बेहाल और लहूलुहान चेहरा
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कितना तीक्ष्ण है
चेहरा तुम्हारा की वो
आसानी से समां जाता है
मेरे चेहरे में और तुम हर
शाम अलग कर लेती हो
मेरे चेहरे से अपना चेहरा
फलस्वरूप बेहाल और लहूलुहान
हो जाता है मेरा चेहरा इस बात से
तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता
क्यूंकि तुम्हारा तो सब कुछ
तुम्हारे पास रह ही जाता है
साथ में अपने ले जाती हो
तुम मेरे अस्तित्व की निशानी
भी अपने साथ काश की मेरा
भी चेहरा इतना ही तीक्ष्ण होता
और मेरा चेहरा जब तुम्हारे चेहरे से
जुदा होता तो तुम्हारा चेहरा भी
कुछ यु रोज शाम लहूलुहान होता
तब तुम्हे उस दर्द का एहसास होता
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