Friday 28 April 2017

प्रेम है एक जंगली जानवर सा



प्रेम है 
एक जंगली जानवर सा
जो चुपके से दबोच
लेता है मन तन को
जलाता है उम्मीदों
की रौशनी
न चाहते हुए भी
उससे बचा
नहीं जा सकता
प्रेम है
उस कमर तोड़
बुखार सा
जो सरसराता हुआ
दौड़ता है रगों में
और हर दवा हर
वर्जना को तोड़ता हुआ
घर कर लेता है
मन तन पर
आखिर कोई कैसे
कब तक बचा सकता है
प्रेम से....

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !