Monday, 9 October 2017

इन्ही जुल्फों के साये में



सारे के सारे शब्द 
समेटता हूँ मैं,
बस तुम्हारे लिए....
की कब कौन सा मेरा
शब्द तुम्हे ले आये
अब तो मेरे पास
इन लफ्जों को तुम 
अक्स-ए -राम समझ लेना
और टांग लेना अपनी
केशुओं में और खुले
रखना अपनी... जुल्फे
कितनी बार कहा है मैंने
यु कंधे पर बिखरी तुम्हारी
जुल्फें मुझे बहुत भाति है
इन्ही जुल्फों के साये में
मैं अपने जीवन की
शाम बिताना चाहता हु ..

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !