Saturday 29 July 2017

केवल तुम्हें ही  लिखता हूँ

सुबह से ही
खोल - खोलकर
दिल के ज़ज़्बातों को 
बोल - बोलकर 
पढता हूँ
और रात ढलने तक 
अपने दिल की सियाही से 
अपने पन्नों पर 
केवल तुम्हें ही 
लिखता हूँ .
कुछ साधारण से 
शब्दों को 
जोड़ - जोड़कर
अपनी कविता में 
केवल तुम्हें ही 
रचा है 
पर तुझ जैसी सीपी में 
गिरने को 
मैं स्वाति बूंद
सा अब भी बचा हु                      

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !