Saturday, 8 July 2017

मेरे मन का कोना

एक बार नहीं 
कितनी बार डूबा हूँ ,
फिर खुद ही
आशा और विस्वास की 
किरणों को पकड़
निकल आया हूँ बाहर !
मेरे मन का कोना ,कोना
आशाओ से है ओत - प्रोत !
फिर भी
अपने जिस्म पे 
उभर आये
जख्मो को देख 
जब घबरा जाता  हूँ
मै हो जाता हूँ गुमशुदा ,
खो जाता हूँ ,तेरी 
यादो के जंगल मे
और उलझते - उलझते
और भी जख्मी हो जाता हूँ !!

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !