जब भी याद मुझे तेरी
आती है मेरी वफ़ा मुझ
पर बड़ी मुस्कुराती है
दर्द होता है देख उसकी
कटाक्ष भरी मुस्कान
फिर भी खुद पर होता है फक्र
की मैंने इतने सालों तक जकड़े रखा
अपनी यादों को ज़ंजीरों में
ताकि तुम चैन से जी सको वंहा
और रातों को सकूँ से सो सको वंहा
लेकिन सुनो कल रात से फरार है
मेरी वो यादें ख्याल रखना अपना
जैसे तुम्हारी यादें मुझे रात रात सोने नहीं देती
वैसे ही कंही मेरी यादें तुम्हे ना करे बैचैन
पर सुनो मेरी यादें तुम्हारी यादों से कंही ज्यादा
ज़िद्दी और शैतान है पर अगर वो करे तुम्हे कुछ ज्यादा ही परेशान
तो उनके सामने ही तुम एक आवाज़ देना मुझे
मैं फिर से पकड़कर उन्हें ला जकड़ूँगा उन्ही ज़ंजीरों में !
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