तुम्हारी ही सियाही से तुम्हे रंग देता हु मैं
-------------------------------------------------
क्रूर से क्रूर इतिहास को
बदलने में समर्थ होता है
मिलन के वो कुछ पल बस
जरुरत है हमारे मिलन की
घडी में पैदा हुई लहरों की ताकत
को खुद में सिंचित कर उस तुम्हारी
कराह से आगे निकलने की
जब-जब होती है दूर हमसे रोशनी
तब-तब हम होते है सबसे करीब
एक दूजे के और इस मिलन का गवाह होता है
गवाह होता है वो सियाह अँधेरा
जो कर रहा होता है तुम्हे प्रेरित
करने को क्रंदन और तुम उससे
प्रेरित करने लगती हो चीत्कार
फुट-फुट कर तब भी मैं
करता हु सिंचित तुम्हारे भीतर
वो अपना अदम्य साहस
जो करता है मुझे प्रेरित अपनी
कलम में तुम्हारी सियाही भरने को
और मैं तुम्हारी ही सियाही से
तुम्हे ही रंग देता हु सोच कर की
पल-दो-पल की वो तुम्हारी चीत्कार
बदल कर रख देगी हमारे बीते क्रूर से
क्रूरतम इतिहास को अब !
No comments:
Post a Comment