Tuesday 29 August 2017

डूब रहा हूँ... मैं


वो भूरी-भूरी लहरें...
तुम्हारी आँखों की...
खींच ले जाती थी मुझे...
गहराइयों में 
भूरी ...भूरी ...
कोई रंग नहीं भूरे के सिवा 
और मेरे पास नहीं था  
प्रेम का अनुभव...
और न ही थी नाव कोई ...
अगर मैं तुम्हें प्रिय हूँ 
तो लो थाम मेरा हाथ 
क्योंकि मैं सर से पैर तक... 
चाह ही चाह था  
और उसी चाहत में 
डूब रहा हूँ मैं... अब 
पानी के नीचे सांस ले रहा हूँ मैं! 
डूब रहा हूँ... मैं 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !