तुमने 
वो भी तो उनहार ही है 
मेरे लिए और वो जो 
दर्पण भीगा हुआ दिया है 
उसमें सदैव मेरी आँखें 
भरी हुई नज़र आती है
अनमोल है तुम्हारे दिए
उपहार मेरे लिए

Wednesday 9 August 2017

वो रहती है व्यस्त 

वो अब भी 
रहती है व्यस्त 
मेरे तमाम दर्द 
को महसूसते हुए भी 
शायद उसको लगता है 
मैं बना ही हु 
दर्द को सहने के लिए 
और चाहती है मैं 
रहु उसके साथ सदा 
सहता हु दर्द  
बस शर्त इतनी है 
की उसे ना हो कोई डर
और ना हो कोई दर्द 
क्या सच में वो मुझसे 
करती है प्रेम या ये भी 
है सिर्फ एक तरफ़ा प्रेम 
सोच में हु मैं ?

मैं और मेरा मौन 

अक्सर जब मैं
बैठता हु अकेले 
रात को तो मैं 
अकेला नहीं होता 
मैं और मेरा मौन 
अक्सर बातें करते है 
सिर्फ तुम्हारी और सच
कहु तो मेरी जुबान 
से कुछ भी नहीं निकलता
एक तुम्हारे प्यार के सिवा 
मौन अक्सर मुझे 
कहता है कभी तो 
मिलवाओ अपनी 
रज्ज से ताकि मैं 
बता सकू तुम्हारी सारी
बातें उसे 

Tuesday 8 August 2017

वो आवाज़ देता रहा

वो तो तुम्हे 
हर कदम पर 
आवाज़ देता रहा 
तुमने सदा अनसुना 
किया उसे और चलती
रही नज़रें नीची किये 
वो तो तुम्हारे चारो
ओर बिखरा था 
खुसबू की तरह
तुम्हारी जिम्मेदारिओं 
ने तुम्हे कुछ महसूस 
ही नहीं होने दिया 
वो तो हर पल आस लगाए 
ताकता रहा तुम्हे 
और तुम जाने किन्यु 
दर दर भटकती रही 

जीने का  अर्थ सिर्फ प्रेम नहीं है 

यह स्वीकारना 
उसके लिए मुश्किल 
है अब भी उसके लिए 
की वो मेरे साथ बाकी
बची ज़िन्दगी जीना 
चाहती है किन्यु की 
उसके लिए जीने का 
अर्थ सिर्फ प्रेम नहीं है 
उसके लिए और भी बहुत 
कुछ है जरुरी जीने के लिए
शायद इसलिए मैं तो उसे 
याद रखता हु "आठों पहर"
और वो आती है मिलने
फुर्सत के पल में जब 
दिन ढल रहा होता है 

कररर कररर की आवाज़ें



बरसात में 
और तेज़ गर्मियों में 
अक्सर दरवाज़े और
खिड़कियां स्वतः ही 
छोटे और बड़े हो जाते है 
देखा भी होगा और 
सुना भी होगा सबने 
मौसमो की मार सिर्फ
लकड़ी के इन दरवाज़ों 
पर ही नहीं होती कई 
बार रिस्तो में भी ऐसा 
होता है और कान लगाकर
सुनो तो आवाज़ें उनमे से 
भी आती है कररर  कररर की 
बस जरुरत होती है दरवाज़ों 
और खिड़कियों की तरह 
उनमे भी समय समय पर
तेल डालने की 

Monday 7 August 2017

तुमने सदा अनसुना  किया

वो तो तुम्हे 
हर कदम पर 
आवाज़ देता रहा 
तुमने सदा अनसुना 
किया उसे और चलती
रही नज़रें नीची किये 
वो चाहता था हर कदम
पर एक सिर्फ तेरा साथ 
पर तुम किसी ओर डगर
पर ही चलती रही 
और यु तुम्हारी मुट्ठी से 
वक़्त फिसलता रहा और
उसकी ज़िन्दगी के छोटे-छोटे
पल-छीन फिसल कर 
बिखरते रहे

अभी कंहा हो तुम?

मैंने सोचा 
कैसे तुम्हे 
ये बतलाऊ की
तुमसे कितना 
प्रेम करता हु मैं
वो सुनने के लिए 
तुम्हारे पास न 
वक़्त था तब ना 
वक़्त है अब 
ऐसे में सोचा मैंने
किन्यु ना शुरू 
करू अभिव्यक्त करना
प्रेम मेरा जिसको
पढ़ कर तुम्हे ऐतबार हो  
तबसे लिख रहा हु मैं
कविता पर सोचा नहीं था 
की तुम वंही बस जाओगी 
मेरी कविताओं में 
अभी कंहा हो तुम?
मेरी कविता में ?
अब बहुत वर्ष हुए 
तुम्हे वंहा रहते हुए 
चलो अब मेरी होकर रहो 
बची ज़िन्दगी के लिए 

दिल के कोने के अंदर 

किन्यु नहीं 
आ जाती तुम 
मेरे दिल के उस 
कोने के अंदर 
जंहा बिना कहे 
और सुने ही 
सब कुछ समझ 
आ जाता है 
मज़बूरियों में डूबी 
इस ज़िन्दगी में 
आखिर रखा क्या है 
तुम्हारे लिए बोलो?
मेरे दिल के उस कोने
में वो दिल जो कब से 
ठंडा पड़ा है तुम
आकर उसे वो गर्माहट 
दे दो ना 

Saturday 5 August 2017

तुम आसक्ति हो मेरी



इस मतलबी दुनिया 
में तुम एकमात्र
आसक्ति हो मेरी
मुझे तो सांस लेने की भी 
फुर्सत नहीं थी पहले 
जबसे तुम मिली हो 
खुशियां जंहा भी दिखती है  
समेट लेता हूँ और चाहता हु 
उन सबको तुम्हे सौंप देना 
पर मेरे आने के बाद भी 
फुर्सत तो तुम्हे भी नहीं मिली 
अब तक ठीक से मुझे देखने की
फिर भी कनखियों से
देख कर मुझे प्राप्त 
करना चाहती हो तुम 
जाने कैसी तृप्ति...?

नफा और नुकसान

प्यार करना 
आसान है पर 
उसे निभाना 
बहुत मुश्किल 
जब खड़े होते है 
" प्रश्न " उसी प्यार 
पर तो अक्सर लोग
उस से होने वाले 
फायदे और नुकसान 
सोच कर कदम पीछे 
खिंच लेते है 
जबकि प्यार में 
नफा और नुकसान
तो आप देख ही नहीं सकते 
प्यार का अर्थ है 
जब प्रश्न खड़े हो तो 
सभी का जवाब उसी 
दृढ़ता से दिया जाये 
जिस दृढ़ता से प्यार को
हमे स्वीकार किया है 
ना की फायदे और नुक्सान 

मैं अब भी इंतज़ार में हु 


हमदोनो को केवल 
एक-दूसरे से प्रेम ही 
तो करना था:
साथ लिए तुम्हारी 
सभी मज़बूरियों को, 
रिश्तों और नातों को,
और उस रज्ज को भी 
जो उगाती है पेड़ो को, 
और फिर उनपर खिलाती है
फूल और पत्तिओं को 
पर इतना भी नहीं हो सका हमसे 
जिम्मेदारियों की उलझन में
उलझ कर रह गया है तुम्हारा प्रेम
और मैं अब भी इंतज़ार में हु 
तुम्हारे आने के 

Friday 4 August 2017

प्रतीक्षा


जब मैंने देखा,
तुम्हे देखते ही 
रह गया था 
ये सोच कर की 
हमदोनो चलेंगे अब 
उस दिशा में
जहाँ जीवन 
और प्यार
साकार होने की 
प्रतीक्षा में होंगे 
पर तबसे अब तक
चल रहा हु अकेला 
मैं करने साकार 
उसी सपने को 
और कितना चलना 
पड़ेगा अब तक 
पता नहीं मुझे ?

तुमने वो  दहलीज़ लाँघ दी 

ऐसे तो ना कहूंगा
की किसी ने ना 
चाहा है मुझे 
है इतना कह सकता हु 
पुरे यकीं से मैं 
की किसी को 
दहलीज़ नहीं लगने दी
दी है तब तक मैंने
जब तक देखा नहीं था
तुम्हे पहली बार 
और जब तुम मिली 
मैं तो रोक ही नहीं 
पाया खुद-से-खुद को 
और तुमने वो 
दहलीज़ लाँघ दी 

एक हमसफ़र

कितनी उम्र 
गुजारनी पड़ती है अकेले
एक हमसफ़र पाने को    
कैसे गतिमान होता है 
हमारा अकेलापन उस 
हमसफ़र तक पहुंचने को
लेकिन ये हम में से किसी को 
नहीं पता होता जो मिलेगी क्या   
उस तक पहुंचने के बाद
मिलेगा पूर्णविराम 
हमारी चाहत को
या दुनयावी दिखावे के कारन 
हम कंही गाला घोंट देंगे
उस चाहत का 

Thursday 3 August 2017

तुम्हारी कल्पना करता हु

अक्सर ही मैं 
तुम्हारी कल्पना 
करता हु चाहे रहु
अकेला या फिर लोगो 
के बीच पर मेरी 
कल्पनाओं में सिर्फ 
तुम ही होती हो ;
तुम्हारी छवि बारिश
की बूंदो की तरह 
मेरी आँखों के सामने 
बरसती रहती है ;
और तुम उस हिरन 
की तरह कुलांचें भर 
भागती रहती हो और  
तुम्हारी नाभि में जो 
केशर है उसकी खुसबू 
मुझे तुम्हारी तरफ खींचती
रहती है पल-पल 

देह सदैव याद रखती है

प्रेम की याददास्त 
कमजोर होती है ;
और तन की याददास्त
तीक्ष्ण होती है और
सदैव तीक्ष्ण ही रहती है;
प्रेम का स्वाभाव चंचल है 
वो भागता फिरता है ;
और देह का स्वाभाव है 
स्थिर रहना वो कंही जाता नहीं ;
इसलिए प्रेम भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव;
प्रेम करता है कल्पनाएं और 
देह पागलपन की हद्द पार करता है 
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता 
कभी कम नहीं आंकी जा सकती

Wednesday 2 August 2017

मोहोब्बत की  कवितायेँ


जबसे देखा है 
मैंने तुम्हे  
अपनी सियाही से
बस लिखता आ रहा हु
तुम्हारी मोहोब्बत की 
कवितायेँ तबसे और
तब तक लिखता रहूँगा
जब एक दिन ये पूरी
धरती होगी उदास और
कम हो जायेंगे दुनिया में
संगीत के साधन बस 
इस लिखने को जारी 
रखने के लिए जरुरी है 
तुम्हे देखते रहने मेरा 

विरह की कहानी

कभी महसूसना 
तुम भी सूखे पत्तों की 
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी 
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते 
करहाते हुए कहते है 
अपने विरह की कहानी 
दर्द होता है सुनते ही 
उनकी कराहटें मन होता है 
उन्हें फिर से रोप दू
उसी पेड़ में जंहा से 
अलग हुए है वो 
और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी 
एक जगह पर जैसे 
कई बार मौसम 
ठहर जाता भूल कर 
अपनी नियति 
नहीं जाना चाहता 
उन पत्तो की तरह 
तुमसे अलग होकर 
दूर अब मैं 

इंसानी रिश्ते भी .....

मोटी और मज़बूत 
दीवारें भी भूर-भूर
हो रिसने लगती है ,
उनमे भी हो जाते हैं
गड्ढे और पड़ जाती है,
सीलन जो उसे भुरभुरा 
देती है अक्सर ,
उसका मलवा
झरने लगता है।
यक़ीनन.........
वक़्त की तरह
दीवारें भी बनती रेत से 
और इसी तरह के 
हालातों से गुजरते है 
इंसानी रिश्ते भी  .....

Tuesday 1 August 2017

प्रेम कभी बतलाकर नहीं होता 


पहले पहले किसी 
को नहीं पता होता 
की हम किसी को किन्यु 
बार बार देखना चाहते है  
और किन्यु किसी को नहीं 
जाने देना चाहते खुद से दूर 
पर वो चाहत कब दिल में 
सेंध लगाकर घर बना लेती है
पता ही नहीं चलता हमे 
तब लोग बताते है हमे 
लगता है तुम "प्रेम" में हो 
और तब तक हमारा वश ख़त्म 
हो चूका होता है खुद के दिल पर से 
शायद इसी लिए कहते है 
प्रेम कभी बतलाकर नहीं होता 

मुझमे प्राण...भर्ती रहती हो 

तुम्हारे साथ ज़िन्दगी
को इस तरह आत्मसात 
करता हु मैं  ..
मुझे लगता है
बहती हो तुम 
हवाओं की तरह
भर्ती रहती हो 
मुझमे प्राण.......
मुझे लगता है
लहराती हो तुम 
नदियों की तरह
भीगा-भीगा सा 
तरंगित होता हु मैं ......
मुझे लगता है 
महकती हो तुम  
फूलों की तरह
मादकता से
उन्मत्त होता हु मैं ......

ज़िन्दगी को आत्मसात करता हु मैं  ..

तुम्हारे साथ ज़िन्दगी
को इस तरह आत्मसात 
करता हु मैं  ..
मुझे लगता है 
चहकती हो तुम 
चिड़ियों की तरह
नाच उठता है
मेरा मन-मयूर........
मुझे लगता है
चमकती हो तुम 
किरण की तरह
रोशनी से 
भरता रहता हु मैं .......
मुझे लगता है
छिटकती हो तुम 
चाँदनी की तरह
शीतलित होता है
मेरा  रोम-रोम.......

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !