जाने क्यों
होता है ऐसा,
हर बार,
जब बात होती है तुमसे,
कुछ ना कुछ है
जो रह जाता है
कहने से तुम्हे ,
दिल की खामोश
धड़कन में क़ैद,
नाज़ुक, बेचैन सा
वो एहसास,
अल्फ़ाज़ों की
बंदिश से महरूम,
उस लम्हे में कांपता,
बेचारा सा,
शायद इस
इंतज़ार में ज़िंदा है,
के कभी किसी रोज़,
तुम खुद ही बिन कहे
समझ जाओगी
वैसे ऐसा करते हुए
मैंने पुरे कर दिए है
लगभग पांच साल
होता है ऐसा,
हर बार,
जब बात होती है तुमसे,
कुछ ना कुछ है
जो रह जाता है
कहने से तुम्हे ,
दिल की खामोश
धड़कन में क़ैद,
नाज़ुक, बेचैन सा
वो एहसास,
अल्फ़ाज़ों की
बंदिश से महरूम,
उस लम्हे में कांपता,
बेचारा सा,
शायद इस
इंतज़ार में ज़िंदा है,
के कभी किसी रोज़,
तुम खुद ही बिन कहे
समझ जाओगी
वैसे ऐसा करते हुए
मैंने पुरे कर दिए है
लगभग पांच साल
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