Thursday 10 May 2018

रूह मेरी आश्स्वत तुम्हारी देह में


रूह मेरी आश्स्वत तुम्हारी देह में 
--------------------------------------

तमाम-उलझनों और भाग दौड़ 
से आजिज जब सुकून खोजता हुआ 
मेरा ये दिल खोजता है सकून हर शाम  
पागलों की तरह जानते हुए की उसके पास 
तुम्हारे सिवा कोई और विकल्प ही नहीं फिर भी
करता है कोशिश  किसी तरह कंही और
मिल जाए सकूँ उसकी इस अतृप भटकती रूह को
जिस से तुम्हे ना समय निकलना पड़े मेरे लिए 
और तुम यु ही रहो व्यस्त अपनी दुनिया में निष्फिक्र 
मेरी फिक्र से लेकिन जब तमाम कोशिशों के बावजूद
रूह को नहीं मिलता चैन तब ठहर के कुछ देर तुम्हारी 
तस्वीर के सामने बैठता है तो यु लगता है जैसे तड़प कर 
रूह उसकी उसके ही जिस्म को छोड़ प्रवेश करती है तुम्हारी 
उस तस्वीर में और वो देखता है खुद को आश्वस्त तुम्हारी 
तस्वीर में तब उसकी देह बिल्कूल निढाल हो एक तरफ 
लेट जाती है वैसे जैसे बिना रूह के शरीर होता जाता है मरणासन्न 
ठीक वैसे ही लेकिन चक्षु अब भी उसके रहते है व्यस्त देखने में 
खुद को यु आश्स्वत तुम्हारी देह में !!

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !