Friday, 19 April 2019

ऐ जिंदगी !

ऐ जिंदगी !

ऐ जिंदगी तूझे अब, 
जीना चाहता हूँ मैं;

लबों से अपने तूझे अब,  
पीना चाहता हूँ मैं;

तेरे कदम के साथ ही चल, 
पड़ें है कदम दर कदम मेरे; 

एक एक लम्हा तेरा, 
तूझसे ही चुरा ना चाहता हूँ मैं;

तेरा हर एक शय तेरे ही, 
पलकों से चुनना चाहता हूँ मैं; 

तूझसे ही रस्में उल्फ़त, 
की निभाना चाहता हूँ मैं;

बातें रागिनी की कर, 
दफ़न अतीत के पन्नों में; 

तूझे से ही लिपट कर, 
अब रोना चाहता हूँ मैं;

सीने से अपने लगा कर, 
तूझ को अपनी तमाम उम्र; 

तूझ पर ही एक बार, 
लुटाना चाहता हूँ मैं !
    

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !