Friday 28 July 2017

छू आऊँ उस अनंत को.....

तुमसे कोई शत-प्रतिशत
परिणाम पाने की 
चाहत भी नहीं
बल्कि तुमसे 
सूत्रबद्ध होने के लिए
करता रहता हूँ 
सूचकांक को
शून्य से भी नीचे.....
ताकि पूरी तरह से तुम
रहो संतुष्ट मुझसे 
और मैं छू-छू आऊँ
उस अनंत को.....
पर तुम मुझे यूँ ही
गुणा कर लेती हो
किसी शून्य से और
अपने संख्यातीत चाहतों के
आगे-पीछे लगा लेती हो
केवल अपने हिसाब से....
क्या तुम नहीं जानती कि
तुम्हारा गणित भी है 
सूत्रहीन या तो मेरे 
अनंत होने मात्र से
या बस कल्पशून्य 
होने मात्र से . 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !