चाँद मुट्ठी में आ गिरा,
उसे उलट-पलट
के देखता हूँ,
उसकी पीली
खुरदरी सतह पर
अपना हाथ फेरता हूँ,
उसे ज़मीन पे रख
कभी इधर-तो
कभी उधर
धकेलता हूँ
हमेशा सोचता था
की वो क्या करता होगा
अकेले काले आकाश में,
आधा गायब
तो कभी पूरा शून्य
विचरता उस पीले लिबास में
पर आज उठा तो पाया
उसको बंद अपनी मुट्ठी में,
अब बस, अकेले बैठ
हाथों में लिए देखता हूँ
उसकी उधड़ी सतह को,
क्योंकि आज चाँद
बंद मेरी मुट्ठी में आ गिरा
तो पता चला
प्यार में होकर भी
कोई कैसे अकेला
रह सकता है
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