Saturday 28 October 2017

एक नयी मज़बूरी

मेरे प्रेम को 
मेरे शब्द तो 
परिभाषित करते 
ही होंगे किन्यु बोलो?
करते है या नहीं ?
ये अनुभव  
कुछ मायने तो 
रखता ही होगा,
तुम्हारे लिए ?
पर मुझे तो कोई 
उत्तर नहीं मिला 
अब तक इन शब्दो
का तुमसे फिर  
बोलो कैसे परिभाषित
करू मैं तुम्हारे 
प्रेम को तुम हर बार 
एक नयी मज़बूरी 
के साथ सामने 
आती हो मेरे ,
अब छोड़ देता हु 
इसे तुम्हारे भरोषे,
किंयूंकि बहुत दूर
खिंच लाया हु मैं 
इस प्रेम को अकेले ही 
अब तुम ले कर चलो
इसे वंहा जंहा तुम 
ले जाना चाहती हो । ...

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !