शब्द मुखर हो उठते है !
शब्द बोलते से,
नज़र आते है मेरे वो;
लेकिन मेरे शब्दों,
के बोलने की वजह,
किसे पता है;
जब तुम उन्हें,
अपने कंठ लगाती हो,
तो मुखर हो उठते है वो;
जब प्यार से तुम तुम्हे,
सहला देती हो तब जाग,
उठते है वो;
और उनकी नींद का,
सारा का सारा खुमार,
उतर जाता है;
जाग उठते है वो,
तुम्हारे कंठ लगकर,
उतर जाते है वो;
तुम्हारे हृदय के,
रसातल में और एक,
बार फिर से जी उठते है वो !
शब्द बोलते से,
नज़र आते है मेरे वो;
लेकिन मेरे शब्दों,
के बोलने की वजह,
किसे पता है;
जब तुम उन्हें,
अपने कंठ लगाती हो,
तो मुखर हो उठते है वो;
जब प्यार से तुम तुम्हे,
सहला देती हो तब जाग,
उठते है वो;
और उनकी नींद का,
सारा का सारा खुमार,
उतर जाता है;
जाग उठते है वो,
तुम्हारे कंठ लगकर,
उतर जाते है वो;
तुम्हारे हृदय के,
रसातल में और एक,
बार फिर से जी उठते है वो !
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