मैं तुमसे बातें करती हूँ !-----------------------------
मैं तो जब भीकरती हूँ तुमसे बातें
अपने आप को पा लेती हूँ
,न दिखावा ,
न छलावा,
न बनावट ,
न सजावट ,
बस अपने मन की
परतों को खोलती जाती हूँ,
और मेरे साथ साथ
तुम भी मंद-मंद मुस्कुराते हो,
अपनी अँखिओं के कोरों से
मेरी मस्ती,मेरी चंचलता ,
मेरा अल्हड़पन ,मेरा अपनापन ,
मेरा यौवन थाम लेते हो
अपने हांथो में तब
मैं काँप जाती हूँ ,
और नाज़ुक लता सी ,
लिपट जाती हूँ मानकर
तुम्हे अपनी शाख से !
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