मैं गुजरता जा रहा हूँ !
सुनो...
यूँ ही रोज,
तेरे इंतज़ार में;
जो...
ये दिन उगता है,
वो कटता ही नहीं;
जो...
रात आती है,
वो गुजरती ही नहीं;
परन्तु...
जो निरंतर,
कटता और गुजरता
जा रहा है, वो सिर्फ और
सिर्फ मैं हूँ;
ये...
सब हो रहा है,
तुम्हारे होते हुए,
और तुम्हारे ही इंतज़ार में;
मगर...
इस महसूसियत का,
दर्द जब हद से बढ़ जाता है;
तब...
मैं रोता हूँ,
तब भी दर्द जब
वो कम होता नही;
फिर...
उस दर्द को कम करने को,
जब उस दर्द पर ही हँसता हूँ;
तब...
दर्द और बढ़ जाता है,
परन्तु इन सब के बीच जो,
लगातार बढ़ता जा रहा है वो,
तेरा इंतज़ार और मेरा प्यार है;
और...
जो निरंतर कटता और गुजरता जा
रहा है; वो सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ !
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