Tuesday 30 April 2019

प्रेम के प्रमाण मिले !

प्रेम के प्रमाण मिले !

प्रखर के पुराने शेरों में,
कागज़ के पुराने टुकड़ों में;

उसके एहसासों के ये चंद, 
अभिव्यक्त भाव निकले हैं;

कुछ गुलाब की सूखी पत्तियों,
पर उसकी मेहबूबा के नाम लिखे है; 

कुछ आधी-अधूरी तहरीरें और, 
कुछ खत से भरे लिफाफे मिले है; 

और कुछ तुम्हारी और मेरी गले, 
मिलते हुए की चंद तस्वीरें मिली है; 

कुछ बालों में लगे गजरे तो, 
कुछ टूटी हुई चूड़ियों के टुकड़े मिले है; 

प्रखर के पुराने शेरों में तुम्हे, 
उसके प्रेम के प्रमाण मिले है !

Monday 29 April 2019

तुम्हारे हाथों को थामकर !


तुम्हारे हाथों को थामकर ! 

एक दिन तुम्हारे हाथो को,
अपने हाथों में थामकर मैं;  

तुम्हारे सारे दुःख और दर्द को,  
सहर्ष स्वीकार अपना लूंगा मैं; 

एक दिन तुम्हारे धड़कते सीने, 
पर अपना सर रख कर मैं;  

तुम्हारी धड़कनो को अपने,
सारे के सारे सुर दे दूंगा मैं; 

एक दिन तुम्हारी पलकों को, 
अपने होंठो से छूकर अपने सारे, 

के सारे ख्वाब तुम्हारी आँखों, 
में ही बो दूंगा मैं; 

एक दिन तुम्हे अपने गले लगाकर, 
अपने सारे एहसास मैं तुम्हे दे दूंगा;  

एक दिन तुम्हारी आँखों में देखकर, 
कह दूंगा प्यार तो एक तुम्हीं से करता हूँ मैं;   

और अपना सारा का सारा विश्वास, 
उस दिन तुम्हे ही दे दूंगा मैं !

Sunday 28 April 2019

मैं मोहब्बत करता हूँ !


मैं मोहब्बत करता हूँ !

मैं तो बस अपने दिल, 
की ही बात कहता हूँ;   

कभी उस से समझौता, 
नहीं करता हूँ; 

एक तेरी खातिर मैं,   
खुदा से भी नहीं डरता हूँ; 

बंदिशों में वो रहते है,  
जिनमे कैद राज बड़े गहरे है; 

मैं तो पागल हूँ दीवाना हूँ, 
सच से कभी पर्दा नहीं करता हूँ; 

और सच ये है की मैं तुम्हे, 
बेइंतेहा मोहब्बत करता हूँ !

Saturday 27 April 2019

पागल बना गयी तुम !


पागल बना गयी तुम !

देखो ना मुझे खबर भी ना हुई,
और सब कुछ मेरा चुरा ले गयी हो तुम;  

आँखों के रस्ते से आकर कब तुम, 
मेरे दिल में चुप-चाप समां गयी हो तुम;  

अब साँस भी लू तो आये सिर्फ तेरी ही खुसबू,  
मेरी सारी कायनात को अपना बना ले गयी हो तुम;   

है ये मौसम का खुमार है या ये सब तेरा ही जादू, 
मेरी ख्वाहिशों के आसमान पर इस कदर छा गयी हो तुम; 
  
मेरा बस अब मुझ पर ही चलता नहीं है,  
अजीब से हालात हैं और मुझे पागल बना गयी है हो तुम;   

देखो ना मुझे खबर भी ना हुई,
और सब कुछ मेरा चुरा ले गयी हो तुम !  

Friday 26 April 2019

शब्द शब्दों में तलाशते मुझे है !



शब्द शब्दों में ही कहीं, 
तलाशते है मुझ को ;

और मैं उन शब्दों में; 
तलाशता हूँ तुम को ;

जैसे रात पत्तियों सी, 
होकर टटोलती है सबनम को ;

चाँद मंद-मंद जुगनू सा, 
होकर खोजता है चकोर को ;

नदी खामोश खल-खल, 
बहती है पकड़ कर अपने किनारों को ; 

तब दूर कंही सन्नाटों के,
जंगल में सुनाई देता है मुझ को; 

कुछ खनकते शब्दों का शोर इधर, 
पगडण्डी ताकती है अपने किनारों को; 

तकते एक दूजे को बढ़ते है दो कदम, 
और उन कदमो में थामते है मुझ को; 

और मैं उन कदमो में एक, 
बस तलाशता हूँ अपनी मंज़िल को; 

शब्द शब्दों में ही कहीं, 
तलाशते है मुझ को; 

और मैं उन शब्दों में, 
तलाशता हूँ तुम को !

Thursday 25 April 2019

आओ चलें एक नयी दुनियां में !

आओ चलें एक नयी दुनियां में !

आओ तुम्हें मैं लेकर चलता हूं,
एक बिलकुल नई दुनिया में;

सपनों से भी बहुत आगे एक, 
एक बिलकुल नई दुनिया में;

जहां दिन शुरू होता है,
तेरी एक-एक अंगड़ाइयों से;

जहां बिखर जाती है शाम,
तेरी पलकों की जुम्बिश से;

जहाँ के पंछियों ने सीखा है,
गाना तेरी पायल की रूनझुन से;

जहाँ के पेड़ों ने फैला रखी है,
छांव लेकर तेरी आंचल से; 

जहाँ की रातों को सकूँ मयस्सर, 
होता है तेरी गोलाकार बाँहों से; 

आओ तुम्हें मैं लेकर चलता हूं,
एक बिलकुल नई दुनिया में !

Wednesday 24 April 2019

प्रतिबिम्ब धुंधले से हैं !

प्रतिबिम्ब धुंधले से हैं !


क्यों रात की ये कालिमा स्याह सी है,
क्यों रौशनी से तपता दिन व्याकुल सा है;

क्यों आसमा अब यूँ ओझल सा है,
क्यों हवा सूखी और मद्धम मद्धम सी है; 

क्यों ये लम्हे बिखरे-बिखरे से हैं,
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब धुंधले से हैं; 

क्यों आँहे कुछ हल्की-हल्की सी हैं, 
क्यों आते नहीं वो दिन जो उजले-उजले से है; 

क्यों सुबह की ख्वाहिशें व्याकुल सी है,
क्यों लेटे रहना अकेले अब मुश्किल सा है; 

क्यों अकेले चलते रहना अब भारी सा है,
क्यों भटके भटके से अब ये पदचिन्ह भी है; 

क्यों हर एक पल अब बोझिल से है,
क्यों परछाइयाँ भी अब निश्छल सी है; 

क्यों औरों की तस्वीरें आँखों को चुभती सी हैं;
क्यों सिमटे जीवन प्रतिदिन तेरे बिना ही है !

Tuesday 23 April 2019

राष्ट्रीय धरती दिवस !

राष्ट्रीय धरती दिवस

ये वसुंधरा ही, 
हमारी पहली माता है; 
इसी माता से जुड़ा हुआ, 
सारे जहाँ का नाता है; 

ये वसुंधरा बड़ी अपार है, 
इसमें फैला सभी जीवों संसार हैं;

जन्म इस पर ही, 
हम-सब का हुआ है; 
इसने ही जीवन हमारा,
हम-सब का जीवन,
अब-तक संवारा है;

ये वसुंधरा बड़ी अपार है, 
इसमें फैला सभी जीवों संसार हैं;

वसुंधरा को नहीं 
जरा भी अभिमान है, 
ये वसुंधरा बड़ी महान है ,
ये वसुंधरा के हम-सब पर 
अनगिनत उपकार है, 

ये वसुंधरा बड़ी अपार है, 
इसमें फैला सभी जीवों संसार हैं;

वसुंधरा पर सुंदर सुंदर, 
खेत और खलियान हैं; 
वसुंधरा पर कई बड़े-बड़े, 
पर्वत राजों का राज हैं; 
वसुंधरा पर कलकल बहती 
नदियों की अमृत धारा हैं; 

ये वसुंधरा बड़ी अपार है, 
इसमें फैला सभी जीवों संसार हैं;

वसुंधरा पर हरे-भरे, 
जंगलों की भरमार है; 
वसुंधरा पर ची ची करती 
गौरेया की पुकार हैं;

ये वसुंधरा बड़ी अपार है, 
इसमें फैला सभी जीवों संसार हैं;

सब कुछ हर हरा हैं, 
इस वसुंधरा पर;
हमारी पहली माता है; 
इसी माता से जुड़ा हुआ, 
सारे जहाँ का नाता है !

Monday 22 April 2019

वो तुम्हारा पहला बोसा !

वो तुम्हारा पहला बोसा ! 

तुम्हारे पहले बोसे ने, 
मुझे एहसास कराया था,  
की इसके पहले मैंने कुछ 
भी ऐसा पाया नहीं था; 

उस तुम्हारे पहले बोसे ने,
मेरे दिल पर अब तक की, 
उभरी सारी दरारों को स्वतः,  
ही भरना शुरू कर दिया था; 

ना जाने कैसे मैं प्रेम की, 
इस चिकित्सा पद्धति से,
अब तक अनभिज्ञ थी; 

लेकिन अब मैं इसको, 
अपनी बाँहों में भरकर, 
रख लेना चाहती थी; 

हमेशा के लिए अपने पास, 
जिससे समय समय पर मैं, 
अपनी सभी दरारों को भर, 
लेना चाहती थी; 

उस तुम्हारे बोसों से जिसने, 
मुझे एहसास कराया की इस, 
से पहले मैंने ऐसा कुछ अपनी, 
कल्पना में भी नहीं पाया था ! 

Sunday 21 April 2019

बेल की तरह



तुम पास आओ मेरे !

आओ ना पास मेरे
आलिंगन करो मेरा

भिगो दो मुझे और करो
अपने स्नेह की अमृत वर्षा

ताकि अंकुर फूटें मुझमे
और पनप जाऊं फिर से मैं 

लिपट जाऊं तुमसे बनकर   
महकती फूलती जूही की बेल की तरह

आओ ना पास मेरे और
मेरे तन के एक-एक काँटों

को अब तुम फूल कर दो
आओ ना पास मेरे और
आलिंगन करो मेरा !

Saturday 20 April 2019

नव नूतन प्रेम !

नव नूतन प्रेम !

कुछ ...     
किस तरह,
किया जाए प्रेम,
कि उसे लाया जा सके,
बाँहों की परिधि के, 
बिलकुल मध्य;
कुछ ... 
किस तरह,
बिठाई जाए,
मुस्कान होंठो पर,
कि वो बनावट के,
कटघरे में कभी ना, 
खड़ी हो दोषियों की,  
तरह कभी भी; 
कुछ...
इस तरह किया, 
जाए समर्पण की, 
शक का कीड़ा जन्म, 
ही ना ले सके कभी; 
कुछ...
ना कुछ रोज, 
किया जाए नया, 
उस पुराने प्रेम में, 
भी ताकि पुराने होने; 
का भान ही ना हो कभी !

Friday 19 April 2019

ऐ जिंदगी !

ऐ जिंदगी !

ऐ जिंदगी तूझे अब, 
जीना चाहता हूँ मैं;

लबों से अपने तूझे अब,  
पीना चाहता हूँ मैं;

तेरे कदम के साथ ही चल, 
पड़ें है कदम दर कदम मेरे; 

एक एक लम्हा तेरा, 
तूझसे ही चुरा ना चाहता हूँ मैं;

तेरा हर एक शय तेरे ही, 
पलकों से चुनना चाहता हूँ मैं; 

तूझसे ही रस्में उल्फ़त, 
की निभाना चाहता हूँ मैं;

बातें रागिनी की कर, 
दफ़न अतीत के पन्नों में; 

तूझे से ही लिपट कर, 
अब रोना चाहता हूँ मैं;

सीने से अपने लगा कर, 
तूझ को अपनी तमाम उम्र; 

तूझ पर ही एक बार, 
लुटाना चाहता हूँ मैं !
    

Thursday 18 April 2019

शब्द मुखर हो उठते है !

शब्द मुखर हो उठते है !

शब्द बोलते से, 
नज़र आते है मेरे वो; 

लेकिन मेरे शब्दों, 
के बोलने की वजह, 
किसे पता है; 

जब तुम उन्हें, 
अपने कंठ लगाती हो,
तो मुखर हो उठते है वो; 

जब प्यार से तुम तुम्हे, 
सहला देती हो तब जाग, 
उठते है वो; 

और उनकी नींद का, 
सारा का सारा खुमार, 
उतर जाता है; 

जाग उठते है वो, 
तुम्हारे कंठ लगकर,
उतर जाते है वो;

तुम्हारे हृदय के, 
रसातल में और एक, 
बार फिर से जी उठते है वो !

Wednesday 17 April 2019

मैं गुजरता जा रहा हूँ !

मैं गुजरता जा रहा हूँ ! 
सुनो...
यूँ ही रोज, 
तेरे इंतज़ार में;
जो... 
ये दिन उगता है,
वो कटता ही नहीं;
जो... 
रात आती है,
वो गुजरती ही नहीं;
परन्तु...
जो निरंतर, 
कटता और गुजरता 
जा रहा है, वो सिर्फ और 
सिर्फ मैं हूँ;
ये...
सब हो रहा है, 
तुम्हारे होते हुए,
और तुम्हारे ही इंतज़ार में;
मगर...
इस महसूसियत का, 
दर्द जब हद से बढ़ जाता है;
तब...
मैं रोता हूँ,
तब भी दर्द जब 
वो कम होता नही;
फिर...
उस दर्द को कम करने को, 
जब उस दर्द पर ही हँसता हूँ;
तब...
दर्द और बढ़ जाता है,
परन्तु इन सब के बीच जो,
लगातार बढ़ता जा रहा है वो, 
तेरा इंतज़ार और मेरा प्यार है;  
और... 
जो निरंतर कटता और गुजरता जा 
रहा है; वो सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ !  

Tuesday 16 April 2019

एक नयी प्रेम कविता !

एक नयी प्रेम कविता !

लिखता हूँ मैं, 
जब अक्षर मेरे प्रेम के, 
तेरी सुकोमल काया पर;

आहों और कराहों का, 
वो दौर ले जाता है मुझे, 
मेरी ही उम्र के उस तरुणाई के पड़ाव पर;

तुम करती हो प्रेरित, 
मुझे पार ले जाने को, 
इस जहाँ से दूर और बहुत दूर; 

रक्त का प्रवाह, 
अपने चरम पर होता है, 
और सुकोमल तेरी काया पर; 

मैं अपने प्रेम के, 
अक्षर लिखता, 
ही चला जाता हूँ; 

सियाही जब कलम, 
की उतर आती है, 
तेरी काया पर तब, 
मैं ही अपने लिखे; 

उन अक्षरो को पढ़ कर, 
तुम्ही पर ही लिखी, 
मेरी एक नयी प्रेम कविता, 
तुम्हे ही एक बार; 
फिर सुनाता हूँ !

Monday 15 April 2019

तुम्हे मेरी याद नहीं आती?

तुम्हे मेरी याद नहीं आती?

सुनो...
मुझे तो हर पल बस तुम्हारी याद आती है; 
मेरी... 
ही सांसों के तेज़-तेज़ चलने पर,
मेरे... 
ही दिल के बार-बार मचने पर,
मेरे...
ही आंगन में बेमौसम बारिश के बरसने पर;
मेरे...
ही छत के ठीक ऊपर वाले आकाश में, 
उस चंदा के चमकने पर तो कभी; 
मेरी...
ही आँखों के सामने सूरज के धीरे-धीरे 
ढलने पर तो कभी;
मेरी...
ही शब के स्याह अंधेरों पर तो कभी;
मेरे ...
ही दिन के सवेरों पर तो कभी; 
मेरे...
ही बिलकुल तन्हां अकेले होने पर;
सुनो...
मुझे तो बस तुम्हारी याद आती है;
लेकिन तब भी; 
मेरे...
होंठों के पास बस तुम्हारा नाम होता है,
पुकारने के लिए;
पर...
तुम ये बताओ मुझे इतना सब होते हुए, 
देखने के बाद भी क्या तुम्हे याद नहीं आती; 
मेरी...

Sunday 14 April 2019

प्रेम पूर्ण है प्रीत तृप्त है !

प्रेम पूर्ण है प्रीत तृप्त है !

प्रेम है प्रीत है,
प्रथम नयन के मिलन में;
प्रथम हिय के द्रुत कंपन में,
प्रथम प्रेम की अभिव्यक्ति में;
प्रेम है प्रीत है,
प्रथम प्रेम की स्वीकारोक्ति में;
प्रथम रात्री के मिलन में,
प्रथम लबों के स्पर्श में;
प्रेम है प्रीत है,
प्रथम बाँहों के बंधन में,
प्रथम समर्पण के भाव में; 
प्रथम सहवास की तृप्ति में;
प्रेम है प्रीत है,
प्रथम कोख के अंकुरण में,
प्रथम प्रेम के विस्तार में;
प्रथम संतान की प्राप्ति में,
प्रेम है प्रीत है;
प्रथम संतान के सम्बोधन में,
प्रथम संतान के प्रथम आने में;
प्रथम सभी अनुभूतियों में,
प्रेम पूर्ण है प्रीत तृप्त है !

Saturday 13 April 2019

प्रेम प्रकट होता है !

प्रेम प्रकट होता है !

प्रेम का जीवन में प्रकट होना,
आसान हो भी सकता है;

पर प्रेम को जीवन में थामे रखना,
उतना ही मुश्किल होता है;

क्योंकि जब प्रश्न उठते है प्रेम पर,
तब अक्सर लोग उस से होने वाले;

फायदे और नुकसान का आंकलन, 
करने में लग जाते है;      

और आंकलन उन्हें अपने पांव पीछे, 
खींचने को कहता है;

पर प्रेम को तो आता ही नहीं आंकलन करना, 
इसका गवाह इतिहास है;

प्रेम तो उन खड़े प्रश्नों का जवाब,
स्वयं देता है;

बिना कुछ सोचे उसी दृढ़ता से जिस दृढ़ता से, 
प्रकट हुए प्रेम को वो सहर्ष स्वीकार करता है !  

Friday 12 April 2019

सुख-सुकून की परिभाषा !

सुख-सुकून की परिभाषा !

सुख और सुकून की, 
परिभाषा तो वही बयां कर सकता है;

जिसने दुःख को अपने, 
हृदयतल में बर्षों तक सहेजा हो;  

पीड़ाएँ खुद सह कर संयम, 
को अपने ही कलेजे में पोसा हो; 

अपने बेकरारी के साथ साथ, 
चल घुटनो पर सीखा खड़े होना हो;   

और बरसो अपने कांधो को सूना रख, 
किसी घने केशु से भरे सर का इंतज़ार किया हो; 

फिर एक दिन अचानक वो सर, 
उसके उस सुने कांधे पर आ टिका हो; 
  
और दोनों साथ ज़िंदगी, 
बिताने के खयाल बुनने लगे हों; 

और हाथों में हाथ डाल, 
उरमाओं का आदान प्रदान करने लगे हों;   

सुख और सुकून की, 
परिभाषा तो वही बयां कर सकता है;

जिसने दुःख को अपने, 
हृदयतल में बर्षों तक सहेजा हो !  

Thursday 11 April 2019

कामनाओं के पते !

कामनाओं के पते !
        
हवा कामनाओं का पते,
कानों में बता रही है मुझे;

रात की रानी की महक फिर,
अपने पास बुला रही है मुझे;

अभी कैसे जाऊं मैं दूसरे जहाँ में,
जबकि ये जमीं ही जन्नत सी 
रास आ रही है मुझे;

चिराग उसका चेहरा है,
और शब मेरा जिस्म है;

फिर खुदा की बनायीं हुई,
ये जवानी क्यों जला रही है मुझे;

अभी ये समझना बाकी है मुझे;
की ये हवा-ए-वज़ूद जला रही है मुझे;
या वो जले हुए को बुझाना चाह रही है,

हवा कामनाओं के पते,
कानों में बता रही है मुझे;

तो फिर ये जमीं क्यों तमाशा;
बना रही है अब मुझे !         

Wednesday 10 April 2019

मैं पानी-पानी हो जाती हूँ !

मैं पानी-पानी हो जाती हूँ !

पत्थर पानी हो जाता है,
और पत्थर पानी हो जाता है;

नए-नए चेहरे वाले लोग भी,
कुछ दिन में पुराने हो जाते है;

इश्क़ की लत में गरीब के बच्चे भी,
अचानक राजा और रानी हो जाते है;

सुहानी शाम में लू के थपेड़े भी,
अचानक पवन सुहानी हो जाते है;

मिलान का मौसम जब आता है,
जिस्म भी पानी-पानी हो जाता है;

पेड़ के सूखे पत्ते भी बसंत ऋतू,
के आने की निशानी हो जाते है;

जैसे पत्थर पानी हो जाता है,
और पानी पत्थर हो जाता है;

वैसे ही मैं तो सिर्फ तेरी बातें, 
सुनकर ही पानी-पानी हो जाती हूँ !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !