सुख-सुकून की परिभाषा !
सुख और सुकून की,
परिभाषा तो वही बयां कर सकता है;
जिसने दुःख को अपने,
हृदयतल में बर्षों तक सहेजा हो;
पीड़ाएँ खुद सह कर संयम,
को अपने ही कलेजे में पोसा हो;
अपने बेकरारी के साथ साथ,
चल घुटनो पर सीखा खड़े होना हो;
और बरसो अपने कांधो को सूना रख,
किसी घने केशु से भरे सर का इंतज़ार किया हो;
फिर एक दिन अचानक वो सर,
उसके उस सुने कांधे पर आ टिका हो;
और दोनों साथ ज़िंदगी,
बिताने के खयाल बुनने लगे हों;
और हाथों में हाथ डाल,
उरमाओं का आदान प्रदान करने लगे हों;
सुख और सुकून की,
परिभाषा तो वही बयां कर सकता है;
जिसने दुःख को अपने,
हृदयतल में बर्षों तक सहेजा हो !
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