कामनाओं के पते !
हवा कामनाओं का पते,
कानों में बता रही है मुझे;
रात की रानी की महक फिर,
अपने पास बुला रही है मुझे;
अभी कैसे जाऊं मैं दूसरे जहाँ में,
जबकि ये जमीं ही जन्नत सी
रास आ रही है मुझे;
चिराग उसका चेहरा है,
और शब मेरा जिस्म है;
फिर खुदा की बनायीं हुई,
ये जवानी क्यों जला रही है मुझे;
अभी ये समझना बाकी है मुझे;
की ये हवा-ए-वज़ूद जला रही है मुझे;
या वो जले हुए को बुझाना चाह रही है,
हवा कामनाओं के पते,
कानों में बता रही है मुझे;
तो फिर ये जमीं क्यों तमाशा;
बना रही है अब मुझे !
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