Monday 31 July 2017

मेरी कवितायेँ स्तुतियाँ है


मेरी कवितायेँ 
वो स्तुतियाँ है 
जो मैंने की तो 
है ईश्वर के लिए 
पर उनपर नाम 
मैंने किसी एक
इंसान का लिख रखा है 
किन्यु की मेरा मानना है 
की इस कलयुग में वो तो 
आएंगे नहीं मेरे घर है 
उनके रूप में जरूर पा सकता हु 
मैं मेरी प्रेमिका और संतान 
इसलिए सारी स्तुतियाँ उसी के 
नाम लिख रहा हु मैं 

व्यक्तित्व खुद के हांथो गढ़ती है

प्रेमिकाओं  ...
की आँखें अँधेरे 
में भी भय नहीं खाती
ना ही सूरज की तपती
किरणों से वो कुम्हलाती है ;
वो तो सूरज की किरणों को 
लपेट लेती है अपनी कमर में
और वो नहीं इंतज़ार करती
किसी और के मार्गदर्शन का 
वो चलती है अपनी चाल 
देखती नहीं चाल सधी हुई है 
या नहीं बस चारो पहर के सांचे में 
गूंथती है अपना तन और गढ़ती है 
वो अपना व्यक्तित्व खुद के हांथो 

तन की कलाओं का पहर

मेरे लिए प्रेम 
नाभि से चलकर  
कंठ तक आकर 
गूंजने वाला "ॐ" है 
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों 
पर दर्ज तुम्हारे 
अंगूठे की छाप सा है 
आधी रात का वो 
पहर तन की कलाओं का 
पहर होता है तब अक्सर 
मेरे घर में लगे सारे दर्पण
में तुम्हारी तस्वीर उभर 
आती है स्वतः ही और 
तब तुम होती हो पूर्ण 
श्रृंगार धारण किये हुए 
जानते हुए की अगले ही पल
ये सारे श्रृंगार होंगे 
मेरे हवाले 

Saturday 29 July 2017

मौन होना ही है

मौन तो होना ही है 
एक दिन चाहे नियति के चक्र में
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इस तरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ कर रह जाओगे..?   

केवल तुम्हें ही  लिखता हूँ

सुबह से ही
खोल - खोलकर
दिल के ज़ज़्बातों को 
बोल - बोलकर 
पढता हूँ
और रात ढलने तक 
अपने दिल की सियाही से 
अपने पन्नों पर 
केवल तुम्हें ही 
लिखता हूँ .
कुछ साधारण से 
शब्दों को 
जोड़ - जोड़कर
अपनी कविता में 
केवल तुम्हें ही 
रचा है 
पर तुझ जैसी सीपी में 
गिरने को 
मैं स्वाति बूंद
सा अब भी बचा हु                      

वही एक गीत लिखता हूँ


मैंने लिखना चाहा 
केवल एक प्रेम गीत
तुम्हारे लिए...हर बार 
सबकुछ हार कर
वही एक गीत लिखता हूँ
पर तुम्हारा रूप
और विस्तार पा जाता है
जो मेरे गीतों में 
नहीं समा पाता है...
हर बार
मेरा गीत हार जाता है....
मैं फिर लिखता हूँ
नए गीतों को
जिसमें तुम्हें 
पिरो देना चाहता हूँ..
लेकिन कुछ 
शेष रह जाता है
जिसे मेरा गीत 
नहीं अटा पाता है....
जो शेष रह जाता है 
वही मुझसे बार-बार 
नये गीत लिखवाता है

Friday 28 July 2017

बरसता रहे अनवरत

जब कभी तुम 
चाहो दिल से लिखना 
मेरे प्रेम में तो
महाकाव्य लिखना
आसमानी भाव के
अंतहीन पन्नों पर...
कह सको तो
अपने तप के
बादलों को कहना
झूम-झूम कर
बरसता रहे
अनवरत
अमृत धार बनके
और हर प्रेमाकुल
तप्त ह्रदय को
सींचता रहे
प्रतिपल
पतित-पावन
संस्कार बनके...

छू आऊँ उस अनंत को.....

तुमसे कोई शत-प्रतिशत
परिणाम पाने की 
चाहत भी नहीं
बल्कि तुमसे 
सूत्रबद्ध होने के लिए
करता रहता हूँ 
सूचकांक को
शून्य से भी नीचे.....
ताकि पूरी तरह से तुम
रहो संतुष्ट मुझसे 
और मैं छू-छू आऊँ
उस अनंत को.....
पर तुम मुझे यूँ ही
गुणा कर लेती हो
किसी शून्य से और
अपने संख्यातीत चाहतों के
आगे-पीछे लगा लेती हो
केवल अपने हिसाब से....
क्या तुम नहीं जानती कि
तुम्हारा गणित भी है 
सूत्रहीन या तो मेरे 
अनंत होने मात्र से
या बस कल्पशून्य 
होने मात्र से . 

दिल से लिखना

जब कभी तुम 
चाहो दिल से लिखना 
मेरे प्रेम में तो
महाकाव्य लिखना
आसमानी भाव के
अंतहीन पन्नों पर...
जो केवल
शब्दों की शोभा
न बनकर
शंखनाद सा
बजता रहे
बारबार
प्राणों के तारों पर
शाश्वत ओंकार बनके .
लिख सको तो... 
मेरे प्रेम में तो
महाकाव्य लिखना       

Thursday 27 July 2017

मेरी चाहतो के बारे

मैं तो सिर्फ 
गणितीय भाषा से
जाना है
एक अनंत को.... 
और तुम जोड़ 
तोड़ करके
मुझे बंद कर लेती हो
अपनी चाहतों की
छोटी सी कोष्ठक में....
जिसे तुम अपने 
हिसाब से छुपा कर 
रख सको उन सबके 
सामने जिनके होने तक 
तुम रहोगी मुझसे दूर 
पर क्या कभी 
तुमने सोचा है 
मेरी चाहतो के बारे ?

ऐसी कोई व्याख्या 

मैंने तो प्रेम किया 
सिर्फ तुम्हारा साथ 
पाने के लिए जो 
तुम ना दे पायी मुझे 
अब तक सिर्फ 
और सिर्फ दुसरो की 
फिक्र के कारन
क्या प्रेम में इंसान 
दुसरो की फिक्र 
इस कदर करता है की 
उसका खुद का प्रेम ही
दोराहे पे खड़ा हो जाए
मैंने अब तक प्रेम 
के बारे जितना कुछ 
लिखा उसमें नहीं 
है ऐसी कोई व्याख्या 
इसलिए पूछता हु तुमसे                        

चाहतों के गणित

तुमसे प्रेम करके
जितना मैंने
खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों   
और इच्छाओं के
प्रमादी प्रमेय के 
हिसाब से
उतना ही तुम
अनुपातों के नियम 
को धता देकर 
सिद्ध करती रही 
कि चाहतों के 
गणित को सही-सही 
समझना मेरे वश 
की बात नहीं
पर तुम्हे कैसे 
बताऊ मैं की 
मैंने समझा भी सही 
और किया भी सही 
पर तुम अब तक 
नहीं स्वीकार पर पायी 
की प्रेम में बगावत
निहित है .....

Wednesday 26 July 2017

बस तुम्हें फूल देता रहूँगा 

तुममें जबसे खोया   
तुझमे मेरे बीजों 
को बोया अब 
जब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तब तुम बाँहों 
में आकर मेरी 
यूँ घेर लेती हो
उन्हीं फूलों को
बिखेर देती हो
और कहती हो -
भूल जाओ दर्द को....
ये जिद ही है मेरी
कि मैं तुममें यूँ ही 
खोया रहूँगा 
और काँटे खुद को 
चुभोता रहूँगा 
बस तुम्हें फूल देता रहूँगा 
पर क्या तुम 
कभी उन फूलो को 
मेरी बांहो में खेलने दोगी?

उसे थामे हु मैं

शुरुआत का पता है मुझे
अंत की खबर भी
फिर भी बैचेन हूँ
बेवजह...
हाथों की लकीरें 
रंगी हैं तमाम रंगों से
फिर भी कुछ रंग 
तलास रहा हूँ
बेवजह...
डोर ही डोर
उसे थामे मैं ही मैं
हवा का रुख भी मेरी ओर
फिर भी हूक ये क्यूँ
बेवजह...
तू तो मेरी ही है 
और हमराह भी
फिर तुझे क्यूँ बुलाता हूँ
बेवजह पागलों की तरह 

बस तुम्हें फूल ही देता रहा 

तुममें जबसे खोया   
तुझमे मेरे बीजों 
को बोया अब 
जब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तुममें खोया रहा और 
बस तुम्हें फूल ही 
फूल देता रहा 
और कांटे मैं 
खुद को चुभोता रहा ....
चुभे काँटे हैं
दर्द देंगे ही
लाख मना करूँ
पर तुमसे कहेंगे ही....
पर क्या तुम आओगी
इन काँटों का दर्द
साझा करने 

Tuesday 25 July 2017

गिरह ना खोल दे

क्यों डरती हो 
तुम प्यार से
ये भी भला कोई 
डरने की चीज़ है
प्यार तो वो 
कोमल एहसास है
जो किसी को भी 
मिलता है नसीब से
फिर किन्यु नहीं कह देती 
इस जहा को 
शायद तुम डरती हो 
अपने आप से
कि कहीं कोई तुमसे 
तुम्हीं को ना छीन ले
प्यार से तुम्हे अपनाकर
तुम्हारे दर्द कि 
गिरह ना खोल दे
है ना ?

क्यों डरती हो आखिर

क्यों डरती हो 
तुम प्यार से
ये भी भला कोई 
डरने की चीज़ है
फिर किन्यु नहीं 
कह देती सबको  
तो खोलने दो ना, 
क्यों डरती हो आखिर
क्या होगा ? 
बिखर ही जाओगी ना
तो बिखर जाने दो 
अपने आप को
प्यार से संवार 
लेगा तुम्हे कोई
फिर किन्यु नहीं सब छोड़ कर 
जाती उसके पास 
और प्यार में 
सज-संवर कर
खुशबू सी महकेगी 
तुम्हारी जिन्दगी.....!!
फिर किन्यु नहीं चाहती तुम 
उसकी ज़िन्दगी संवारना 
बोलो ?

ख्वाब सजाना..

"कुछ अनकही सुनूँ 
या फिर सब 
कह डालूं  
बिखेर दूं 
लम्हा-लम्हा"
पर 
कितना मुश्किल है 
फिर से ख्वाब सजाना..
भीतर उठा गुबार
थम चुका अब
जीत चुकी तुम  
पर 
कितना मुश्किल है 
अपने अंतर्द्वंद से लड़ना ..!
जब सपने टूटते है 
तो दर्द सपने देखने 
वाले को होता है 
किसी और को नहीं  

Monday 24 July 2017

पहली मुलाकात 

सुनो
क्या याद है तुम्हे
पहली मुलाकात 
पलकें झुकाए 
दबी दबी हँसी 
छलकने को बेताब 
वो अल्हड़ लम्हे 
भीगा एहसास 
हाथों में हाथ लिए 
घंटों ठहरा वक़्त 
उनिंदी रातें 
कहने को 
अनगिनत बातें 
दिल की बंज़र 
ज़मीन पर 
नाख़ून से बने 
कुछ निशान 
कोरे केनवस 
पर खिंची 
आडी तिरछी 
रेखाओं के ज़ख़्म 
आज भी ताज़ा है नमी

तुम हो कहा अब तक ?  

सुनो
क्या याद है तुम्हे
पहली मुलाकात 
पलकें झुकाए 
दबी दबी हँसी 
छलकने को बेताब 
वो अल्हड़ लम्हे
खून से रिसती 
लकीरों में 
जिंदा है तेरे 
हाथों की खुश्बू 
धमनियों में दौड़ते 
खून में तेरी 
यादें मकसद हैं 
मेरे जीने की 
चाह का तेरा 
एहसास उर्जा है
मेरी साँसों के प्रवाह का
पर तुम हो कहा अब तक ?         

आँखों की भी ज़ुबान होती है

एक मुद्दत से
होठों के मुहाने 
पलते शब्द 
तेरे आने का लंबा इंतज़ार 
फिर अचानक
तू आ गयी इतने करीब
मुद्दत से होठों के मुहाने 
पलते शब्द 
फँस कर रह गये 
होठों के बीच
वो मायने 
जिन्हे शब्दों ने 
नये अर्थ में ढाला
आँखों की उदासी ने 
चुपचाप कह डाला 
सुना है
आँखों की भी ज़ुबान होती है
सही कहा ना मैंने ?                      

Saturday 22 July 2017

इन तहों में 
ख़ामोशी क्यूँ इतनी 
मैं तो सिर्फ  
मेरे होने को खोजता हूँ ..
दो दरवाजों के पीछे 
हंसा क्यूँ मन इतना 
भीड़ में गूंज है कहाँ ...?
खोजता हूँ ...
तेरे होने से 
ठहराव है मुझमे 
पर इश्क है कहाँ ...?
अब तक 
खोजता हूँ ...
शायद एक जन्म
मेरा इसी खोज में 
बीत जायेगा ?      

थाह मेरे प्रेम की

कहा मुमकिन है 
अभिव्यक्त कर 
पाना हु ब हु प्रेम को 
अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे 
क्या संभव है शब्दों में 
प्रेम समेट पाना 
क्या संभव है प्रेम को 
भाषा में व्यक्त कर पाना
क्या संभव है अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना
क्या संभव है 
चाहत के विस्त्रत आकाश को 
शब्दों में बाँध पाना
नहीं शायद इसलिए 
तुम समझ ही नहीं पायी
थाह मेरे प्रेम की अब तक 

अभिव्यक्ति की खुश्बू

मेरे जिस्म की
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं,
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं,
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में,
बिखर गये हैं शब्दों के बौर 
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं,
नये मायनों में ढल कर 
रेगिस्तान में जगमगाते हैं, 
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ,
सुना है बरगद का पेड़ 
सालों साल जीता है ....
सुनो आकर तुम मेरी 
अभिव्यक्ति अब तो 
मेरे पास  ....               

Friday 21 July 2017

मेरे ख्वाब


रात भर 
उनिंदी सी रात ओढ़े 
जागती आँखों ने 
हसीन ख्वाब जोड़े 
सुबह की आहट से पहले 
छोड़ आया हूँ वो ख्वाब 
तुम्हारे तकिये तले 
अब जब कभी 
कच्ची धूप की पहली किरण 
तुम्हारी पलकों पे
दस्तक देगी 
तकिये के नीचे से
सरक आये मेरे ख्वाब 
तुम्हारी आँखों में
उतर जाएँगे
तुम हौले से अपनी   
आँखें खोलना कंही 
टपक ना पड़े वो 
तुम्हारी आँखों से 
जमीन पर 

क्या मेरा वजूद तुझसे है?

मेरी शाख  मुझसे
कहती है
क्या मेरा वजूद
तुझसे है??
यदि हाँ .. तो
रंग क्यूँ है फीका ...
मेरी जड़े टिकाये मुझे
अदृश्य रह कर भी
संभाले  अलसाए
अस्तित्व को ....
और मैं
मुझसे ना शाख को
समझाया जा सका
ना जड़ें फैलाई
जा सकी ...
एक सिर्फ तुम्हारे
कारण  ....

नयी रेखा

हर नये दर्द के साथ 
बढ़ जाती है ,
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं, 
हाथ की रेखाओं में 
भविष्य छिपा है,
आसमान में 
अटका तारों में 
भटका 
सूरज के आते ही 
खा गया 
झटका,
साँसों के साथ खींच कर 
दिल में रख लूँगा तुझे 
सुना है ,
खून के कतरे 
फेफड़ों से हो कर 
दिल में जाते हैं.

Thursday 20 July 2017

तेरा एहसास  

मैं अपनी 
हथेली पर  .... 
धूप की मखमली 
चादर लपेटे 
तेरे आने का 
इंतज़ार कर रहा हूँ 
नर्म ओस की बूंदों में 
अपना एहसास समेटे 
तू चुपके से 
मेरे पास 
चली आना 
अपनी साँसों में 
भर लूँगा 
धुंवा धुंवा होता 
तेरा एहसास         

तुझे हंसा दूं....... 


थम गयी है हवा, 
ठिठक गयी कायनात, 
क्यूँ न नीले आसमान की 
चादर पर सजे, 
बादल के सफ़ेद फूल, 
फूंक मार कर उड़ा दूं........ 
या हलके से गुदगुदी कर, 
तुझे हंसा दूं....... 
बादलों के बदलते रूप में, 
तेरा उदास चेहरा, 
अच्छा नहीं लगता........ 
जब तू खिलखिला 
कर हंस पड़ेगी, 
ये हवा चल पड़ेगी,
बादल भी बदलने 
लगेंगे अपना रूप, 
अटकी हुई कायनात, 
खुद-बा-खुद चल पड़ेगी.                      

मेरे ख्वाब पुरे होते

देखना चाहता हु   
मैंने तुम्हे  
अपनी छत पर 
खुले आसमान के 
नीचे अपनी 
हथेली में 
सजाते बारिश की 
रिमझिम बूँदें....... 
तेरे ख़्वाबों से 
झिलमिलाती और 
तेरे एहसास से 
भीगी वो बूँदें 
पलकों पर सजाकर 
मैं भी देखता हु 
धीरे धीरे ........ 
पुरे होते  
मेरे ख्वाब........ को                      

Wednesday 19 July 2017

ये तेरी मांग का रंग

शाम की दहलीज़    
और सूरज की 
सुर्ख पगडंडी पर 
तैरता लावा  
रिसते हुए मेरे  
खून से बनी 
तेरे माथे की 
वो लकीर है  
जिसके उस पार 
उतरने की जद्दोजहद 
मेरे जिस्म के 
आखरी कतरे तक 
जगनू सी चमकती 
रहती है सदा 
ये तेरी मांग 
का रंग मुझे
किसी भी हद्द  
से गुजरने को 
प्रेरित करता रहता है 

मुझे कोई तकती है

सूखे हुए होठों
पर अटके है 
मेरे लफ्ज़, 
बिस्तर की सिलवटों 
पर सिसकती रात, 
तेरी कलाई में 
खनकने को बेताब कंगन, 
खामोशी भी करती है 
जैसे बात, 
चिनाब का किनारा भी 
गाता है हीर, 
लगता है इक नज़्म की 
इब्तदा होगी, 
खाली निगाहों से, 
तकती है मुझे कोई 
अपनी दहलीज़ पर ........                      

सांस लेती चिंगारियां 

छिटक कर गिर गए 
कुछ लम्हे ..लेकिन 
बाकी है उनमे 
अभी भी उनमे  ...
सांस लेती चिंगारियां 
बुदबुदाते अस्फुट शब्द ...
अटकती साँसें 
महकता एहसास ........
पलकें झुकाए 
पूजा की थाली लिए
मेरे घर की दहलीज़ पर  
गुलाबी साड़ी में लिपटा 
तेरा रूप........... 
और भी बाकी है 
बहुत कुछ 
उन जागते लम्हों में ........
बस चुनना है तुम्हे 
उन लम्हो को 
इससे पहले की 
साँस लेती चिंगारी 
बुझ जाए उनमे 

Tuesday 18 July 2017

तुम चुपके से आना

सुनो 
जब मेरे 
शब्द गूंगे हो जाएँ 
मेरी नज़र कुछ 
बोल न सके 
मेरी यादों के 
दरख्त से टूटे लम्हे 
बीते वक़्त के 
साथ ठहर जाएँ
तब तुम चुपके 
से आकर मेरी 
आँखों के सामने  
मुस्कुरा देना 
हवा चल पड़ेगी
और मैं फिर से 
वर्तमान में लौट 
आऊंगा .....

उरमा के गहन रहस्य को

चीर कर बादल का 
किनारा चांदनी 
जब छाने लगे, 
सरसराती हवा मस्ती में 
गाने लगे, 
मुस्कुराती रात, 
सर्दी का कम्बल
लपेटे तेरे सिरहाने
उतर आए, 
तब तुम 
मेरी बाहों में
चुपचाप चली आना , 
और देखना
अपनी आँखों से
खुद बा खुद  
जल उठते अलाव को 
बड़ी गौर से और
समझना इस उरमा के
गहन रहस्य को 

तेरे सुर्ख होठों से.....

सुनो 
जब मेरे 
आँगन में 
सांझ की लाली 
उतर आएगी 
वक़्त कुछ 
पल के लिए 
ठिठक जायेगा 
और तुम्हें जब 
सुई शाम की 
सिन्दूरी आभा  
छू रही होगी 
मैं इक टीका 
चुरा लूँगा तेरे 
तेरे सुर्ख होठों से.....
और चारो तरफ 
तुम्हारी हंसी 
बिखर जाएगी 
और मैं फिर से 
वर्तमान में लौट 
आऊंगा .....

Monday 17 July 2017

किवाड़ खटखटाती है रात 


सुनो 
सुबह रात 
का किवाड़ 
खटखटाती है 
तारों की छाँव में 
बैठी चांदनी  
मुस्कुराती है 
ऐ रात की स्याही 
तब तुम मेरे घर 
हमेशा के लिए 
ठहर जाना
किन्यु की मैं 
उस सियाह रात 
में मेरी प्रिय के
साथ रचूंगा एक
नया जीवन 

शामिल हूं तुम में हमेशा..

मैं समझती हूं तुम्हें....
शामिल हूं तुम में हमेशा..
हर बार कहती रही वो ..
पर जब भी खामोशियों को...
सुनने का वक्त आया....
धङकन भी कहां सुन सकी वो ....
कहने को सब कह देते हैं, पर..
दिल की जुबां कहां समझता है कोई....
तुम्हारे दर्द का एहसास है मुझे...
महसूस करती हूं तुम्हें हमेशा...
हर बार जताती रही वो...
पर जब भी ज़ख्मों को...
सहने का वक्त आया....
जरा सा भी दर्द 
कहां सह सकी वो ...

कहां सहता है कोई....दर्द

कहने को सब
कह देते हैं, पर...
पर किसी का दर्द 
कहां सहता है कोई....
मैं थाम लुंगी तुम्हें...
साथ हूं तुम्हारे हमेशा...
हर बार यकीं 
दिलाती रही वो...
पर जब भी 
तन्हाईयों में....
साथ देने का 
वक्त आया...
दो कदम भी कहां...
साथ चल सकी वो ...
कहने को सब 
कह देते हैं, पर...
उम्र भर कहां साथ 
चलता है कोई....                      

Saturday 15 July 2017

मेरा नाम 'जिंदगी' रख देना...


किसे ढूंढ रहे हो 
तुम आस-पास...
मैं बन के हमराह..
हर पल तुम्हारे 
संग चलूंगी..
क्यूं बुझा-बुझा सा 
मन तुम्हारा...
नहीं जगता इसमें 
अब कोई अरमान....
मैं तुम्हारे सूखे होठों पर...
बन के मुस्कान खिलूंगी...
तुम मेरा नाम 'खुशी' रख देना...
बस तुम्हारे लिये तो हूं मैं ...
तुम्हारे लिये ही रहूंगी.... सदा 
जाने कबसे हो निःशब्द....
हर पल बोझल कटता ही नहीं...
तुम्हारे इस रूके जीवन में...
मैं दिल बन कर धड़कूंगी...
तुम मेरा नाम 'जिंदगी' रख देना...
बस तुम्हारे लिये तो मैं हूं..
तुम्हारे लिये ही रहूंगी....                      

अभिव्यक्ति  के कुछ शब्द 



पता ही नहीं किन्यु  
तुम तक पहुँचने से पहले 
हर बार ही 
लड़खड़ा कर गिर 
जाते है मेरी 
अभिव्यक्ति 
के कुछ शब्द 
घायल शब्दों की 
की झिर्री से 
बिखर जाती है ;
मेरी चाहत ;
बह जाते है 
मेरे एहसास 
और उघड़ जाते है ;
मेरे अधूरे स्वप्न
उफ़ तुझसे मिलन की प्यास
में मैं ही क़द्र नहीं 
कर पाता हु ;
मेरे इन एहसासों की 
अब सोचा है 
इज्जत बख्सूंगा इन 
ज़ज़्बातों को इन्हें यु नहीं 
बिखरने दूंगा अब     

अश्वथामा हो गए बेताब शब्द


हा अक्सर ही  
तुम तक पहुँचने 
से पहले ही कुछ 
अन्जाने शब्द
बिखर जाते है 
तुम्हारे रास्ते पर 
अनदेखा कर 
शब्दों की चाहत 
कुचल देती हो तुम 
उन सब्दो के अर्थ ,
उनकी अभिव्यक्ति 
उनकी चाहत, 
मौन अनुरक्ति
शब्दों का उमड़ता सैलाब 
अब समुन्दर हो गया है 
बिखरने को बेताब शब्द 
अश्वथामा हो गए हैं 
भटक रहे हैं 
तुम्हारी तलाश में 
दर बदर सुना होगा तुमने 
द्धापर युग चला गया 
अब कंही कलयुग भी न 
गुजर जाए

Friday 14 July 2017

मेरा नाम 'रज्ज' रख देना..

किसे ढूंढ रहे हो 
तुम आस-पास...
मैं बन के हमराह..
हर पल तुम्हारे 
संग चलूंगी..
ये सूनी-सूनी.. 
खाली आंखें तेरी...
जाने कहां खोया 
इनका विश्वास...
अब मैं जगाउंगी आस....
मैं इनमें बन के दीप जलूंगी..
तुम मेरा नाम 'रज्ज' रख देना..
बस तुम्हारे लिये ही तो हूं मैं ...
तुम्हारे लिये ही रहूंगी... सदा 

मेरी सुबह होगी खिली-खिली सी...


आज बताता हु तुम्हे 
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी  ...
तब मेरी सुबह लेगी
अलसाई, अंगड़ाई सी...
ये फ़िज़ायें तुमसे
अठखेलियां करती रहेंगी ..
कभी बिखरती,
कभी तुममें सिमटती रहेंगी...
शोख कलियों को जो
चूम लूंगा मैं  ...
तब फूलों पे शबनम
भी शर्माएंगी और ...
झील की लहरें
करवटें बदलती रहेंगी ..
ठंडी रेत तेरे पैरों तले
पिघलती रहेंगी ..
तुमने जो वादियों
का दामन ओढोगी  ..
सुबह आसमां बदलेगा
करवट भी अनमनी सी...
रात जो पायेगी संग तेरा...
तो मेरी सुबह होगी
खिली-खिली सी...
   

मेरा नाम  'सखी' रख देना..

किसे ढूंढ रहे हो 
तुम आस-पास...
मैं बन के हमराह..
हर पल तुम्हारे 
संग चलूंगी..
तुम मेरा नाम 
'सखी' रख देना..
बस तुम्हारे लिये 
ही तो मैं आयी हु यंहा ...
तुम्हारे लिये ही रहूंगी... सदा  
तुम्हारा उलझा-उलझा सा दिल...
रोज़ करता है कितने सवाल...
आज मैं दूंगी साथ...
तुम्हारे हर सवाल का 
आज जवाब बनूंगी मैं ..
तुम मेरा नाम 'ज़िन्दगी' रख देना..
बस तुम्हारे लिये तो हूं मैं..
तुम्हारे लिये ही रहूंगी...

मैं खिड़की पे बैठा रहा ...


रात भर सोया नही मैं...
सोचता तुमको रहा ...
चांदनी खिड़की पे खड़ी थी...
मैं खिड़की पे बैठा रहा ...
चांदनी से बातें हुई...
रोशन सितारों को तका...
नींद पास में थी...
पलकें मगर झपकी नहीं...
मुझसे नाराज हैं....
चादर, बिस्तर, तकिये मेरे...
उनको सोना है...मगर..
मैं सोचता तुमको रहा ...
आंखों में उलझे हैं ख्वाब कितने..
क्या जानोगी तुम....
इक बार बस तुम 
पास मेरे आ जाओ अब ..
देखना फ़िर मानोगी तुम...
रात मुझसे अक्सर....
पूछा करती है एक सवाल..
जुल्फ़ उलझती हवा कहती है..
उसे भी है मलाल....
क्यूं सोता नहीं मैं....
तुमने कभी जाना ही नहीं...
किस तकलीफ में जी रहा हु मैं ..

Thursday 13 July 2017

तुम रंगों की धूप सरीखी ...

तुम वो सपनीली धुप 
तेरे बिन मेरा हाल 
ऐसा जैसे-मेरा मन...
एक सीला.. अंधेरा कमरा...
जिसमें सन्नाटा.. 
पसरा हो..मेरे सपने...
उस अंधेरे में..एक उदास..
रोशनी की लकीर से...
मेरी धड़कन...कमरे 
में गुजरती... हवा की..
सरसराहट सी... सहमी हुई..
मेरे अह्सास..उस अंधियारे में..
खो चुके उजालों से...और तुम...
अचानक उतर आई.. सपनीले..
रंगों की धूप सरीखी ...
और मैं....उस धूप को... मुठी में..
बंद करने की.. कोसिस में              
      

मेरी रात करेगी आंलिगन तेरा..

आज बताता हु तुम्हे 
जब मेरी रात को 
मिलेगा तेरा साथ 
तो सुबह कैसी होगी  ... 
उस सुबह जब तुम होगी
मेरे साथ और  
ज्योत्सना जो करेगी 
आंलिगन तेरा..
तो भोर की लाली भी 
होगी गरमाई सी..
बावरी काली बदरिया 
तुम पर झुक जाएँगी ..
मैं छेड़ता रहूँगा उन 
घनघोर घटाओं को...
घटाएं जो छुपाना चाहेंगी 
तुम्हारा बदन ...
और मैं बदलो की तरह 
बरस पडूंगा तुम्हारे ऊपर  

मेरी सुबह कैसी होगी  ... 


आज बताता हु तुम्हे 
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी  ...
स्याह, तन्हा..रात ने
जो पाया संग तेरा..
वो सुबह होगी मेरी
बड़ी खिली-खिली सी...
रात भर पगली हवायें
तुझसे लिपटी रहेगी ..
तेरे जिस्म का
संदल छूती रहेंगी ..
सर्द हवाओं को जो
तुम सहला दोगी...
तभी ये पुरवा भी होगी
महकी-महकी सी...
आसमां पे छिटकी
धवल,चंचल चांदनी...
तुम्हें अपने आगोश में
भरना चाहेंगी हर पल .
.


Wednesday 12 July 2017

इसे थमना ही होगा.. 

धरती की चाह
नहीं ऐसा नहीं होगा..... 
ये धीमी.. 
अजब सी बारिश.... 
इसे थमना ही होगा.. 
नहीं तो लगता है 
मेरा दम घुट जायेगा........ 
जैसे सांस नहीं ले पाउंगी.... 
मुझे खुला आकाश चाहिये..... 
नीला -चमकीला.... 
उष्ण धूप चाहिये मुझे..... 
खुली हवा.. चमकीले तारे ..... 
चांदनी रात...... 
ये चाहता है मेरा मन.... 
जानती हूं बादल छंट जायेंगे..... 
इन्हें मुझे मेरा आकाश 
लौटाना ही होगा....... 
अब मुझे इनकी चाह नहीं....... 
आकाश को अब मिलेगी सदा 
धुली-खुली... सुंदर.... 
वसुंधरा जैसा वो चाहता है ... 
वो भी नीले आसमां तले...........    
                  

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !