Thursday, 18 April 2019

शब्द मुखर हो उठते है !

शब्द मुखर हो उठते है !

शब्द बोलते से, 
नज़र आते है मेरे वो; 

लेकिन मेरे शब्दों, 
के बोलने की वजह, 
किसे पता है; 

जब तुम उन्हें, 
अपने कंठ लगाती हो,
तो मुखर हो उठते है वो; 

जब प्यार से तुम तुम्हे, 
सहला देती हो तब जाग, 
उठते है वो; 

और उनकी नींद का, 
सारा का सारा खुमार, 
उतर जाता है; 

जाग उठते है वो, 
तुम्हारे कंठ लगकर,
उतर जाते है वो;

तुम्हारे हृदय के, 
रसातल में और एक, 
बार फिर से जी उठते है वो !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !