Tuesday, 16 April 2019

एक नयी प्रेम कविता !

एक नयी प्रेम कविता !

लिखता हूँ मैं, 
जब अक्षर मेरे प्रेम के, 
तेरी सुकोमल काया पर;

आहों और कराहों का, 
वो दौर ले जाता है मुझे, 
मेरी ही उम्र के उस तरुणाई के पड़ाव पर;

तुम करती हो प्रेरित, 
मुझे पार ले जाने को, 
इस जहाँ से दूर और बहुत दूर; 

रक्त का प्रवाह, 
अपने चरम पर होता है, 
और सुकोमल तेरी काया पर; 

मैं अपने प्रेम के, 
अक्षर लिखता, 
ही चला जाता हूँ; 

सियाही जब कलम, 
की उतर आती है, 
तेरी काया पर तब, 
मैं ही अपने लिखे; 

उन अक्षरो को पढ़ कर, 
तुम्ही पर ही लिखी, 
मेरी एक नयी प्रेम कविता, 
तुम्हे ही एक बार; 
फिर सुनाता हूँ !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !