Tuesday 31 October 2017

सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ


रात अँधेरी काली-काली 
आँख मिलाकर कुछ कहती है ;
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
सुनसान राह वीरानी सी 
तेज़ हवाएं हिलोरे ले ले पूछती है  
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
एक ओर से धरती की गहराई 
दूसरी ओर से आकाश का 
विशाल आकार पूछता है 
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
इतरा-इतरा कर मेरे ही 
अश्को की बुँदे मुझे 
भिगो-भिगो कर पूछ रही है 
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ 
सरसराहट कर पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
और तुझे अपने पास 
रखने की मेरी चाहत अब
मुझे रुलाती बहुत है 

Monday 30 October 2017

तुम्हारी वो यादें


रात है खामोश 
सितारे भी है खामोश  
और पेड़ की 
डाल पर बैठा 
पीला-पीला सा 
चाँद भी है खामोश ...
मैं एक सिर्फ तुम्हे 
सोच रहा हूँ  ... 
और मुझसे बातें 
कर रही है 
तुम्हारी वो यादें 
जो कभी नहीं 
रहती मुझसे दूर
जैसे तुम रह लेती हो 

Saturday 28 October 2017

एक नयी मज़बूरी

मेरे प्रेम को 
मेरे शब्द तो 
परिभाषित करते 
ही होंगे किन्यु बोलो?
करते है या नहीं ?
ये अनुभव  
कुछ मायने तो 
रखता ही होगा,
तुम्हारे लिए ?
पर मुझे तो कोई 
उत्तर नहीं मिला 
अब तक इन शब्दो
का तुमसे फिर  
बोलो कैसे परिभाषित
करू मैं तुम्हारे 
प्रेम को तुम हर बार 
एक नयी मज़बूरी 
के साथ सामने 
आती हो मेरे ,
अब छोड़ देता हु 
इसे तुम्हारे भरोषे,
किंयूंकि बहुत दूर
खिंच लाया हु मैं 
इस प्रेम को अकेले ही 
अब तुम ले कर चलो
इसे वंहा जंहा तुम 
ले जाना चाहती हो । ...

Friday 27 October 2017

तुम थामे रहना मेरा हाथ

कभी लगता है
जैसे मैंने तुम्हे
अपने प्यार के बाँध 
से रोक लिया है ,
तो कभी लगता है 
जैसे तेरे ही साथ
बहा जा रहा हु मैं,
तेरी हर बात 
मैं अपने होठो से
कहे जा रहा हु ,
और सच कहु तो  
बहा ले जाना चाहता हु ,
तुझे अपने साथ  
तुम थामे मेरा हाथ 
कर लो मुझे खुद 
के बेहद करीब

Thursday 26 October 2017

मेरे एहसास का एक पन्ना

मेरे एहसास 
के पन्नो पर 
एक पन्ना लिखा है मैंने 
तेरे हर किये वादे का 
जिक्र भी है उसमे और
उन वादों को ना निभा 
पाने की तेरी वजह भी है 
और उस वजह में खोती
मेरी एहमियत का 
जिक्र भी किया है मैंने
और तेरे फिर से किये 
एक नए वादे का जिक्र भी है 
और है उस नए वादे में के 
साथ मेरे भरोषे का भी जिक्र 
और जिक्र है तेरी हर एक 
लापरवाहियों का और 
मेरी हर एक परवाह का  
मेरे एहसास 
के पन्नो पर 
एक पन्ना लिखा है मैंने

Wednesday 25 October 2017

एक मेरी मज़िल हो तुम


एक मेरी 
मज़िल हो तुम
चाहे हासिल हो 
मुझे तेरा सामीप्य 
डूबकर या हो जाए 
रस्ते सारे बंद 
मेरी वापसी के 
पर तुझमे हर 
एक बात है मेरी
ज़िन्दगी को छूती हुई 
और चाहता हु मैं
पहुंचना अब मेरी 
मंज़िल पर चाहे 
धार हो पानी की
उलटी दिशा में 
बहती हुई पर अब 
ना रोक पाएगी 
मुझे तुझ तक 
पहुंचने से 

Friday 20 October 2017

तुम आ जाओ मेरे पास

सुनो
सुनो ना 
अब सुन भी लो 
फिर ना कहना  "राम"
तुमने बताया ही नहीं मुझे ..
कुछ पल हमदोनो के साथ वाले
जो बो दिए थे मैंने मिटटी में जब 
तुमने स्वीकारा था मेरे प्रेम को 
अब वो खिलने वाले है 
तुम आ जाओ मेरे पास
दोनों साथ साथ अपना 
आशियाँ सजायेंगे और कुछ 
पलों को मैंने तुम्हारे आंचल में 
बांध दिया था वो पल 
अब सितारे बन झिलमिलाने 
वाले है तुम आ जाओ मेरे पास
दोनों मिल कर इस दीपावली में 
अपना आशियाँ सजायेंगे 

Thursday 19 October 2017

शब्द बोलते से नज़र आते है मेरे ?

शब्द बोलते से 
नज़र आते है मेरे ?
लेकिन मेरे सब्दो के 
बोलने की वजह 
किसे पता है ?
जब तुम उन्हें 
अपने कंठ लगाती हो
मुखर हो उठते है वो 
जब प्यार से तुम 
सहला देती हो तब
जाग उठते है वो 
नींद और सारा खुमार
उतर जाता है उनका 
जीने लगते है वो 
तुम्हारे कंठ लगकर
उतर जाते है वो 
तुम्हारे हृदय में फिर से
जीने के लिए 

Wednesday 18 October 2017

तेरी यादें संजोई हैं मैंने

तेरी यादें  
तेरी बातें 
और तू  
जिन्दा रहती है 
हर पल पल 
मेरी यादों में,
वादों में, 
इरादों में, 
और मेरी 
हर मुरादों मेँ, 
जिसे संजोई हैं मैंने, 
इन आँखों में, 
धड़कनो में, 
और बसाई हैं 
मेरी रूह में 
और जिन्दा रहेगी 
तू सदा मेरी  
हर एक
ख्वाहिशो में 
सपनो में 
प्यास में
तड़प में
और मिलने 
की आश में। 

Tuesday 17 October 2017

तेरे आलिंगन में

तेरे आलिंगन में 
सदैव फैलाता अपनी 
जड़ो को मैं ;
हर साँस तेरी अपनी 
सांसों में समेट लेता हु मैं ;
और बून्द बून्द मेरे अस्तित्व की 
तेरी रूह में उढेल देता हु मैं ;
और इस कदर फिर एक बार 
मरते मरते जन्म लेता हु मैं ;
तेरे आलिंगन में 
सदैव फैलाता अपनी 
जड़ो को मैं ;

Monday 16 October 2017

कोई भी रिश्ता टूटता नहीं


कुछ भी यंहा 
व्यर्थ नहीं जाता 
कोई भी रिश्ता 
टूटता नहीं यंहा 
रिश्ते की कभी 
मौत नहीं होती यंहा 
चाहे इंसान रहे ना रहे 
रिश्ता यु ही बना रहता है 
चाहे बातें बंद हो जाए
चाहे मुलाकातें बंद हो जाए
या फिर एक-दूसरे को 
एक नज़र देखना भी बंद हो जाए
पर रिश्ता हमेशा बना रहता है 
यंहा यु ही तठस्थ 
जीते जी आमने सामने और
मरने के बाद स्मृति में 
भावनाओं में यादों में 
कुछ भी किया यंहा 
व्यर्थ नहीं जाता

Saturday 14 October 2017

उदाहरण बनने का दर्द

प्रेम का दिया दर्द 
सहकर वो एक बार 
फिर एक नई स्थिति 
से गुजरने के लिए खुद 
को एक नए रूप में
तैयार करता है और  
उबड़खाबड़ ज़मीन पर भी  
नई हिम्मत और नयी ऊर्जा 
से खड़ा होता है 
एक नहीं सौ बार गिरता है
उठने के लिए निःसन्देह,
दुनिया के लिए तो वो 
उदाहरण बन जाता है 
उदाहरण से पूर्व जो वेदना 
उसने झेली होती है 
बाह्य और आंतरिक 
जो हाहाकार होता है
उसके हृदय में वो  
असहनीय होता है 
इसे हर कोई नहीं सह पाता.....
सिवाय प्रेम करने वाले के 

Friday 13 October 2017

प्रेम है जज्बा तेरे दिल का

प्रेम हु मैं
वैसे किताबो और 
कहानीओं में मेरा 
अस्तित्व बहुत बड़ा है ;
पर सच कहु तो कई बार
एहसास होता है जैसे इसके 
अस्तित्व का मोल कुछ 
भी नहीं तेरे एक जज्बे के आगे;
तेरा वो जज्बा जो कभी मुझे 
खड़ा कर देता है ईश्वर के बराबर
व्रत और त्योहारों में तो कभी 
तेरा ही जज्बा मुझे ला खड़ा 
करता है तेरे दरवाज़े के बहार; 
जंहा वो भूखा प्यासा तड़पता है 
तेरा सामीप्य पाने को 
तो प्रेम है जज्बा तेरे दिल का 

Thursday 12 October 2017

करवटों में गुज़री रात

दिन भर की
भाग दौड के बाद
घर लौटा .... 
तकरीबन 
सब कुछ
व्यवस्थित सा था...
रात  बेहद सर्द थी 
मगर 
बिस्तर नर्म
और कमरा गर्म था.....
फिर भी 
सारी रात 
करवटों में गुज़री
जाने क्यूँ
नींद नहीं आई
शायद यात्रा की 
थकान ज्यादा थी...
तुम्हे बहुत दूर 
जो छोड़ आता हु ....
यु ही प्रत्येक दिन

Wednesday 11 October 2017

प्रेम तृप्ती है या पिपासा

प्रेम की परिभाषा 
कोई नहीं समझ 
सका आजतक 
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका 
आज तक कोई  
प्रेम वो है जो 
दिखता है प्रेमी  
की आँखो मे
कोई प्यारा सा 
उपहार पाकर 
या प्रेम वो है जो 
सुकून मिलता है 
आफिस से आकर 
तुम्हारी मुस्कान पाकर

Tuesday 10 October 2017

विरह की अग्नि

प्रेम है वो 
जो प्रेमी के लिए 
जलता/जलती है 
विरह में अकेली/अकेला 
जानते हुए की 
वो चाहे तो ये 
विरह अगले पल ही 
मिलन में तब्दील 
हो विरह की अग्नि
को मिलन की
ठंडी फुहार में 
बदल सकती/सकता है 
जब जानते हुए भी
वो चाहता/चाहती 
रहती/रहता है 
उसे यु जैसे 
मरने वाला कोई 
ज़िन्दगी चाहता हो 
वैसे हम तुम्हे 
चाहते है वैसे     

Monday 9 October 2017

इन्ही जुल्फों के साये में



सारे के सारे शब्द 
समेटता हूँ मैं,
बस तुम्हारे लिए....
की कब कौन सा मेरा
शब्द तुम्हे ले आये
अब तो मेरे पास
इन लफ्जों को तुम 
अक्स-ए -राम समझ लेना
और टांग लेना अपनी
केशुओं में और खुले
रखना अपनी... जुल्फे
कितनी बार कहा है मैंने
यु कंधे पर बिखरी तुम्हारी
जुल्फें मुझे बहुत भाति है
इन्ही जुल्फों के साये में
मैं अपने जीवन की
शाम बिताना चाहता हु ..

Saturday 7 October 2017

इश्क़ अच्छा लिखते हो

लोग कहते है 
"राम" तुम इश्क़ 
अच्छा लिखते हो 
पर उन्हें कंहा पता
इसकी वजह हो  तुम 
जब भी याद आती है 
मुझे तुम्हारी तो मैं 
तुम्हारे इश्क़ को लिखता हु 
और याद है ही तुम्हारी 
इतनी ख़ूबसूरत की उन 
यादों को सिर्फ हु-ब-हु
उतारता हु और वो लोगो 
की नज़र से होता हुआ उनके
दिल में उतर जाता है और
मेरे दिल में उतरती है 
तुम्हारी वो मुस्कान जो 
मुझे बहुत प्यारी लगती है 

Friday 6 October 2017

हस्ताक्षर तुम्हारी संदल देह पर

होती होगी सुबह 
लोगो के लिए 
सूर्योदय की पहली 
किरण से पर मेरे 
लिए तो सुबह होती है 
तब जब ढलता सूरज 
बिखेरता है नारंगी आभा
जिस पर सवार होकर 
तुम आती हो मेरे पास
कुछ लम्हे अपने मेरे 
नाम करने और मैं 
इंतज़ार में हु अब जब 
शाम ढूंढेगी रात को 
पलंग के निचे और मैं
करूँगा अपना हस्ताक्षर 
तुम्हारी संदल देह पर 

Thursday 5 October 2017

अपने पुरुषत्व का भान

सच कहु तो 
मुझे हमेशा ही 
ऐसा लगता है 
जैसे तुम्हे छूकर ही 
मैंने अपनी हयात 
को महसूस किया है
और तुम्हे चूमकर ही 
मुझे अपने पुरुषत्व 
का भान हुआ है और
जब जब मैं देखता हु 
तुम्हारी झील सी आँखों को 
तब तब मेरे घांवो पर मैंने
मरहम लगी महसूस की है 

Wednesday 4 October 2017

माथे पर किया चुम्बन

अक्सर कहते सुना था  
माथे पर किया चुम्बन 
मिटा देता है दुःख-दर्द 
मैंने किया चुम्बन 
तुम्हारे माथे पर  
और ये भी सुना था 
आँखों पर किया चुम्बन 
उड़ा देता है उनींदापन 
मैंने चूमी तुम्हारी आँखें भी 
जब सुना की 
होंठों पर किया चुम्बन
होता है प्यास में पानी पीने जैसा
मैंने तुम्हारे होंठो को भी चूमा 
पर पानी पिने से प्यास अक्सर 
मिट जाती है पर तुम्हारे होंठो 
को चूमने के बाद प्यास मिटती नहीं
और बढ़ जाती है बताओ ऐसा किन्यु 

Tuesday 3 October 2017

तुम्हें चुपचाप...देखता रहता हूँ

अक्सर ही 
खो जाता हूँ ,
मैं अपने स्वयं से 
बाहर निकलकर 
और देखता रहता हूँ 
तुम्हें चुपचाप...
और ऐसा करते करते 
देखो पांच साल  
कब निकल गए 
और तुम्हे अब भी 
देखता हु वैसे ही 
व्यस्त अपनी दुनिया में
तब सोचता हु क्या कभी
ऐसा दिन भी देखने 
को मिलेगा मुझे 
जब तुम इसी तरह 
मुझे ताकोगी  चुपचाप 

Monday 2 October 2017

तुम्हे अपलक ताका करता था

वो दिन भी अच्छी तरह 
याद है मुझे,
जब अक्सर मैं  
तुम्हे अपलक  
ताका करता था ,
जैसे तुम्हारे वजूद की 
चादर हटाकर ढूंढ रहा था   
एक अपना सा दिल ,
मैं लाख मना करू  
पर मुझे था तब इंतज़ार 
जरूर एक तुम्हारा ही 
क्यूंकि वो दिन याद है मुझे 
जब अक्सर मैं  
तुम्हे अपलक  
ताका करता था ,
और एक ये दिन है 
जो अब तुम्हे ता उम्र
याद रहेंगे जब दिन-महीने
निकल जाते है 
तुम्हे देखे मुझे सोचना
ऐसा किन्यु और कैसे हुआ 

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !