एक बार नहीं
कितनी बार डूबा हूँ ,
फिर खुद ही
आशा और विस्वास की
किरणों को पकड़
निकल आया हूँ बाहर !
मेरे मन का कोना ,कोना
आशाओ से है ओत - प्रोत !
फिर भी
अपने जिस्म पे
उभर आये
जख्मो को देख
जब घबरा जाता हूँ
मै हो जाता हूँ गुमशुदा ,
खो जाता हूँ ,तेरी
यादो के जंगल मे
और उलझते - उलझते
और भी जख्मी हो जाता हूँ !!
कितनी बार डूबा हूँ ,
फिर खुद ही
आशा और विस्वास की
किरणों को पकड़
निकल आया हूँ बाहर !
मेरे मन का कोना ,कोना
आशाओ से है ओत - प्रोत !
फिर भी
अपने जिस्म पे
उभर आये
जख्मो को देख
जब घबरा जाता हूँ
मै हो जाता हूँ गुमशुदा ,
खो जाता हूँ ,तेरी
यादो के जंगल मे
और उलझते - उलझते
और भी जख्मी हो जाता हूँ !!
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