Thursday, 3 May 2018

मेरे अरमानों की भी तो जननी तुम हो !

मेरे अरमानों की भी तो जननी तुम हो !
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आधी रात कौंधी उसकी चितवन 
और उसने दरवाज़ा अपने घर का 
खुला छोड़ दिया कायम रखते हुए अँधेरा 
और लिख छोड़ा सन्देश अपने घर के दरवाज़े पर 
जिससे होकर आने वाला है उसका चितचोर घर के अंदर  
की मैंने बहुत मुश्किलों से सुलाया है थपथपाकर 
अपने व्यस्क अरमानो को आवाज़ मत करना वरना 
सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा ;आकर कानो में हौले से 
कहा उस चितचोर ने तुम भी यु ही आँखें बंदकर सोने का 
बहाना करती रहो कुछ देर क्योकि मेरे अरमान भी 
मेरा पीछा करते करते आ गए है यंहा तक क्योंकि 
ये तुम्हारे अरमानो की तरह मेरे कहे में नहीं बड़े ही ज़िद्दी है 
मना करते ही सड़क पर उस ज़िद्दी बच्चे की तरह लेट गए थे 
जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से चॉकलेट की ज़िद्द करता है 
और माँ के मना करने पर बिगड़ैल बच्चों की तरह 
रास्ते पर लौट लौट तमाशा खड़ा करता है 
और जब तक माँ से चॉकलेट नहीं ले लेता 
तब तक मानता  ही नहीं है तुम बस   
इन्हे यकीं दिला दो की तुम सो गयी हो 
ताकि ये चले जाए फिर हम दोनों साथ
बैठ कर खूब बातें करेंगे अरमानो का क्या है 
ये तो हमारे पैदा किये हमारे ही बच्चे तो है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !