Tuesday, 31 October 2017

सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ


रात अँधेरी काली-काली 
आँख मिलाकर कुछ कहती है ;
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
सुनसान राह वीरानी सी 
तेज़ हवाएं हिलोरे ले ले पूछती है  
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
एक ओर से धरती की गहराई 
दूसरी ओर से आकाश का 
विशाल आकार पूछता है 
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
इतरा-इतरा कर मेरे ही 
अश्को की बुँदे मुझे 
भिगो-भिगो कर पूछ रही है 
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ 
सरसराहट कर पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
और तुझे अपने पास 
रखने की मेरी चाहत अब
मुझे रुलाती बहुत है 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !