Thursday 6 July 2017

थोडा मोहलत देना ?

प्यार मेरे तुम 
थोड़ी मोहलत देना ?
मुझे तुम इस बार
संवरने को भी इस बार 
जाने कब् से खो गई है
मेरे जूडे की पिन 
कब् से नहीं देखा है
आईना जी भर कर 
अभी तो तवे पर
रोटी जलने को है 
अभी तो भरा नही है
मटके में पानी 
कहीं तुम बहुत
जल्दी में तो नही हो 
थोडा रुकना वहीं
लौट न जाना यूं ही 
कि मैं जुटा लूं
थोडा साहस 
एक गहरी सांस लूं और
खो जाऊं इस तरह कि 
छूट न जाए यह साथ्
फिर कहीं इस बार बोलो 
छोड़ तो ना जाओगे
मुझे तुम यु ही?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !