मैंने लिखना चाहा
केवल एक प्रेम गीत
तुम्हारे लिए...हर बार
सबकुछ हार कर
वही एक गीत लिखता हूँ
पर तुम्हारा रूप
और विस्तार पा जाता है
जो मेरे गीतों में
नहीं समा पाता है...
हर बार
मेरा गीत हार जाता है....
मैं फिर लिखता हूँ
नए गीतों को
जिसमें तुम्हें
पिरो देना चाहता हूँ..
लेकिन कुछ
शेष रह जाता है
जिसे मेरा गीत
नहीं अटा पाता है....
जो शेष रह जाता है
वही मुझसे बार-बार
नये गीत लिखवाता है
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