स्वप्न "अमर" होते है !
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सुनो सपने कभी नहीं मरते
हम इंसानो की तरह
नहीं होती उनकी उम्र ;
कभी ना कभी हम सब
जरूर पहुंचते है ज़िन्दगी के
उस आखरी पन्ने पर जंहा
जब तकिये पर अटकी
आखरी झपकियों के सहारे
हम देख रहे होते है अपनी
ज़िन्दगी के वो अधूरे स्वप्न;
जो रह गए होते है अधूरे
और एक बात हम रहे या
ना रहे पर हमारे स्वप्न
रहते है यही इसी धरा पर
किन्यु की स्वप्न होते ही है
"अमर"; वो कभी नहीं मरते
इंसानो की तरह किन्यु की
उनकी उम्र तय नहीं होती
और जब हम फिर लौटते है
एक नया रूप नया शरीर
लेकर इस धरा पर तो वो ही
स्वप्न हमे एक बार फिर से
ढूंढ कर सज जाते है हमारी पलकों पर
फिर से अधूरे ना रह जाने का मलाल लिए !
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