Tuesday 11 July 2017

ख्वाब बैठा है खामोश

चिरांग जले और  
एक ख्वाब उतरा, 
वक़्त की देहलीज़ पर, 
बैठा है खामोश, 
की कब उसकी नींद टूटे, 
और देख ले उसे भी ,
आँख भर...
इससे पहले की ,
सहर हो,
और बिखर जाए,
उस का वजूद,
ज़र्रा ज़र्रा,
वो देख ले उसे भी ,
आँख भर इसी उम्मीद में
बैठा है तेरे दर पर
पिछले साढ़े साल से                        
मेरा वो अधूरा ख्वाब 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !