Saturday 29 April 2017

हृदय का एहसास











मिलाऊं हाथ 
तुझसे कि तेरे
स्पर्श में अपने
हृदय का
एहसास उतार सकूं
जैसा कि गले
मिल के होता है
बोलो किस तरह
समझू तुझे और
तेरी मज़बूरी को
कि उसमें दंभ की
बू न आए

मुस्कराती हुई... तुम...!!!








एक एक अक्षरों को ..
उठाकर..सजाकर..
एक व्यवस्थित
क्रम में लगाकर..
लिखने की कोशिश
करता हूँ मै...
कविता...
होती है की नहीं
क्या पता मुझे ??
पर !
हर अक्षर में
दिखाई जरुर देती हो
मुस्कराती हुई...
तुम...!!!

ऐ जिंदगी









ऐ जिंदगी तुझे जीना
चाहता हूँ मैं
लबों से अपने तुझे
पीना चाहता हूँ मैं।
तेरे साथ ही चल
पड़ें है कदम मेरे
एक एक लम्हा तुझसे
चुराना चाहता हूँ मैं।
पलकों से चूम लूँ
तेरा हर वो शय ,
तुझसे ही रस्में उल्फत
निभाना चाहता हूँ मैं।
बीते रागिनी को दफ़न कर
अतीत के पन्नो में
तुझसे ही लिपट कर
रोना चाहता हूँ मैं।
सीने से लगा ले
मुझको तू अपने ,
तमाम उम्र तुझपे अपनी
लुटाना चाहता हूँ मैं।।

बाहों के मध्य










और   ...     
किस तरह
किया जाए प्रेम
कि उसे लाया जा सके
अपनी परिधि और
बाहों के मध्य
किस तरह
बिठाई जाए
मुस्कान 
होंठो  पर
कि वो बनावट के
कटघरे में नही पड़ें
कभी भी
किस तरह

मछलियाँ कितनी खुश थीं....























शीशे के जार में
मछलियाँ कितनी
खुश थीं....
पानी में तैरकर
अचानक
शीशा टूट गया
मछलियाँ फर्श पर
तड़पने लगी
तुम्हारे बिना
मैं कैसे रहता
हूँ प्रिय  ......
प्रतिउतर में
उन तड़पती
मछलियों से
पूछ लेना

ये बारिश की बूँदें,





सब कुछ कह 
लेने के बाद –
ये बारिश की बूँदें,
पत्तियों की सरसराहट,
ये महकी ठंडक,
मिटटी की खुशबू,
वो हलकी सी रौशनी,
इस भीगते बदन पर
एक हलकी सी सिरहन,
सब कितने अच्छे लगते हैं,
समय रुक जाता है,
एक नए प्रकाश में डूब
मन मंद-मंद मुस्काता है,
पत्थरों से भारी उन शब्दों का
सदियों का कुछ बोझ
सा उतर जाता है,
यूँ पट पर समक्ष खड़े हो
तुमसे सब कुछ कह लेने के बाद
बस कुछ अच्छा सा लगता है |

चाँद देखने आना





तन्हाई के 
निश्चुप निःशब्द
लम्हों में
गौर से सुना तो
लिपटते, बलखाते
झुंड अल्फाजों के
बुदबुदाने लगे
जब शब्द मन में
तब लिखी जाती है
कविता विरह की ……
एक पल के लिए सही
जहां कंही भी हो तुम
आज रात,
छत पर आना
चाँद देखने
मैं भी देखूंगा
चाँद में तुम्हारा
अक्स
आईने सा …..
बोलो आओगी न ?

पलट के देखूँ







क़दम अब भी 
उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए
तब से खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है
पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है
मोड़ मुड़ जा
अंदर एहसास हो रहा है
खुले दरीचे के पीछे
दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में
वो भी जागती है
कहीं तो उस के
दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ.
पढ़ लेना ख़ामोशी को
धीरे से छु लेना साँसे
कुछ ख्वाइशें किस
कदर मासूम होती है !!

"उम्मीद" से हैं








चिट्ठी पन्ने उसमे 
रखे कुछ निशाँ
पढ़ लेती हैं नजरे
आज भी अनकही बातें
इन्ही यादो से तो
कोई दिल के
करीब रहता है
फुहारें कुछ यूँ ही
आसमान के तन पर
छिटके हुए बादल
के टुकड़े
"उम्मीद" से हैं ....
और धरती पर
इन्तजार उसका
एक "शाही मेहमान "के
आगमन के इन्तजार
सा है
याद है मुझको ||

एहसास अपना









तुम्हे देखा और
फिर स्पर्श किया
तब सूना भी
अब तुम कितनी
खास बन गयी हो
तुम्हारे आने की
जब से हुई है दस्तक
तुम्हारे आने का
इंतज़ार है अब
तुम्हे पाने को
बेक़रार है अब
जुड़ गए है तुमसे
अनेको रिश्ते मेरे
तुम अब तो हिचकी
से भी कराती हो
एहसास अपना
तभी तुम लगती हो
हकीकत नहीं लगती
अब कोई सपना

हथेलियों में जल


मैं लाया हूँ
तुम्हारे लिए
इन हथेलियों में जल,
इस लिफ़ाफ़े में
कुछ मीठा कल रात का
और बचे हुए वो गीले पल
तुम्हारे सोने के बाद
मैंने समेटीं
उस अँधेरे की सिलवटें,
घड़ी की टिक-टिक
और कमरे में
बिखरे हवा के कण
वो सब तुम्हारे लिए
मैं लाया हूँ
पर तुम हो कहा
ये तो बताओ

चाँद मुट्ठी में


चाँद मुट्ठी में आ गिरा,
उसे उलट-पलट
के देखता हूँ,
उसकी पीली
खुरदरी सतह पर
अपना हाथ फेरता हूँ,
उसे ज़मीन पे रख
कभी इधर-तो
कभी उधर
धकेलता हूँ
हमेशा सोचता था
की वो क्या करता होगा
अकेले काले आकाश में,
आधा गायब
तो कभी पूरा शून्य
विचरता उस पीले लिबास में
पर आज उठा तो पाया
उसको बंद अपनी मुट्ठी में,
अब बस, अकेले बैठ
हाथों में लिए देखता हूँ
उसकी उधड़ी सतह को,
क्योंकि आज चाँद
बंद मेरी मुट्ठी में आ गिरा
तो पता चला
प्यार में होकर भी
कोई कैसे अकेला
रह सकता है

रात की कालिमा


क्यों रात की ये कालिमा है
क्यों रौशनी से तपता दिन
क्यों आसमा ओझल है
क्यों हवा सूखी मद्धम
क्यों लम्हे बिखरे हैं
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब
क्यों आँहे कुछ हलकी सी
क्यों बीत गए वो दिन
क्यों सुबह की ख्वाइश है
क्यों लेटे रहना मुश्किल
क्यों चलते रहना भारी है
क्यों भटके ये पदचिन्ह
क्यों हर इक पल ओझल है
क्यों परछाइयाँ निश्चिल
क्यों तसवीरें चुभती हैं
क्यों सिमटे जीवन प्रतिदिन
एक सिर्फ तेरे बिना

स्वप्न बुनना ही होगा


आँखे रखो तुम
चाहे बंद या खुली
स्वप्न तो एक
बुनना ही होगा
बातें कुछ खास
या की भूली हुई
वादा तो कोई
तुम्हे निभाना
ही होगा
सन्नाटा हो दूर
या की हलचल
घुली हुई हो
आवाज़ को तो
मन की ही
सुननी होगी ना

सारी वादी सो रही है






सारी कायनात ..........
एक धुन्ध की चादर
में खो रही है
एक कोहरा सा ओढ़े ........
यह सारी वादी सो रही है
गूँज रहा है झरनो में
कोई मीठा सा तराना
हर साँस महकती हुई
इन की ख़ुश्बू को पी रही है
पिघल रहा है चाँद
आसमान की बाहो में
सितारो की रोशनी में
कोई मासूम सी कली सो रही है
रूह में बस गया है
कुछ सरूर इस समा का
सादगी में डूबी
यहाँ ज़िंदगी तस्वीर हो रही है
है बस यही लम्हे मेरे
पास इस कुदरत के
कुछ पल ही सही मेरी रूह
एक सकुन में खो रही है !!

कहाँ क्या दफ़न हुआ










कुछ लफ्ज़ ज़िन्दगी के
सिर्फ खुद से ही पढ़े जाते हैं
वही लफ्ज़ जो दिल
की गहराइयों में
दब गए कभी सोच कर
कभी भूल से
जैसे कुछ भूली
हुई सभ्यताएं
जो नजर आती है
सिर्फ जमीनों के
खोदने से
ठीक वैसे ही
"कुछ यादें "
जो दबी हैं
ज़िन्दगी के उन
पन्नो में
जो वर्जित है
सच जानने से पहले
दुनिया की नजरों में आना
और वो पन्ने पढ़े हैं
सिर्फ उन्ही ने
जो जानते हैं कि
" कहाँ क्या दफ़न हुआ था ?"

धडकन की सरगम












डर नहीं।।।
इस दिल को
कि वो अब भी
मेरी यादो में है
पर अक्सर न
जाने क्यों
इक ख्याल से
बज उठती है
धडकन की सरगम
कि कहीं अब
भी उसके
किन्ही ख्यालों में
तो मैं नहीं !!

अनकहे खत




लिखना फिर
मिटाना फिर काट
के लिख जाना
अक्सर यह दिल कर
ही जाता है
लिखते हुए
ख़त उनको
और फिर
डर के सहम
जाता है कि
कहीं समझ के
उलझ न जाए
इन अनकहे खत
की बातो में !!


बरसती बूंदे




भीगी मिटटी
की गंध
थमी हुई हवा
बरसती बूंदे
बोझिल साँसों
को कर देती हैं
और भी तन्हा
दिल में भरे
गुबार को
आँखों से बरसने
के लिए किसी
मौसम की
भविष्यवाणी का
इन्तजार नहीं
करना होता ...........

रात की झाँकी






उस दिन की एक-एक
बात याद है
मुझको अब भी
जब तुम्हारे साथ बैठे
बातों-बातों में
न जाने कब चन्द
मिनट घंटो में
बदल गए थे
बुझती साँझ उस
रात की झाँकी
लायी थी
जो देखते ही देखते,
पलक झपकते
रौशनी के अंकुर से,
दिन का फवारा
बन गयी थी

बिखरे पल







उस दिन की एक-एक
बात याद है
वो बे-रोक-टोक बातें
मैं टकटकी बाँधें
चुपचाप सुन रहा था
दूर, कमरे के कोने में
उस मद्धम रौशनी में
रेडियो में धीमे सुर में
कोई गुनगुना रही थी
यूँ फर्श पर लेटे,
हाथों के नीचे
तकिया दबाये
मैं खुद से अलग,
उस बिखरे पल में
डूबा हुआ था

छुप-छुप कर






उस दिन की एक-एक
बात याद है
कैसे वो रात की गिलहरी
खिड़की के लकड़ी के
किवाड़ पे संतुलन बना
सूंघते हुए खाना
खोज रही थी
जैसे छुप-छुप कर
हमारी बातें सुन रही थी
तुमने एक टुक
उसकी तरफ देखा
कुछ पलों के लिए
अपने संगीत को रोका
और वो हलकी सी
मुस्कान जो तुम्हारे
चेहरे पे आई
वो अब भी
याद है मुझको

तुम्हारे उलझे बाल








उस दिन की एक-एक
बात याद है
फिर जब महकती
उस रात की ठण्ड में
बादलों ने खुद को निचोड़ा
और कुछ बूँदें टपकाई
तब एक भटका हुआ
नन्हा हवा का झोंका
तुम्हारे उलझे हुए
बालों से खेलने लगा था
किस मासूमियत से
फिर तुमने उसको झंझोड़ा
वो गीली हवा का झोंका
सब याद है मुझको

एक-एक बात याद है








उस दिन की एक-एक
बात याद है
देखते ही देखते फिर
दिन घिर आया,
भीनी-भीनी रोशनियों ने
रात के काजल को मिटाया
नींद की लुका-छुपी
कुछ चालू हुई
भारी होती पलकों को
सपनों ने हल्के
से खटखटाया
उस नींद से थके चेहरे से
मुस्का कर जब तुमने
आँखें बंद करते हुए
मुझको भी सो जाने को कहा
वो बात अब भी याद है मुझको
उस उस दिन की एक-एक
बात याद है

तरसती मेरी आँखें









तेरे दीदार में
तरसती मेरी
खुमार से भरी
आँखें रोज रात
एक नया ख्वाब
बुनती है जिनकी
तासीर मेरे लबो
पर चासनी सी
उतरती है फिर
पूरी रात इश्क़
कतरा-कतरा कर
मेरी रूह तक
रिस्ता रहता है

तेरे दिल की जमीन पर











तेरी सुरमई आंखों में
तलाश रहा हूं अपनी तस्वीर
तेरे दिल की जमीन
पर ढूंढ़ रहा हूं एक आशियाना
तुम्हारी मरमरी बांहों में बसाना
चाहता था अपनी एक अलग दुनिया
पर शायद ये मुमकिन नहीं क्योंकि
जगा चुकी तुम मुझे एक
गहरी नीन्द से लौट आया हूं मैं
ख्वाबों की दुनिया से
हकीकत की जमीं पर
एक पल को लगा 
ऐसा जैसे सिमट गई हो
सारी दुनिया मेरे आगोश में
फिर से मैंने अपने आप को
पाया बिलकुल तन्हा और अकेला
मेरे पास बची थी कुछ यादें मेरे उन
सुनहरे ख्वाबों की उनको सम्भाले हुए
अपने जेहन में बढ़ चला
एक अनजानी मंजील की ओर अब

बर्फ पर चलना







पिघलती बर्फ पर चलना
जितना मुश्किल है,
उससे अधिक मुश्किल है
तुम्हारी आँखों को पढ़ना
मेरे सारे शब्द
जंगल के वृक्षों पर
मृत सर्पों की
तरह लटके हैं
क्योंकि ये तुम 
तक किसी तरह
पहुँच नहीं सकते
और जो मुझ तक
पहुँचते हैं
वे सिर्फ दस्तक देते हैं
द्धार खोलने की
ताकत नहीं रखते
शायद

फूलों के बीज











मैंने सोचा तुम
फूल सी हो तो
तुम्हे फूल बहुत पसंद होंगे
और इसीलिए मैं
ढेर सारे फूलों के बीज
लेकर आ गया किन्तु
तुम्हारे पत्थर से दिल
को देखकर सोचता हूँ
इन बीजों को क्या करूं
अच्छा होता
मैं इन बीजों के साथ
मुठ्ठी भर मिट्टी
मेरे रूह की भी लाता
और अँजुरी हथेली में ही
हथेली की ऊष्मा तथा
मेरी आँखों की नमी से
अँजुरी भर फूल उगाता
तो शायद तुम्हारा दिल
पसीज गया होता

अपने जज्बात










मैनें लिख कर दी
तुम्हे अपनी चन्द
कविताएं
शब्दों की जगह
उकेरे थे मैनें
अपने जज्बात
निकाल कर रख
दिए थे मैनें कागज
के एक छोटे से टुकडे.
पर अपने दिल के
सारे अरमान
इस ख्याल में कि
शायद मेरी पाक मोहब्बत
तेरे दिल की गहराईयों
में पनाह पा ले
पर मेरे सारे जज्बात
हर्फ-दर-हर्फ
बिखरे पड़े है
जब मैंने ये जाना कि
तुम्हारी जिदंगी में
मुझसे भी जरुरी
बहुत सारे लोग है
जिन्हे तुम छोड़ मुझे
नहीं पाना चाहती

तेरे मेरे दरम्यॉं











कुछ तो है तेरे मेरे
दरम्यॉं जो हम कह
नही पाते और तुम
समझ नहीं पाती
या समझ कर भी
समझना नहीं चाहती
एक अन्जाना सा रिश्ता
एक नाजुक सा बंधन
गर समझ जाती तुम
तो मोहब्बत की तासीर
से बच नहीं पाती
ये कैसी तिश्नगी है
क्या कहु तुमसे
तसब्बुर में भी तेरे बगैर
मैं रह नहीं पाता
जी रहे है नदी के दो
किनारों की तरह
जो साथ तो चलते हैं
मगर एक-दूसरे से
कभी मिल नहीं पाते
कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं
जो मैं कह नही पाता
और तुम समझ नहीं पाती

सुबह की लालिमा







सको देखता हूं
तो लगता है यूं जैसे
सुबह की लालिमा लिए
आसमां की क्षितिज पर
एक तारा टिमटिमा रहा हो
उसकी खामोश निगाहें
कुछ कहना चाहती है
मुझसे होठों पर है
ढेर सारी बातें फिर भी
न जाने क्यूं चुप है
हंसती है वो तो
चमन में फूल खिलते हैं
बात करती है तो लगता है
दूर कहीं झरने बहते हैं
उसकी शोख और चंचल
अदाएं मुझको दिवाना बनाती है
उसकी सादगी हर पल
एक नया संगीत सुनाती है
इतना तो पता है कि
उसको भी मुझसे प्यार है
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ,
उस वक्त का इन्तजार है।

गुलाबी गालों की रंगत









आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
जहां तेरा प्यार फैला है
आसमां की तरह
हवाओं की जगह फैली है
तेरे जिस्म की
भीनी-भीनी सी खुश्बू
आओ मेरे साथ मैं
तुम्हें लेकर चलता हूं
मैं सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
जहां बादलों की जगह
लहरा रही है तेरी जुल्फें
तेरी आंखों जैसी गहराई है
समन्दर के फूलों में
चटख रही है तेरे सुर्ख
गुलाबी गालों की रंगत

तेरी पायल की रूनझुन



आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
जहां दिन शुरू होता है
तेरी एक अंगड़ाई से
पलकों की जुिम्बश से
जहां बिखर जाती है शाम
पंछियों ने सीखा है
गाना तेरी पायल
की रूनझुन से
पेड़ों ने फैला रखा है
जहां तेरे आंचल की छांव
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में

थाम कर हाथ एक दूजे का







कितने ही रास्तो से,
आती आज भी
उड कर धूल,
लग जाती है
मेरे सीने से,
स्मॄत हो आते
वो क्षण जब
मैं और तुम
चले थे उन पर
थाम कर हाथ
एक दूजे का
और मैं उस
धुल को भी
हटा नहीं पाता
अपने सीने से

आँखो को बरसने के लिये






क्या कहूँ
क्या उत्तर दूँ,
उन सवालों का,
जो जला देते
इस मन को,
और विवश करते है
आँखो को बरसने
के लिये फिर
एक सवाल बार बार
मेरे जहन में उठता है
क्या मैं तुमसे प्रेम
सिर्फ मेरी आंखें
भरने के लिए ही
किया था ?

कोई भी रिश्ता टूटता नहीं








कुछ भी व्यर्थ
नहीं होता " यंहा "
कोई भी रिश्ता
टूटता नहीं " यंहा "
रिश्ता या तो जीता
है " यंहा " या मर जाता है
पर रिश्ता टूटता नहीं
चाहे बातें बंद हो जाए
चाहे मुलाकातें बंद हो जाए
या एक नज़र देखना भी
पर रिश्ते हमेशा
बने रहते है जीते हुए
आमने सामने और
मरने के बाद
मन में - स्मृति में - यादो में
पर कुछ भी व्यर्थ
नहीं होता " यंहा "

अनन्य भाव






हर बार जब
होता हु नाराज़ मैं
तुम झुकती हो
फिर संभालती हो
अपना आँचल,
देखती मेरी ओर,
भर आँखो मे
अनन्य भाव,
तब मैं सोचता ,
अब शायद
तुम उठाओगी
प्रेम पुष्प और
लगा लोगी
अपने सीने से,
तुम दोगी हवा
अपने आँचल की,
मन मे जलती
प्रेम चिन्गारी को
बना दोगी ज्वाला,
और फिर
कर दोगी शांत भर
आलिंगन मे मुझे ,
पर हर बार ही
कुचल कर मेरे
अरमानो को चल
देती हो अपने घर की ओर

मैं निरुत्तर

आज कल रोज ही
पूछ्ता है वो पेड
पत्तियाँ हिलाकर,
छाँव मे जिसकी
कटती थी
सारी साँझ ही
हम दोनों की ,
तुम जो पोछँती थी
दुपट्टे से अपने
तेरे माथे पे
आयी बूंदों को,
कहाँ है वो
बोलो राम
और मैं निरुत्तर
सा गर्दन लटकाये
खड़ा रहता हु उसके
उसके सामने
एक अपराधी की तरह

विरह में अकेला












प्रेम है वो
जो प्रेमी के लिए
जलता है
प्रेम है वो
जो प्रेमी के लिए
जलता है
विरह में अकेला
जानते हुए की
वो चाहे तो ये
विरह अगले पल ही
मिलन में तब्दील
हो विरह की अग्नि
को मिलन की
ठंडी फुहार में
बदल सकती है
जब जानते हुए भी
वो रहता है
चाहता है
उसे यु जैसे
मरने वाला कोई
ज़िन्दगी चाहता हो
वैसे हम तुम्हे
चाहते है वैसे

प्रेम की परिभाषा

प्रेम वो है जो
चाँद पर जाने की
बात करता है
केशो को घटा,
आँखो को समन्दर
गालो की तुलना
गुलाब से करता है
या वो
जो बचाता है
पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे
प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक
प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
कोई

तृप्ती है या पिपासा








प्रेम की परिभाषा
कोई नहीं समझ
सका आजतक
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका
आजतक कोई
प्रेम वो है जो
दिखता है प्रेमी
की आँखो मे
कोई प्यारा सा
उपहार पाकर
या प्रेम वो है जो
सुकून मिलता है
आफिस से आकर
तुम्हारी मुस्कान पाकर

फूल को मुस्काते हुए














तुम आयी
आकर चली गयी
कुछ कहा भी नही तुमने
और न सुना
जो मैने कहा था
उन कुछ पलो मे
सिमट कर रह गया हूँ मै
और मेरी जिन्दगी भी
उन पलो मे देखा है मैने
फूल को मुस्काते हुए
तारीफ सुनकर शर्माते हुए
फिर किसी डर से घबराते हुए
मन को आकाश मे घूमते
सपनो को बनते और
टूट जाते हुए
वैसे ही जैसे तुमने
किया आयी और
चली भी गयी

सही अर्थ प्रेम का



उन पलो से सीखा है मैने
सही अर्थ प्रेम का
परिभाषा जीवन की
और मजबूरिया इंसान की
जो रोकती है हमे
वो करने से जो हम चाहते है
उसे अपनाने से
जिसे हम चाहते है
वो पल
भूलाये नही भूलते
एक पल को भी नही हटता
वो दृश्य आँखो से
वो अपनी मुलाकात
जो आखिरी बन गयी
पर तुम ना छोड़ सकी
उन्हें मुझे अपनाने के लिए
शायद तुमने कभी मुझसे
प्यार किया की नहीं

हर हद टूट जाती है



कहने करने की
हर हद टूट जाती
जो हर आती साँस
जिस्म से रूह
जुदा कर जाती
जो न होता कुदरत में
सूरज की ताप
और बादलों की
नमी का नजारा
धरती का आँचल
लगता बदरंग बेसहारा !!
दिल में जलती
सूरज सी आग
नयनों में
टिप टिप करती
बरसात
कुदरत के रंग सी
यही प्रेम की सौगात !!
है शायद

Friday 28 April 2017

सवालो की तरह

ज़िंदगी रोज़ गुजरती है 

सवालो की तरह
हर बात का दू मैं जवाब
यह ज़रूरी तो नही ....
कर जाते हैं चाहने वाले
भी कभी कभी बेवफ़ाई
मैं भी कर जाऊ
तुझसे कुछ ऐसा
यह ज़रूरी तो नही
किस तरह मुकम्मल
हो रहा है ज़िंदगी का सफ़र
और कितना पाया है
मैंने दर्द तुम्हे बता दू
यह ज़रूरी तो नही
दिखता हु अपने चेहरे पर
हँसी हर वक़्त मैं तुम्हे
पर इसके पीछे छिपी
उदासी भी दिखा दू
यह ज़रूरी तो नही
इस तरह तो मैं कभी
कमज़ोर ना था ज़िंदगी में
पर तेरे कंधो पर
अपना सिर रख के
रो दे यह ज़रूरी तो नही?


प्रेम है नील गगन सा



प्रेम है 
उस विस्तृत
नील गगन सा
जो सिर्फ अपने
आभास से ही
खुद के अस्तित्व
को सच बना
देता है.......
प्रेम टूट कर
बिखरने की
एक वह प्रक्रिया
जो सिर्फ चांदनी
की रिमझिम में
मद्दम मद्धम सा
दिल के आँगन में
तारों की तरह
टूटता रहता है!

मेरे एहसास


ओ मेरे प्यार के  हमराही ...... 
मुझे अपनी पलको में
बिठा के वहाँ ले चल
जहाँ खिलते हैं
मोहब्बत के फूल
गीतो से तू
अपनी नज़रो में
बसा कर वहाँ ले चल
जो महक रहा है
तेरा दामन
जिन पलो की ख़ुश्बू से
उन पलो में
एक बार फिर डुबो कर
मुझे वहाँ ले चल.........
जहाँ देखे थे
हमने दो जहान मिलते हुए
उस साँझ के आँचल तले
एक आस का दीप जला कर
बस एक बार मुझे वहाँ ले चल

प्रेम है एक जंगली जानवर सा



प्रेम है 
एक जंगली जानवर सा
जो चुपके से दबोच
लेता है मन तन को
जलाता है उम्मीदों
की रौशनी
न चाहते हुए भी
उससे बचा
नहीं जा सकता
प्रेम है
उस कमर तोड़
बुखार सा
जो सरसराता हुआ
दौड़ता है रगों में
और हर दवा हर
वर्जना को तोड़ता हुआ
घर कर लेता है
मन तन पर
आखिर कोई कैसे
कब तक बचा सकता है
प्रेम से....

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !