Wednesday, 23 May 2018

अदृश्य और सजीव अग्नि



अदृश्य और सजीव अग्नि----------------------------

सुनो कंहा  खोज रहे हो
अग्नि को वो तो मौजूद है; 
हर जगह बस दृश्य नहीं है  
रूह की ही तरह जो होती है 
अदृश्य और सजीव और   
यौवन की तरह निडर 
और उत्साहित देखना चाहो 
तो झांक लो स्वयं के 
ही अंदर मिलेगी मौजूद 
वो अग्नि गर चाहो तुम 
आज़माना उसकी पवित्रता को
तो ले जाओ कुछ भी उसके नज़दीक 
और बिलकुल पास यु जैसे स्पर्श किया हो 
उसे स्पर्श पाते ही वो "कुछ" भी हो जाएगी 
या जायेगा अग्नि वही अग्नि जो घोतक है 
प्राणो की जब तक वो है मौजूद 
चाहे मुझमे चाहे तुझमे चाहे ! 
किसी में भी ये अग्नि जो घोतक है 
जिन्दा होने की जीवन की प्राणो की !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !