कुछ तो है तेरे मेरे
दरम्यॉं जो हम कह
नही पाते और तुम
समझ नहीं पाती
या समझ कर भी
समझना नहीं चाहती
एक अन्जाना सा रिश्ता
एक नाजुक सा बंधन
गर समझ जाती तुम
तो मोहब्बत की तासीर
से बच नहीं पाती
ये कैसी तिश्नगी है
क्या कहु तुमसे
तसब्बुर में भी तेरे बगैर
मैं रह नहीं पाता
जी रहे है नदी के दो
किनारों की तरह
जो साथ तो चलते हैं
मगर एक-दूसरे से
कभी मिल नहीं पाते
कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं
जो मैं कह नही पाता
और तुम समझ नहीं पाती
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