Monday 31 July 2017
व्यक्तित्व खुद के हांथो गढ़ती है
प्रेमिकाओं ...
की आँखें अँधेरे
में भी भय नहीं खाती
ना ही सूरज की तपती
किरणों से वो कुम्हलाती है ;
वो तो सूरज की किरणों को
लपेट लेती है अपनी कमर में
और वो नहीं इंतज़ार करती
किसी और के मार्गदर्शन का
वो चलती है अपनी चाल
देखती नहीं चाल सधी हुई है
या नहीं बस चारो पहर के सांचे में
गूंथती है अपना तन और गढ़ती है
वो अपना व्यक्तित्व खुद के हांथो
की आँखें अँधेरे
में भी भय नहीं खाती
ना ही सूरज की तपती
किरणों से वो कुम्हलाती है ;
वो तो सूरज की किरणों को
लपेट लेती है अपनी कमर में
और वो नहीं इंतज़ार करती
किसी और के मार्गदर्शन का
वो चलती है अपनी चाल
देखती नहीं चाल सधी हुई है
या नहीं बस चारो पहर के सांचे में
गूंथती है अपना तन और गढ़ती है
वो अपना व्यक्तित्व खुद के हांथो
तन की कलाओं का पहर
मेरे लिए प्रेम
नाभि से चलकर
कंठ तक आकर
गूंजने वाला "ॐ" है
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों
पर दर्ज तुम्हारे
अंगूठे की छाप सा है
आधी रात का वो
पहर तन की कलाओं का
पहर होता है तब अक्सर
मेरे घर में लगे सारे दर्पण
में तुम्हारी तस्वीर उभर
आती है स्वतः ही और
तब तुम होती हो पूर्ण
श्रृंगार धारण किये हुए
जानते हुए की अगले ही पल
ये सारे श्रृंगार होंगे
मेरे हवाले
नाभि से चलकर
कंठ तक आकर
गूंजने वाला "ॐ" है
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों
पर दर्ज तुम्हारे
अंगूठे की छाप सा है
आधी रात का वो
पहर तन की कलाओं का
पहर होता है तब अक्सर
मेरे घर में लगे सारे दर्पण
में तुम्हारी तस्वीर उभर
आती है स्वतः ही और
तब तुम होती हो पूर्ण
श्रृंगार धारण किये हुए
जानते हुए की अगले ही पल
ये सारे श्रृंगार होंगे
मेरे हवाले
Saturday 29 July 2017
मौन होना ही है
मौन तो होना ही है
एक दिन चाहे नियति के चक्र में
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इस तरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ कर रह जाओगे..?
एक दिन चाहे नियति के चक्र में
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इस तरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ कर रह जाओगे..?
वही एक गीत लिखता हूँ
मैंने लिखना चाहा
केवल एक प्रेम गीत
तुम्हारे लिए...हर बार
सबकुछ हार कर
वही एक गीत लिखता हूँ
पर तुम्हारा रूप
और विस्तार पा जाता है
जो मेरे गीतों में
नहीं समा पाता है...
हर बार
मेरा गीत हार जाता है....
मैं फिर लिखता हूँ
नए गीतों को
जिसमें तुम्हें
पिरो देना चाहता हूँ..
लेकिन कुछ
शेष रह जाता है
जिसे मेरा गीत
नहीं अटा पाता है....
जो शेष रह जाता है
वही मुझसे बार-बार
नये गीत लिखवाता है
Friday 28 July 2017
छू आऊँ उस अनंत को.....
तुमसे कोई शत-प्रतिशत
परिणाम पाने की
चाहत भी नहीं
बल्कि तुमसे
सूत्रबद्ध होने के लिए
करता रहता हूँ
सूचकांक को
शून्य से भी नीचे.....
ताकि पूरी तरह से तुम
रहो संतुष्ट मुझसे
और मैं छू-छू आऊँ
उस अनंत को.....
पर तुम मुझे यूँ ही
गुणा कर लेती हो
किसी शून्य से और
अपने संख्यातीत चाहतों के
आगे-पीछे लगा लेती हो
केवल अपने हिसाब से....
क्या तुम नहीं जानती कि
तुम्हारा गणित भी है
सूत्रहीन या तो मेरे
अनंत होने मात्र से
या बस कल्पशून्य
होने मात्र से .
परिणाम पाने की
चाहत भी नहीं
बल्कि तुमसे
सूत्रबद्ध होने के लिए
करता रहता हूँ
सूचकांक को
शून्य से भी नीचे.....
ताकि पूरी तरह से तुम
रहो संतुष्ट मुझसे
और मैं छू-छू आऊँ
उस अनंत को.....
पर तुम मुझे यूँ ही
गुणा कर लेती हो
किसी शून्य से और
अपने संख्यातीत चाहतों के
आगे-पीछे लगा लेती हो
केवल अपने हिसाब से....
क्या तुम नहीं जानती कि
तुम्हारा गणित भी है
सूत्रहीन या तो मेरे
अनंत होने मात्र से
या बस कल्पशून्य
होने मात्र से .
Thursday 27 July 2017
ऐसी कोई व्याख्या
मैंने तो प्रेम किया
सिर्फ तुम्हारा साथ
पाने के लिए जो
तुम ना दे पायी मुझे
अब तक सिर्फ
और सिर्फ दुसरो की
फिक्र के कारन
क्या प्रेम में इंसान
दुसरो की फिक्र
इस कदर करता है की
उसका खुद का प्रेम ही
दोराहे पे खड़ा हो जाए
मैंने अब तक प्रेम
के बारे जितना कुछ
लिखा उसमें नहीं
है ऐसी कोई व्याख्या
इसलिए पूछता हु तुमसे
सिर्फ तुम्हारा साथ
पाने के लिए जो
तुम ना दे पायी मुझे
अब तक सिर्फ
और सिर्फ दुसरो की
फिक्र के कारन
क्या प्रेम में इंसान
दुसरो की फिक्र
इस कदर करता है की
उसका खुद का प्रेम ही
दोराहे पे खड़ा हो जाए
मैंने अब तक प्रेम
के बारे जितना कुछ
लिखा उसमें नहीं
है ऐसी कोई व्याख्या
इसलिए पूछता हु तुमसे
चाहतों के गणित
तुमसे प्रेम करके
जितना मैंने
खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों
और इच्छाओं के
प्रमादी प्रमेय के
हिसाब से
उतना ही तुम
अनुपातों के नियम
को धता देकर
सिद्ध करती रही
कि चाहतों के
गणित को सही-सही
समझना मेरे वश
की बात नहीं
पर तुम्हे कैसे
बताऊ मैं की
मैंने समझा भी सही
और किया भी सही
पर तुम अब तक
नहीं स्वीकार पर पायी
की प्रेम में बगावत
निहित है .....
जितना मैंने
खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों
और इच्छाओं के
प्रमादी प्रमेय के
हिसाब से
उतना ही तुम
अनुपातों के नियम
को धता देकर
सिद्ध करती रही
कि चाहतों के
गणित को सही-सही
समझना मेरे वश
की बात नहीं
पर तुम्हे कैसे
बताऊ मैं की
मैंने समझा भी सही
और किया भी सही
पर तुम अब तक
नहीं स्वीकार पर पायी
की प्रेम में बगावत
निहित है .....
Wednesday 26 July 2017
बस तुम्हें फूल देता रहूँगा
तुममें जबसे खोया
तुझमे मेरे बीजों
को बोया अब
जब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तब तुम बाँहों
में आकर मेरी
यूँ घेर लेती हो
उन्हीं फूलों को
बिखेर देती हो
और कहती हो -
भूल जाओ दर्द को....
ये जिद ही है मेरी
कि मैं तुममें यूँ ही
खोया रहूँगा
और काँटे खुद को
चुभोता रहूँगा
बस तुम्हें फूल देता रहूँगा
पर क्या तुम
कभी उन फूलो को
मेरी बांहो में खेलने दोगी?
तुझमे मेरे बीजों
को बोया अब
जब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तब तुम बाँहों
में आकर मेरी
यूँ घेर लेती हो
उन्हीं फूलों को
बिखेर देती हो
और कहती हो -
भूल जाओ दर्द को....
ये जिद ही है मेरी
कि मैं तुममें यूँ ही
खोया रहूँगा
और काँटे खुद को
चुभोता रहूँगा
बस तुम्हें फूल देता रहूँगा
पर क्या तुम
कभी उन फूलो को
मेरी बांहो में खेलने दोगी?
Tuesday 25 July 2017
क्यों डरती हो आखिर
क्यों डरती हो
तुम प्यार से
ये भी भला कोई
डरने की चीज़ है
फिर किन्यु नहीं
कह देती सबको
तो खोलने दो ना,
क्यों डरती हो आखिर
क्या होगा ?
बिखर ही जाओगी ना
तो बिखर जाने दो
अपने आप को
प्यार से संवार
लेगा तुम्हे कोई
फिर किन्यु नहीं सब छोड़ कर
जाती उसके पास
और प्यार में
सज-संवर कर
खुशबू सी महकेगी
तुम्हारी जिन्दगी.....!!
फिर किन्यु नहीं चाहती तुम
उसकी ज़िन्दगी संवारना
बोलो ?
तुम प्यार से
ये भी भला कोई
डरने की चीज़ है
फिर किन्यु नहीं
कह देती सबको
तो खोलने दो ना,
क्यों डरती हो आखिर
क्या होगा ?
बिखर ही जाओगी ना
तो बिखर जाने दो
अपने आप को
प्यार से संवार
लेगा तुम्हे कोई
फिर किन्यु नहीं सब छोड़ कर
जाती उसके पास
और प्यार में
सज-संवर कर
खुशबू सी महकेगी
तुम्हारी जिन्दगी.....!!
फिर किन्यु नहीं चाहती तुम
उसकी ज़िन्दगी संवारना
बोलो ?
Monday 24 July 2017
Saturday 22 July 2017
थाह मेरे प्रेम की
कहा मुमकिन है
अभिव्यक्त कर
पाना हु ब हु प्रेम को
अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे
क्या संभव है शब्दों में
प्रेम समेट पाना
क्या संभव है प्रेम को
भाषा में व्यक्त कर पाना
क्या संभव है अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना
क्या संभव है
चाहत के विस्त्रत आकाश को
शब्दों में बाँध पाना
नहीं शायद इसलिए
तुम समझ ही नहीं पायी
थाह मेरे प्रेम की अब तक
अभिव्यक्त कर
पाना हु ब हु प्रेम को
अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे
क्या संभव है शब्दों में
प्रेम समेट पाना
क्या संभव है प्रेम को
भाषा में व्यक्त कर पाना
क्या संभव है अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना
क्या संभव है
चाहत के विस्त्रत आकाश को
शब्दों में बाँध पाना
नहीं शायद इसलिए
तुम समझ ही नहीं पायी
थाह मेरे प्रेम की अब तक
अभिव्यक्ति की खुश्बू
मेरे जिस्म की
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं,
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं,
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में,
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं,
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं,
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ,
सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....
सुनो आकर तुम मेरी
अभिव्यक्ति अब तो
मेरे पास ....
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं,
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं,
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में,
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं,
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं,
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ,
सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....
सुनो आकर तुम मेरी
अभिव्यक्ति अब तो
मेरे पास ....
Friday 21 July 2017
मेरे ख्वाब
रात भर
उनिंदी सी रात ओढ़े
जागती आँखों ने
हसीन ख्वाब जोड़े
सुबह की आहट से पहले
छोड़ आया हूँ वो ख्वाब
तुम्हारे तकिये तले
अब जब कभी
कच्ची धूप की पहली किरण
तुम्हारी पलकों पे
दस्तक देगी
तकिये के नीचे से
सरक आये मेरे ख्वाब
तुम्हारी आँखों में
उतर जाएँगे
तुम हौले से अपनी
आँखें खोलना कंही
टपक ना पड़े वो
तुम्हारी आँखों से
जमीन पर
Thursday 20 July 2017
तुझे हंसा दूं.......
थम गयी है हवा,
ठिठक गयी कायनात,
क्यूँ न नीले आसमान की
चादर पर सजे,
बादल के सफ़ेद फूल,
फूंक मार कर उड़ा दूं........
या हलके से गुदगुदी कर,
तुझे हंसा दूं.......
बादलों के बदलते रूप में,
तेरा उदास चेहरा,
अच्छा नहीं लगता........
जब तू खिलखिला
कर हंस पड़ेगी,
ये हवा चल पड़ेगी,
बादल भी बदलने
लगेंगे अपना रूप,
अटकी हुई कायनात,
खुद-बा-खुद चल पड़ेगी.
Wednesday 19 July 2017
सांस लेती चिंगारियां
छिटक कर गिर गए
कुछ लम्हे ..लेकिन
बाकी है उनमे
अभी भी उनमे ...
सांस लेती चिंगारियां
बुदबुदाते अस्फुट शब्द ...
अटकती साँसें
महकता एहसास ........
पलकें झुकाए
पूजा की थाली लिए
मेरे घर की दहलीज़ पर
गुलाबी साड़ी में लिपटा
तेरा रूप...........
और भी बाकी है
बहुत कुछ
उन जागते लम्हों में ........
बस चुनना है तुम्हे
उन लम्हो को
इससे पहले की
साँस लेती चिंगारी
बुझ जाए उनमे
कुछ लम्हे ..लेकिन
बाकी है उनमे
अभी भी उनमे ...
सांस लेती चिंगारियां
बुदबुदाते अस्फुट शब्द ...
अटकती साँसें
महकता एहसास ........
पलकें झुकाए
पूजा की थाली लिए
मेरे घर की दहलीज़ पर
गुलाबी साड़ी में लिपटा
तेरा रूप...........
और भी बाकी है
बहुत कुछ
उन जागते लम्हों में ........
बस चुनना है तुम्हे
उन लम्हो को
इससे पहले की
साँस लेती चिंगारी
बुझ जाए उनमे
Tuesday 18 July 2017
Monday 17 July 2017
शामिल हूं तुम में हमेशा..
मैं समझती हूं तुम्हें....
शामिल हूं तुम में हमेशा..
हर बार कहती रही वो ..
पर जब भी खामोशियों को...
सुनने का वक्त आया....
धङकन भी कहां सुन सकी वो ....
कहने को सब कह देते हैं, पर..
दिल की जुबां कहां समझता है कोई....
तुम्हारे दर्द का एहसास है मुझे...
महसूस करती हूं तुम्हें हमेशा...
हर बार जताती रही वो...
पर जब भी ज़ख्मों को...
सहने का वक्त आया....
जरा सा भी दर्द
कहां सह सकी वो ...
शामिल हूं तुम में हमेशा..
हर बार कहती रही वो ..
पर जब भी खामोशियों को...
सुनने का वक्त आया....
धङकन भी कहां सुन सकी वो ....
कहने को सब कह देते हैं, पर..
दिल की जुबां कहां समझता है कोई....
तुम्हारे दर्द का एहसास है मुझे...
महसूस करती हूं तुम्हें हमेशा...
हर बार जताती रही वो...
पर जब भी ज़ख्मों को...
सहने का वक्त आया....
जरा सा भी दर्द
कहां सह सकी वो ...
Saturday 15 July 2017
मेरा नाम 'जिंदगी' रख देना...
किसे ढूंढ रहे हो
तुम आस-पास...
मैं बन के हमराह..
हर पल तुम्हारे
संग चलूंगी..
क्यूं बुझा-बुझा सा
मन तुम्हारा...
नहीं जगता इसमें
अब कोई अरमान....
मैं तुम्हारे सूखे होठों पर...
बन के मुस्कान खिलूंगी...
तुम मेरा नाम 'खुशी' रख देना...
बस तुम्हारे लिये तो हूं मैं ...
तुम्हारे लिये ही रहूंगी.... सदा
जाने कबसे हो निःशब्द....
हर पल बोझल कटता ही नहीं...
तुम्हारे इस रूके जीवन में...
मैं दिल बन कर धड़कूंगी...
तुम मेरा नाम 'जिंदगी' रख देना...
बस तुम्हारे लिये तो मैं हूं..
तुम्हारे लिये ही रहूंगी....
अभिव्यक्ति के कुछ शब्द
पता ही नहीं किन्यु
तुम तक पहुँचने से पहले
हर बार ही
लड़खड़ा कर गिर
जाते है मेरी
अभिव्यक्ति
के कुछ शब्द
घायल शब्दों की
की झिर्री से
बिखर जाती है ;
मेरी चाहत ;
बह जाते है
मेरे एहसास
और उघड़ जाते है ;
मेरे अधूरे स्वप्न
उफ़ तुझसे मिलन की प्यास
में मैं ही क़द्र नहीं
कर पाता हु ;
मेरे इन एहसासों की
अब सोचा है
इज्जत बख्सूंगा इन
ज़ज़्बातों को इन्हें यु नहीं
बिखरने दूंगा अब
अश्वथामा हो गए बेताब शब्द
हा अक्सर ही
तुम तक पहुँचने
से पहले ही कुछ
अन्जाने शब्द
बिखर जाते है
तुम्हारे रास्ते पर
अनदेखा कर
शब्दों की चाहत
कुचल देती हो तुम
उन सब्दो के अर्थ ,
उनकी अभिव्यक्ति
उनकी चाहत,
मौन अनुरक्ति
शब्दों का उमड़ता सैलाब
अब समुन्दर हो गया है
बिखरने को बेताब शब्द
अश्वथामा हो गए हैं
भटक रहे हैं
तुम्हारी तलाश में
दर बदर सुना होगा तुमने
द्धापर युग चला गया
अब कंही कलयुग भी न
गुजर जाए
Friday 14 July 2017
मेरी सुबह होगी खिली-खिली सी...
आज बताता हु तुम्हे
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी ...
तब मेरी सुबह लेगी
अलसाई, अंगड़ाई सी...
ये फ़िज़ायें तुमसे
अठखेलियां करती रहेंगी ..
कभी बिखरती,
कभी तुममें सिमटती रहेंगी...
शोख कलियों को जो
चूम लूंगा मैं ...
तब फूलों पे शबनम
भी शर्माएंगी और ...
झील की लहरें
करवटें बदलती रहेंगी ..
ठंडी रेत तेरे पैरों तले
पिघलती रहेंगी ..
तुमने जो वादियों
का दामन ओढोगी ..
सुबह आसमां बदलेगा
करवट भी अनमनी सी...
रात जो पायेगी संग तेरा...
तो मेरी सुबह होगी
खिली-खिली सी...
मेरा नाम 'सखी' रख देना..
किसे ढूंढ रहे हो
तुम आस-पास...
मैं बन के हमराह..
हर पल तुम्हारे
संग चलूंगी..
तुम मेरा नाम
'सखी' रख देना..
बस तुम्हारे लिये
ही तो मैं आयी हु यंहा ...
तुम्हारे लिये ही रहूंगी... सदा
तुम्हारा उलझा-उलझा सा दिल...
रोज़ करता है कितने सवाल...
आज मैं दूंगी साथ...
तुम्हारे हर सवाल का
आज जवाब बनूंगी मैं ..
तुम मेरा नाम 'ज़िन्दगी' रख देना..
बस तुम्हारे लिये तो हूं मैं..
तुम्हारे लिये ही रहूंगी...
तुम आस-पास...
मैं बन के हमराह..
हर पल तुम्हारे
संग चलूंगी..
तुम मेरा नाम
'सखी' रख देना..
बस तुम्हारे लिये
ही तो मैं आयी हु यंहा ...
तुम्हारे लिये ही रहूंगी... सदा
तुम्हारा उलझा-उलझा सा दिल...
रोज़ करता है कितने सवाल...
आज मैं दूंगी साथ...
तुम्हारे हर सवाल का
आज जवाब बनूंगी मैं ..
तुम मेरा नाम 'ज़िन्दगी' रख देना..
बस तुम्हारे लिये तो हूं मैं..
तुम्हारे लिये ही रहूंगी...
मैं खिड़की पे बैठा रहा ...
रात भर सोया नही मैं...
सोचता तुमको रहा ...
चांदनी खिड़की पे खड़ी थी...
मैं खिड़की पे बैठा रहा ...
चांदनी से बातें हुई...
रोशन सितारों को तका...
नींद पास में थी...
पलकें मगर झपकी नहीं...
मुझसे नाराज हैं....
चादर, बिस्तर, तकिये मेरे...
उनको सोना है...मगर..
मैं सोचता तुमको रहा ...
आंखों में उलझे हैं ख्वाब कितने..
क्या जानोगी तुम....
इक बार बस तुम
पास मेरे आ जाओ अब ..
देखना फ़िर मानोगी तुम...
रात मुझसे अक्सर....
पूछा करती है एक सवाल..
जुल्फ़ उलझती हवा कहती है..
उसे भी है मलाल....
क्यूं सोता नहीं मैं....
तुमने कभी जाना ही नहीं...
किस तकलीफ में जी रहा हु मैं ..
Thursday 13 July 2017
तुम रंगों की धूप सरीखी ...
तुम वो सपनीली धुप
तेरे बिन मेरा हाल
ऐसा जैसे-मेरा मन...
एक सीला.. अंधेरा कमरा...
जिसमें सन्नाटा..
पसरा हो..मेरे सपने...
उस अंधेरे में..एक उदास..
रोशनी की लकीर से...
मेरी धड़कन...कमरे
में गुजरती... हवा की..
सरसराहट सी... सहमी हुई..
मेरे अह्सास..उस अंधियारे में..
खो चुके उजालों से...और तुम...
अचानक उतर आई.. सपनीले..
रंगों की धूप सरीखी ...
और मैं....उस धूप को... मुठी में..
बंद करने की.. कोसिस में
तेरे बिन मेरा हाल
ऐसा जैसे-मेरा मन...
एक सीला.. अंधेरा कमरा...
जिसमें सन्नाटा..
पसरा हो..मेरे सपने...
उस अंधेरे में..एक उदास..
रोशनी की लकीर से...
मेरी धड़कन...कमरे
में गुजरती... हवा की..
सरसराहट सी... सहमी हुई..
मेरे अह्सास..उस अंधियारे में..
खो चुके उजालों से...और तुम...
अचानक उतर आई.. सपनीले..
रंगों की धूप सरीखी ...
और मैं....उस धूप को... मुठी में..
बंद करने की.. कोसिस में
मेरी रात करेगी आंलिगन तेरा..
आज बताता हु तुम्हे
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी ...
उस सुबह जब तुम होगी
मेरे साथ और
ज्योत्सना जो करेगी
आंलिगन तेरा..
तो भोर की लाली भी
होगी गरमाई सी..
बावरी काली बदरिया
तुम पर झुक जाएँगी ..
मैं छेड़ता रहूँगा उन
घनघोर घटाओं को...
घटाएं जो छुपाना चाहेंगी
तुम्हारा बदन ...
और मैं बदलो की तरह
बरस पडूंगा तुम्हारे ऊपर
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी ...
उस सुबह जब तुम होगी
मेरे साथ और
ज्योत्सना जो करेगी
आंलिगन तेरा..
तो भोर की लाली भी
होगी गरमाई सी..
बावरी काली बदरिया
तुम पर झुक जाएँगी ..
मैं छेड़ता रहूँगा उन
घनघोर घटाओं को...
घटाएं जो छुपाना चाहेंगी
तुम्हारा बदन ...
और मैं बदलो की तरह
बरस पडूंगा तुम्हारे ऊपर
मेरी सुबह कैसी होगी ...
आज बताता हु तुम्हे
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी ...
स्याह, तन्हा..रात ने
जो पाया संग तेरा..
वो सुबह होगी मेरी
बड़ी खिली-खिली सी...
रात भर पगली हवायें
तुझसे लिपटी रहेगी ..
तेरे जिस्म का
संदल छूती रहेंगी ..
सर्द हवाओं को जो
तुम सहला दोगी...
तभी ये पुरवा भी होगी
महकी-महकी सी...
आसमां पे छिटकी
धवल,चंचल चांदनी...
तुम्हें अपने आगोश में
भरना चाहेंगी हर पल ..
जब मेरी रात को
मिलेगा तेरा साथ
तो सुबह कैसी होगी ...
स्याह, तन्हा..रात ने
जो पाया संग तेरा..
वो सुबह होगी मेरी
बड़ी खिली-खिली सी...
रात भर पगली हवायें
तुझसे लिपटी रहेगी ..
तेरे जिस्म का
संदल छूती रहेंगी ..
सर्द हवाओं को जो
तुम सहला दोगी...
तभी ये पुरवा भी होगी
महकी-महकी सी...
आसमां पे छिटकी
धवल,चंचल चांदनी...
तुम्हें अपने आगोश में
भरना चाहेंगी हर पल ..
Wednesday 12 July 2017
इसे थमना ही होगा..
धरती की चाह
नहीं ऐसा नहीं होगा.....
ये धीमी..
अजब सी बारिश....
इसे थमना ही होगा..
नहीं तो लगता है
मेरा दम घुट जायेगा........
जैसे सांस नहीं ले पाउंगी....
मुझे खुला आकाश चाहिये.....
नीला -चमकीला....
उष्ण धूप चाहिये मुझे.....
खुली हवा.. चमकीले तारे .....
चांदनी रात......
ये चाहता है मेरा मन....
जानती हूं बादल छंट जायेंगे.....
इन्हें मुझे मेरा आकाश
लौटाना ही होगा.......
अब मुझे इनकी चाह नहीं.......
आकाश को अब मिलेगी सदा
धुली-खुली... सुंदर....
वसुंधरा जैसा वो चाहता है ...
वो भी नीले आसमां तले...........
नहीं ऐसा नहीं होगा.....
ये धीमी..
अजब सी बारिश....
इसे थमना ही होगा..
नहीं तो लगता है
मेरा दम घुट जायेगा........
जैसे सांस नहीं ले पाउंगी....
मुझे खुला आकाश चाहिये.....
नीला -चमकीला....
उष्ण धूप चाहिये मुझे.....
खुली हवा.. चमकीले तारे .....
चांदनी रात......
ये चाहता है मेरा मन....
जानती हूं बादल छंट जायेंगे.....
इन्हें मुझे मेरा आकाश
लौटाना ही होगा.......
अब मुझे इनकी चाह नहीं.......
आकाश को अब मिलेगी सदा
धुली-खुली... सुंदर....
वसुंधरा जैसा वो चाहता है ...
वो भी नीले आसमां तले...........
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प्रेम !!
ये सच है कि प्रेम पहले ह्रदय को छूता है मगर ये भी उतना ही सच है कि प्रगाढ़ वो देह को पाकर होता है !
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भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ___________________ बदल सकता है,प्रेम का रंग ; बदल सकता है ,मन का स्वभाव ; बदल सकती है ,जीवन की दिशा ; ...
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मेरे अरमानों की भी तो जननी तुम हो ! _____________________________ आधी रात कौंधी उसकी चितवन और उसने दरवाज़ा अपने घर का खुला छ...
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तुम प्रेरणा हो मेरी, तुम धारणा हो मेरी अकेलेपन के जंगलों में अचानक से मिले इक कल्पतरु से छन कर आती हुयी छांव हो मेरी... गयी शाम...