Wednesday, 11 October 2017

प्रेम तृप्ती है या पिपासा

प्रेम की परिभाषा 
कोई नहीं समझ 
सका आजतक 
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका 
आज तक कोई  
प्रेम वो है जो 
दिखता है प्रेमी  
की आँखो मे
कोई प्यारा सा 
उपहार पाकर 
या प्रेम वो है जो 
सुकून मिलता है 
आफिस से आकर 
तुम्हारी मुस्कान पाकर

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !