Wednesday 2 August 2017

इंसानी रिश्ते भी .....

मोटी और मज़बूत 
दीवारें भी भूर-भूर
हो रिसने लगती है ,
उनमे भी हो जाते हैं
गड्ढे और पड़ जाती है,
सीलन जो उसे भुरभुरा 
देती है अक्सर ,
उसका मलवा
झरने लगता है।
यक़ीनन.........
वक़्त की तरह
दीवारें भी बनती रेत से 
और इसी तरह के 
हालातों से गुजरते है 
इंसानी रिश्ते भी  .....

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !