Friday 11 August 2017

तुम्हारी प्रतीक्षा

अक्सर ही मैं 
तुमसे कविता 
के माध्यम से 
संवाद करता हूँ
तो तुम्हारी प्रतीक्षा में
आकाश की नीलिमा
और गहराती जा रही है
और गहराता जा रहा है
रात का श्यामल रंग और 
मैं रात की सियाही को
और गहराते देख रहा हूँ
ताकि तुम्हे आते हुए 
कोई और ना देख सके 

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !